Aug 21, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जीवन संघर्ष नहीं, एक सफ़र है। लेकिन अकसर लोग इसे संघर्ष मानकर, इस सफ़र को अंग्रेज़ी का सफ़र याने कष्टदायक बना लेते हैं। जी हाँ दोस्तों, अनावश्यक रूप से जीवन में घटने वाली हर घटना पर प्रतिक्रिया देकर, उससे उलझकर, लड़कर या जूझकर हम अच्छी ख़ासी चलती ज़िंदगी को परेशानियों और संघर्षों से भरी बना लेते हैं। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से विस्तार से बताने का प्रयास करता हूँ।
एक बार जंगल के बीच से बहने वाली नदी में अचानक से बाढ़ आ गई और कई जानवर उसमें फँस गये। इन्हीं जानवरों में जंगल का राजा शेर भी था, जो अचानक से आए इस पानी की वजह से बड़ा ग़ुस्से में था। इसीलिए वह ज़ोर-ज़ोर से दहाड़कर नदी के सामने अपना विरोध भी दर्ज करा रहा था। बीतते समय के साथ शेर का विरोध और नदी का पानी दोनों ही बढ़ते जा रहे थे और शेर लगभग गले-गले तक पानी में डूब गया था।
अब शेर तो शेर ही था, किसी के सामने झुककर जीना उसे मंज़ूर ही नहीं था, इसलिए नदी को तैर कर पार करना याने विपरीत परिस्थितियों में ख़ुद को समय के हाथों में सौंप देना उसके स्वभाव के विपरीत था। इसलिए वह एक बार फिर नदी पर ज़ोर से दहाड़ा; उसने नदी पर पूरी ताक़त से हमला भी किया लेकिन इस सब से भी नदी को कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ा और कुछ ही पलों में शेर डूबने की स्थिति में आ गया। थकान से चूर शेर अब हार मान चुका था, उसने ख़ुद को नदी के हाथों में सौंप दिया और शांत हो गया। उसके ऐसा करते ही चारों और खामोशी छा गई, जिसके कारण अब शेर छोटी से छोटी और धीमी से धीमी आवाज़ सुन पा रहा था। उसने अब नदी को कहते सुन लिया था कि ‘जो तुम्हारे हाथों में नहीं है, उससे लड़ो मत।’ शेर ने तुरंत नदी से पूछा, ‘यहाँ क्या नहीं है?’ नदी अपने अन्दाज़ में बोली, ‘यहाँ कोई भी आपका दुश्मन नहीं है। जैसे आप शेर हैं, वैसे ही मैं नदी हूँ।’
नदी के शब्दों ने शेर को शांत कर दिया था। उस शांति के पलों ने उसे नदी से सकुशल निकलने के लिए विभिन्न उपायों का अध्ययन करने का मौक़ा दिया। जिससे वह समझ पाया कि इस उफनती नदी को कैसे पार करना है। थोड़ी ही देर में शेर नदी में उस जगह चला गया जहां एक निश्चित धारा किनारे से टकराती थी। उस जगह नदी का प्रवाह कम था, इसलिए पहले वह नदी में एक-एक कदम आगे बढ़ा, फिर अंत में उसने नदी को बिना किसी मुश्किल के तैर कर पार कर लिया।
दोस्तों, हम भी तो जीवन में कहीं ना कहीं शेर वाली गलती को दोहरा रहे हैं। हम भी कहीं ना कहीं, किसी ना किसी विषय पर रोज़ अपनों के साथ या ख़ुद के साथ लड़ रहे हैं। वह भी उन बातों के लिए जो हमारे हाथों में है ही नहीं। हम वाक़ई भूल गए हैं कि जीवन संघर्ष नहीं सफ़र है और अगर जीवन सफ़र है तो इसमें सुख भी आएगा, दुख भी आएगा। इसमें मनमाफिक अच्छी घटनाएँ भी घटेंगी, तो आशा के विपरीत बुरी भी। इस सफ़र में, विपरीत स्थितियों के बीच हर आती हुई परिस्थिति से लड़ने या जूझने से पहले कुछ पल रुककर, उन पलों में पूरी तरह ठहरकर और उस ठहराव को महसूस करके अध्ययन करें, तभी हम समझ पाएंगे कि हक़ीक़त में यहाँ लड़ने के लिए कुछ है ही नहीं।
जी हाँ दोस्तों, जीवन तो एक चक्र है, जहाँ सुख के बाद दुख, दुख के बाद सुख, ताली के बाद गाली और गाली के बाद ताली, आना ही है। इस चक्र में अगर आप स्वीकारोक्ति का भाव रख, थोड़ा ठहर कर, थोड़ा रुककर, थोड़ा समझकर, संयम और धैर्य के साथ जीवन में आगे बढ़ना सीख गए, तो यक़ीन मानियेगा आप जीवन जीना सीख गए। याद रखियेगा, यदि आप एक बार अपने मन को सामंजस्यपूर्ण स्थिति में ले आये तो फिर ना तो बाहरी परिस्थितियाँ और ना ही बाहरी वातावरण उस पर कोई प्रभाव डाल पाएगा और आप आंतरिक अशांति पर विजय पा जायेगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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