July 27, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आइये दोस्तों, आज के शो की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, देशपुर के राजा शिकार करने के उद्देश्य से वन में गये थे। जंगल के बीच एक जानवर का पीछा करते-करते राजा रास्ता भटक गये। रास्ता खोजते हुए जब वे एक बस्ती के पास से गुजरे, तब उनका ध्यान पिंजरे में बंद एक तोते पर गया जो ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला कर कह रहा था, ‘उठो सालों, पकड़ो इस घुड़सवार को… छीन लो इसके सारे ज़ेवर और घोड़ा… मार डालो साले को…’ तोते की बात सुनते ही राजा ने पूरे वेग से अपने घोड़े को दौड़ा दिया। वे समझ गये थे कि गलती से वे डाकुओं के इलाक़े में पहुँच गये हैं। काफ़ी देर तक इसी तरह घोड़ा दौड़ाते हुए किसी तरह राजा ने अपनी जान बचाई।
कुछ देर पश्चात राजा एक और बस्ती के पास से गुजरे। इस बस्ती में भी एक तोता पिंजरे में बंद था। राजा को देखते ही यह तोता बड़ी मीठी आवाज़ में बोला, ‘आइये राजन, स्वागत है आपका। महात्मा जी इधर आइये देखिये, आज हमारे यहाँ अतिथि पधारे हैं। अर्ध्य लाइये… आसान लाइये…’ तोते की बात सुन महात्मा बाहर आये और राजा का अच्छे से स्वागत-सत्कार किया। उन्हें अच्छे से भोजन-पानी कराकर, जंगल से बाहर निकलने का रास्ता बताकर विदा किया।
दोस्तों, एक बात बताइये दोनों ही बस्तियों याने डाकुओं और ऋषि-मुनियों की बस्ती में एक ही प्रजाति के जीव के स्वभाव और भाषा में इतना अंतर क्यों था? आप कहेंगे जो तोता डाकुओं के साथ रहता था, उसने उनके हिंसक और अमर्यादित बोल सुन, वैसा ही बोलना और व्यवहार करना शुरू कर दिया था और जो तोता ऋषि-मुनियों की बस्ती में रहता था, वह वैसा ही मधुर और मर्यादित भाषा बोलना सीख गया।
इसका अर्थ हुआ जो जीव जिस संगत में रहता है उसमें वैसे ही गुण-दोष विकसित हो जाते हैं और वह वैसी ही भाषा बोलने और वैसा ही व्यवहार करने लगता है। इस आधार पर कहा जाये तो आज हमें समाज में जो मूल्य गिरते हुए नज़र आ रहे हैं, उसका भी मुख्य कारण ग़लत संगत या साथ का होना है। आपको शायद मेरी बात अस्पष्ट और अतिशयोक्ति पूर्ण लग सकती है। लेकिन अपना दायरा थोड़ा सा बढ़ा कर देखिये। आप स्वयम् समझ जाएँगे कि यह ग़लत साथ इस बार हमें हमारे जीवन को बेहतर, सुविधाजनक और आरामदायक बनाने वाले डिजिटल युग की वजह से ही हुआ है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो कहीं ना कहीं इंटरनेट, वेब सीरीज़, फ़िल्में और टीवी हमारी या समाज की सोच को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है।
लेकिन अब आप कहेंगे कि इंटरनेट पर दिखाई या बताई गई बातें, फ़िल्म, टीवी सीरियल, वेब सीरीज़ आदि हमारे समाज का आईना है। हो सकता है आप बिलकुल सही कह रहे हों और शायद कुछ हद तक मैं भी इससे सहमत हूँ। लेकिन इसका अर्थ यह क़तई नहीं है कि हमारे लिये आईने में दिखाई जाने वाली कुछ ग़लत लोगों की छवि को देखना ज़रूरी है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो समाज में अच्छे और बुरे दोनों ही तरह के लोग मौजूद हैं। उनमें से मान लीजिये इंटरनेट, वेब सीरीज़, फ़िल्में और टीवी ग़लत लोगों की छवि को प्रसारित कर रहे हैं, तो उसे नज़रंदाज़ करना हमारे लिये आवश्यक हो जाता है।
ऐसा कहने का दोस्तों एक बहुत बड़ा कारण है, मनुष्य अपना समय जिन लोगों या विचारों के साथ बिताता है वह वैसा ही बन जाता है। इसलिये हमें इंटरनेट, वेब सीरीज़, फ़िल्में और टीवी अथवा किसी भी अन्य माध्यम से बताये जाने वाले हर प्रदूषित विचार से बचना होगा। अन्यथा वह ग़लत विचार आपके अंतर्मन को प्रदूषित कर आपके जीवन मूल्यों को गिरा सकता है। मेरी नज़र में तो इसी चूक की वजह से आज की युवा पीढ़ी असभ्य भाषा, गिरते जीवन मूल्य आदि को अपना कर, भटकती जा रही है। इसलिये साथियों, हमारे धर्मग्रन्थों में कहा गया है, ‘संसर्गजा दोष - गुणा भवंति!’ अर्थात् ‘जैसा संग, वैसा रंग’ या ‘जैसी संगत, वैसी रंगत।’ अगर आप अपने बच्चों या आने वाली पीढ़ी को अच्छे संस्कार देना चाहते हैं; उन्हें अच्छी बातें सिखाना चाहते हैं तो यह आप ही की ज़िम्मेदारी है कि आप उन्हें ग़लत संगत से बचाकर अच्छा साथ उपलब्ध करवायें और यह आपके ग़लत संगत को छोड़े बिना संभव नहीं होगा। एक बार विचार कर देखियेगा ज़रूर…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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