Apr 26, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, यक़ीन मानियेगा कर्मों का फल एक ना एक दिन लौट कर वापस ज़रूर आता है। इसीलिए हमारे धर्म में कहा जाता है कि मन, वचन और कर्म से हमें कभी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए। आइये एक क़िस्से से हम इस विषय को समझने का प्रयास करते हैं।
आज से लगभग ३०-४० वर्ष पूर्व हमारे देश के ग्रामीण इलाक़ों में एक बड़ी सामान्य सी परिपाटी चलती थी। रात्रि भोज के पश्चात महिलायें घर में बचे शुद्ध और स्वच्छ भोजन को घर के बाहर बने आले यानी सामान रखने के लिए दीवार में बनाए स्थान पर छाछ या दही अथवा सब्ज़ी के साथ रख देती थी। इसकी मुख्य वजह पारिस्थितिक स्थितियाँ थी। जैसे, उस समय यात्रा के लिए सीमित संसाधन होते थे और गाँव व क़स्बों में रहने या खाना खाने के लिए होटल नहीं होते थे। ऐसे में अगर कोई यात्री रात्रि के समय किसी गाँव में देरी से पहुँचता था, तो वो ऐसे ही घर के बाहर रखे खाने को खाकर अपनी भूख मिटा लेता था और घर के बाहर बरामदे में सो जाता था। अल सुबह उस जगह से जाते वक़्त वो इंसान, अगर संभव होता था, तो जो भी उसके पास होता था, जैसे, अनाज, सब्ज़ी आदि उसे उसी स्थान पर छोड़ जाता था।
गाँव के बाहरी इलाक़े में रहने वाली एक अम्मा इन्हीं बातों या यूँ कहूँ संस्कारों को देखते हुए बड़ी हुई थी। वे भी प्रतिदिन घरवालों को भोजन कराने के पश्चात अतिरिक्त रोटियों को घर के बाहर बने स्थान पर रख दिया करती थी। सामान्यतः इस रोटी को एक भिखारी सा दिखने वाला एक बूढ़ा व्यक्ति ले ज़ाया करता था। जाते वक़्त वह महिला को धन्यवाद या आशीर्वाद देने के स्थान पर बड़बड़ाते हुए कहता था, ‘जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।’
अम्मा का रोटी रखना और उस बूढ़े का बड़बड़ाते हुए रोटी लेकर चले जाना मानो एक नित्य कर्म बन गया था। कई दिन इसी तरह गुजर गए। एक दिन महिला ने जैसे ही घर के बाहर रोटी रखी उसी पल वह बूढ़ा वहाँ पहुँचा और रोटी लेते ही बुदबुदाने लगा, ‘जो तुम बुरा करोगे, वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे, वह तुम तक लौट के आएगा।’ उसके शब्द सुनते ही अम्मा को ग़ुस्सा आ गया वे सोचने लगी, ‘कितना अजीब व्यक्ति है। आजतक कभी धन्यवाद तो दिया नहीं उल्टा रोज़ कुछ तो भी बड़बड़ाते हुए चला जाता है।’
एक दिन अम्मा ने ग़ुस्से में उस बूढ़े की रोटी पर ज़हर लगाने का यह सोचते हुए निर्णय लिया कि ‘अब तो मैं इस बूढ़े से निजात पा कर रहूँगी।’ लेकिन जैसे ही वह ज़हर लगी रोटी को आले में रखने लगी उसके मन में विचार आया कि ‘हे भगवान! मैं यह क्या करने जा रही थी?’ विचार आते ही उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे की आँच में जला दिया और एक ताज़ा रोटी बना कर तय स्थान पर रख दी और मंदिर में जाकर रोज़ की ही तरह अपने पुत्र की सलामती, अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करने लगी। असल में उस अम्मा का बेटा कई दिनों से नदारद था। उसकी कहीं से कोई खोज-खबर नहीं मिल रही थी। इसलिए अम्मा प्रतिदिन उसकी सलामती के लिए यह प्रार्थना करती थी।
कुछ ही पलों के उपरांत रोज़ की ही तरह वह बूढ़ा आया और रोटी लेकर 'जो तुम बुरा करोगे, वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे, वह तुम तक लौट के आएगा।’ कहते हुए वहाँ से चला गया। उस दिन शाम को अचानक ही उसका बेटा लौट आता है, जिसे देख कर अम्मा भौचक्की रह जाती है। कुछ देर पश्चात उसे एहसास होता है कि उसका बेटा एकदम कमजोर और दुबला-पतला हो गया है और उसके कपड़े भी फट गये हैं।
भूख से व्याकुल बेटा अपनी माँ से कहता है, ‘अम्मा! आज तो मैं एक चमत्कार की वजह से यहाँ पर हूँ। असल में घर लौटते वक़्त, लगभग एक मील पूर्व मैं भूख से व्याकुल हो, अचेत होकर गिर पड़ा था। मेरे हाल ऐसे थे कि अगर कुछ खाने को तत्काल नहीं मिला होता तो मेरे प्राण निकल गए होते। लेकिन तभी एक बूढ़ा वहाँ आया और मेरी हालत देखते हुए उसने पहले मेरे सिर को अपनी गोद में रखा, फिर मुझे एक रोटी देते हुए बोला, ‘मैं रोज़ यही खाकर अपनी भूख मिटाता हूँ, लेकिन आज तुम्हें इसकी मुझ से ज्यादा ज़रूरत है।’ इतना कहकर उसने प्रेम से मुझे रोटी खिलाई और वहाँ से चला गया।’
जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी उनका चेहरा पीला पड़ गया। किसी तरह उन्होंने ख़ुद को सम्भाला और सोचने लगी, ‘अगर आज मैंने ज़हर लगी रोटी बाहर रख दी होती तो क्या होता?’ विचार आते ही उसकी आँखों के सामने उस बूढ़े व्यक्ति का चेहरा और कानों में उसके कहे शब्द, ‘जो तुम बुरा करोगे, वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे, वह तुम तक लौट के आएगा।’, गूंजने लगे। आज वह उन शब्दों का अर्थ बहुत अच्छे से समझ चुकी थी।
दोस्तों, कहने के लिए यह घटना काल्पनिक है लेकिन ईश्वर का न्याय ऐसा ही होता है। इसीलिए मैंने पूर्व में कहा था, ‘यक़ीन मानियेगा कर्मों का फल एक ना एक दिन लौट कर वापस ज़रूर आता है।’ इसलिए दोस्तों, आज नहीं अभी से ही हमेशा अच्छा करने की आदत डालिये और कभी भी अच्छा करने से ख़ुद को रोकिए मत, फिर चाहे उसके लिए कोई आपकी तारीफ़ कर रहा हो या नहीं; कोई आपको देख रहा हो या नहीं क्योंकि जैसा हम कर्म करते हैं, वैसा ही हमारे पास लौट कर आता है…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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