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Writer's pictureTrupti Bhatnagar

जैसा भोजन, वैसा मन…

Nov 21, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, ज़िंदगी हमें नित नए रंग दिखाती है, इसलिए किसी एक सूत्र या किसी एक शैली से इसे पूर्ण रूप से जी पाना मुझे थोड़ा असंभव सा लगता है। इसलिए मैंने अपने इस लेख में सुख, शांति, संतुष्टि आदि को पाने के कई सारे सूत्र बताये हैं जो निश्चित तौर पर हमें पूर्णता के साथ ज़िंदगी जीने में मदद करते हैं। लेकिन अगर आप उन सभी सूत्रों को गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि सभी सूत्र परिस्थिति के स्थान पर मनःस्थिति पर आधारित हैं। इसलिए आज के लेख में हम नकारात्मकता के अलावा जो बात हमारे मन को सबसे अधिक प्रभावित करती है, उसे एक कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं।


बात कई साल पुरानी है, चावल के एक प्रसिद्ध व्यापारी की साँठ-गाँठ एक ऐसे शख़्स से हो गई, जो उसे अन्न के गोदाम में से उच्च क्वालिटी के चावल चुराकर बहुत ही सस्ते दाम में उपलब्ध करा दिया करता था। इन चोरी के चावलों को बेचने के कारण सेठ दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की करने लगा। कुछ ही सालों में यह आलम हो गया कि सेठ की गिनती शहर के सबसे अमीर इंसान के रूप में होने लगी।


एक दिन किसी के टोकने पर सेठ को एहसास हुआ कि मैंने बहुत पाप किए हैं। इसलिए अब मुझे थोड़ा धर्म-कर्म पर ध्यान देना चाहिए अन्यथा जीवन बर्बाद हो जायेगा। विचार आते ही सेठ ने अपने क्षेत्र के साधु-संतों को एक-एक करके भोजन के लिए आमंत्रित करना शुरू कर दिया। एक दिन शहर के बाहरी इलाक़े में रहने वाले एक साधु, सेठ के निमंत्रण पर, भोजन के लिए पधारे। सेठ ने उन्हें भोजन के साथ-साथ बढ़िया बासमती चावल की खीर परोसी। जिसे उन्होंने बहुत ही चाव के साथ ग्रहण किया।


चूँकि वक्त दोपहर का था और मौसम गर्म इसलिए सेठ ने साधु महाराज से निवेदन किया कि ‘महाराज! अभी आप यहीं आराम कर लीजिए। जब धूप कम हो जाएगी फिर पधारियेगा।’ साधु महाराज को सेठ की बात जँच गई और वे सेठ के बताये कमरे में विश्राम करने चले गए। उस कमरे में सेठ ने सौ-सौ की गड्डियों के रूप में दस लाख रुपये पलंग के नीचे, चद्दर से ढक कर रखे हुए थे। खीर पचने और कुछ देर विश्राम करने के बाद जब साधु महाराज पलंग से उठे तो अनायास ही उनका ध्यान रुपयों पर चला गया। इतने रुपये देखते ही उनके मन में लालच जगा कि अगर मैं इसमें से एक-दो गड्डी ले भी लूँ तो किसको पता चलेगा? विचार आते ही साधु महाराज ने एक सौ के नोट की एक गड्डी उठाकर अपने झोले में डाल ली और शाम को सेठ को ढेर सारा आशीर्वाद देकर वहाँ से पधार गए।


दूसरे दिन जब सेठ रुपये गिनने बैठा तो उसे पता चला कि कुल रकम में से सौ की एक गड्डी कम है। सेठ ने सोचा, ‘साधु तो बड़े पहुँचे हुए इंसान और प्रभु श्री राम के बड़े भक्त थे। इसलिए वे तो नोटों की गड्डी नहीं लेंगे। फिर यह कार्य निश्चित तौर पर नौकरों का होगा।’ विचार आते ही सेठ ने नौकरों की खिचाई करना चालू कर दिया। लेकिन इसके बाद भी जब नौकर नहीं माने तो सेठ ने उनकी धुनाई करना चालू कर दिया। ऊहापोह की इस स्थिति में कब कई घंटे गुजर गए सेठ को पता ही नहीं चला। तभी अचानक साधु महाराज वहाँ पहुँचे और अपने झोले से सौ के नोटों की गड्डी निकाल कर सेठ को देते हुए बोले, ‘नौकरों को मत पीटना, गड्डी मैं चुरा कर ले गया था।’


सेठ साधु महाराज को प्रणाम करता हुआ बोला, ‘महाराज, आप क्यों चुरायेंगे? निश्चित तौर पर आपको नौकरों से पूछताछ के विषय में पता चला होगा या फिर कोई आपको डर के मारे वह गड्डी दे गया होगा और आप उसे बचाने के उद्देश्य से ही इसे वापस करने आए होंगे। वैसे भी सच्चे साधु बड़े दयालु होते हैं।’ साधु ने सेठ की बात को बीच में ही काटते हुए कहा, ‘ यह दयालुता नहीं है, मैं सचमुच सौ की गड्डी चुराकर ले गया था। तुम तो बस सच-सच यह बताओ कि कल तुमने मुझे भोजन क्यों कराया था और खीर क्यों बनाई थी?’ साधु के कड़क भाव को देखकर सेठ ने सारी बात सच-सच बता दी। जिसे सुनते ही साधु महाराज बोले, ‘कल मैंने चोरी के चावल की खीर खाई थी इसलिए मेरे मन में भी चोरी का भाव उत्पन्न हो गया। सुबह जब पेट खाली हुआ और तेरी खीर का सफ़ाया हुआ। तब मेरी बुद्धि शुद्ध हुई।’ इतना कह कर साधु महाराज भगवान और सेठ से अपने ग़लत कर्म के लिए क्षमा मांगने लगे और अंत में बोले, ‘देख कैसा अनर्थ हो गया। मेरे कारण बेचारे नौकरों पर ना जाने क्या बीत रही होगी।’


दोस्तों, निश्चित तौर पर अब आप समझ ही गए होंगे कि नकारात्मक विचारों या लोगों के साथ के अलावा हमारे मन पर किस तरह का आप अन्न खा रहे हैं इसका भी प्रभाव पड़ता है। इसलिए दोस्तों हमेशा सही तरीके से ही पैसे कमाने का प्रयास करें क्योंकि इन्हीं पैसों से हम अन्न लाते हैं। दूसरी बात खाना बनाने से लेकर खाना खाने तक प्रार्थना करें और अन्न देवता से कहें कि यह अन्न हमारे जीवन को नई और सकारात्मक ऊर्जा देने वाला है। याद रखियेगा दोस्तों अब तो वैज्ञानिक प्रयोगों ने भी सिद्ध कर दिया है कि अन्न और पानी पर कहे गए शब्दों का प्रभाव पड़ता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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