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जैसी नज़र, वैसे नज़ारे!!!

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Aug 8, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, किसी ने बिलकुल सही कहा है, ‘जैसी नज़र, वैसा नजारा!’ या ‘आप जैसे हैं, आपको यह दुनिया ठीक वैसी ही नज़र आएगी।’ इसका सीधा-सीधा अर्थ हुआ अगर हमें यह दुनिया बिगड़ती और गर्त में जाती नज़र आ रही है, तो निश्चित तौर पर हम भी अपने जीवन को जीवन मूल्यों और इंसानियत के आधार पर नहीं जी पा रहे हैं। अपनी बात को मैं आपको गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़े एक क़िस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ।


बात उस समय की है जब गौतम बुद्ध संन्यास लेने के बाद अलग-अलग शहरों या क्षेत्रों की यात्रा कर रहे थे। इस यात्रा का मूल उद्देश्य मन में उठी जिज्ञासाओं के समाधान खोजना था। ऐसी ही एक यात्रा के दौरान एक बार गौतम बुद्ध ने रात्रि विश्राम के लिये एक गाँव में रुकने का निर्णय लिया। इस दिन उनका सत्संग ग्रामवासियों को इतना पसंद आया कि उन्होंने गौतम बुद्ध से कुछ दिन और रुकने का आग्रह किया, जिसे उन्होंने स्वीकार लिया।


एक दिन एक महिला उनके पास आई और सत्संग के पश्चात उनसे बोली, ‘महात्मा जी, देखने में तो आप कोई राजकुमार लगते हैं। क्या मैं जान सकती हूँ कि आपने इतनी कम उम्र में गेरुआ वस्त्र पहनने का निर्णय क्यों लिया?’ प्रश्न सुन गौतम बुद्ध मुस्कुराए और फिर बहुत विनम्रतापूर्वक बोले, ‘तीन प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए मैंने संन्यास लिया है।’ जवाब सुन उस महिला की जिज्ञासा और बढ़ गई, उसने बात आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘क्या आप विस्तार से बता सकते हैं?’ गौतम बुद्ध उसी विनम्रता के साथ बोले, ‘हमारा यह शरीर जो युवा व आकर्षक है, जल्द ही वृद्ध होगा और फिर बीमार व अंत में मृत्यु के मुँह में चला जाएगा। मुझे वृद्धावस्था, बीमारी व मृत्यु के कारण का ज्ञान प्राप्त करना है।’


गौतम बुद्ध के विचारों ने महिला पर जादू सा किया। उसने तुरंत गौतम बुद्ध को अपने घर भोजन पर आमंत्रित कर लिया। जल्द ही यह बात पूरे गाँव में आग की तरह फेल गई। जिसे सुन सभी गाँव वासी एकत्र हो गौतम बुद्ध के पास पहुँचे और आग्रह करते हुए बोले, ‘महात्मन, आप उस स्त्री का आमंत्रण अस्वीकार कर दें और उसके यहाँ भोजन करने के लिए ना जाएँ क्योंकि वह चरित्रहीन महिला है।’ बुद्ध ने उसी वक़्त गाँव के मुखिया की ओर देखा और कहा, ‘मुखिया जी, क्या आप भी मानते हैं, क्या वह महिला चरित्रहीन है?’ मुखिया बोले, ‘महात्मन, मैं शपथ लेकर कह सकता हूँ कि उस महिला का चरित्र ठीक नहीं है। कृपा करके आप उसके घर ना जाएँ।’


मुखिया की बात पूरी होते ही गौतम बुद्ध ने उनका दायां हाथ कस कर पकड़ा और ताली बजाने के लिए बोला। इस पर मुखिया जी बोले, ‘महात्मन मेरे लिये एक हाथ से ताली बजाना संभव नहीं है।’ इतना सुनते ही बुद्ध बोले, ‘यही बात मैं तुम सभी को समझाना चाहता हूँ। एक स्त्री स्वयं चरित्रहीन कैसे हो सकती है, जब तक कि इस गाँव के पुरुष चरित्रहीन ना हों। आप स्वयं सोच कर देखिए, अगर इस गांव के सभी पुरुष अच्छे होते, तो क्या यह औरत ऐसी होती? नहीं ना! इसलिए इसके चरित्र के लिए यह स्वयं नहीं, यहाँ के पुरुष जिम्मेदार है।


इसीलिए दोस्तों, मेरा मानना है जैसे गुण या दुर्गुण हमारे अंदर होंगे, हमें दुनिया में वही गुण या दुर्गुण बढ़ते नज़र आयेंगे। आप स्वयं सोच कर देखिए अगर कोई इंसान छल, कपट, स्वार्थ, लालच, बेईमानी, झूठ, दूसरे के हक़ को मारकर जीना आदि जैसे नकारात्मक नज़रिए से काम करता होगा, तो क्या उसे कभी जमाने में सच्चाई नज़र आएगी? मेरी नज़र में तो नहीं। इसीलिए दोस्तों मैं कहता हूँ, ‘जैसी नज़र, वैसे नज़ारे!’

-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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