Feb 11, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, सालों पहले गुरु ने मुझे गुरूमंत्र देते हुए कहा था, ‘याद रखो, विचार तुमको बना भी सकते हैं, तो मिटा भी सकते हैं।’ अर्थात् एक अच्छा विचार जहाँ आपके जीवन को संवारने की शक्ति रखता है, वहीं एक नकारात्मक या प्रदूषित विचार आपके सोचने, समझने की शक्ति को खत्म कर आपको जीवन में भटका सकता है। जी हाँ साथियों, प्रदूषण सिर्फ़ पर्यावरण का ही नहीं होता है, यह तो विचारों का भी हो सकता है। प्रदूषित पर्यावरण जहाँ आपके स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, वहीं प्रदूषित विचार आपके पूरे जीवन को बर्बाद करने की शक्ति रखता हैं। इसलिए अगर आप शांत और सुखी रहना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको अपने विचारों को प्रदूषित होने से बचाना होगा और इसके लिए आपको विचारों के विज्ञान को समझना होगा।
असल में दोस्तों, इंद्रियों से मिले संकेत हमारे विचारों को जन्म या दिशा देते हैं। इन विचारों के साथ अगर हम ज़्यादा समय बिताने लगते हैं तो हमारे यही विचार हमारी सोच बन जाते हैं। हमारी सोच, हमारे कार्य करने की दिशा तय करती है और किया गया कार्य आपके जीवन की दिशा और दशा तय करता है। इसीलिए मैंने पूर्व में कहा था, ‘विचार आपको बना भी सकते हैं, तो मिटा भी सकते हैं।’
उपरोक्त आधार पर साथियों अगर आप जीवन को सकारात्मक और शक्तिशाली बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको विचारों को सकारात्मक और शक्तिशाली बनाने के विषय में सोचना और कार्य करना पड़ेगा क्योंकि विचारों का प्रदूषण विज्ञान से नहीं अपितु आत्म बोध या अंतः ज्ञान से मिटाना होगा। थोड़ा साधारण शब्दों में इसे समझने का प्रयास करें तो आपको अपनी अंतरशक्ति या आत्म बोध या अपनी अंतरात्मा की आवाज़ से उन नकारात्मक आदतों को पहचानना होगा जो नकारात्मक विचारों को जन्म देती हैं। उदाहरण के लिए आलोचना, निंदा या शिकायत याने बुराई सुनना। मेरी नज़र में बुराई सुनना, बुराई चुनने सामान है क्योंकि जब आप आलोचना, निंदा या शिकायत याने किसी की बुराई सुनना पसंद करते हैं तो आप अपने अंदर वैसे ही विचार पैदा करते हैं। अगर हम इन नकारात्मक विचारों के साथ ज़्यादा समय बिताते हैं तो यही विचार कर्म का रूप ले हमारा आचरण बन जाते हैं।
उपरोक्त नकारात्मक लोगों का तो चारित्रिक गुण ही आलोचना, निंदा या शिकायत के रूप में बुराई करना है। वे आपके सामने दूसरों की तो दूसरों के सामने आपकी बुराई करेंगे। इसलिए बुरा करना ही नहीं बुरा सुनना भी ग़लत है। बुरा करना घातक है तो बुरा सुनना पातक है। इसलिए बुरा सुनने और बुरा करने दोनों से बचने का सदैव प्रयास किया जाना चाहिए। अतः दोस्तों, उन लोगों से अवश्य ही सावधान रहो जिन्हें बुरा करने, बुरा देखने और बुरा सुनने का शौक़ लग गया है और यही तरीक़ा हमें अन्य बुरी या नकारात्मक आदतों के लिए भी अपनाना होगा।
याद रखिएगा साथियों, हम जैसा देखते हैं, सुनते हैं वैसे ही बनते हैं। अगर आप रोज़ बुरा सुन या देख रहे हैं, तो आप धीरे-धीरे बुरे बन रहे हैं और अगर आप अच्छा सुन या देख रहे हैं तो आप अच्छे और स्वस्थ विचारों को अपने अंदर जन्म दे रहे हैं। यही स्वस्थ और अच्छा विचार जीवन की प्रसन्नता के मूल में है। यह एकदम सामान्य सी प्रक्रिया है। इसीलिए तो दोस्तों कहते हैं, ‘जैसी संगत, वैसी रंगत’ या ‘जैसा करोगे संग, वैसा चढ़ेगा रंग !!!’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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