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जैसी संगत, वैसी रंगत…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Feb 15, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। एक बार एक राजा जंगल से गुजरते वक्त अपने सैन्य दल से बिछड़ गया। काफ़ी देर तक अपने सैनिकों को खोजने का प्रयास करने के बाद उन्होंने अकेले ही जंगल के दूसरी ओर अपने राज्य लौटने का निर्णय लिया। जब वह अपने घोड़े पर चढ़कर वन के घने इलाक़े के बीच बसी एक छोटी सी बस्ती के पास से गुजर रहा था, तब एक झोपड़ी के बाहर, पिंजरे में बंद तोता अचानक ही पुकार उठा, ‘मरदुतों कहाँ मरे पड़े हो, जल्दी उठो और पकड़ो इसे… जल्दी दौड़ो और पकड़ो… मार डालो इसको… इसके गहने, हथियार और घोड़ा छीन लो… जल्दी करो, नहीं तो यह भाग जाएगा…’


तोते की भाषा से राजा तुरंत समझ गया कि वह गलती से डाकुओं की बस्ती में आ पहुँचा है। उसने बिना एक पल भी गँवाए घोड़े को ऐंठ लगाई और उसे पूरे वेग से घोड़ा दौड़ा दिया। काफ़ी दूर तक तो डाकुओं ने उसका पीछा किया लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हो गया कि राजा को पकड़ना उनके लिए संभव नहीं है। हताश होकर डाकुओं ने राजा का पीछा करना छोड़ दिया और वापस अपनी बस्ती की ओर लौट आए। राजा ने कुछ ही क्षणों में डाकुओं से दूर ले आने के कारण अपने घोड़े की पीठ थपथपाई और एक बार फिर जंगल के पार जाने का रास्ता तलाशने लगा।


इसी तरह दौड़ते-भागते आगे जाकर राजा को कुछ ऋषि-मुनियों का आश्रम दिखाई दिया। थका-हारा राजा तुरंत मदद की आस लिए आश्रम की ओर चल दिया। आश्रम के बाहर भी तोते का एक पिंजरा बंधा हुआ था। राजा को देखते ही पिंजरे में बंद तोता ज़ोर-ज़ोर से बोलने लगा, ‘आईए राजन, स्वागत है आपका। यहाँ विराजिए… गुरुवर जल्दी आईए, देखिए आज हमारे आश्रम में अतिथि पधारे है। जल्दी से कोई आसन लाओ… पानी लाओ…’ तोते की बात सुन मुनि तुरंत अपनी कुटिया से बाहर आए और राजा का यथोचित स्वागत-सत्कार किया।


ऋषि-मुनियों द्वारा स्वागत स्वीकार करने के पश्चात, राजा ने मुनियों को प्रणाम करते हुए पूछा, ‘गुरुवर, एक दुविधा का समाधान चाहता हूँ। एक ही जाति के दो पक्षी के स्वभाव में; वाणी में; इतना अंतर क्यों देखने को मिलता है?’ राजा के प्रश्न का मुनि कुछ जवाब देते उससे पहले ही तोता बोल पड़ा, ‘राजन मुझे लगता है आप डाकुओं की बस्ती में मेरे छोटे भाई से मिल आए हो।’ इतना कहकर तोता एक पल के लिये रुका, फिर बोला, ‘राजन, हम दोनों एक ही माता-पिता की संतान हैं। गलती से उसे बहेलिये ने पकड़ कर डाकुओं को दे दिया और मुझे मुनि को। वह हिंसक डाकुओं और भीलों के बीच रहकर; उनकी बातें सुनकर बड़ा हो रहा है और मैं संतों के बीच में उनकी वाणी; उनके वचन सुनकर।’


निश्चित तौर पर दोस्तों, तोते की बात सुनकर राजा को अपने प्रश्न, ‘एक ही जाति के दो पक्षी के स्वभाव में; वाणी में; इतना अंतर क्यों देखने को मिलता है?’, का बिलकुल सही और सटीक जवाब मिल गया होगा। लेकिन फिर भी हम संक्षेप में उसपर चर्चा कर लेते हैं। असल में दोस्तों, जो जिस संगत में रहता है, उसमें वैसे ही गुण या दोष आ जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अच्छी संगति जहाँ मनुष्य को महान बना सकती है, वही बुरी संगति उसका पतन करा सकती है। जिस तरह पारस पत्थर के संपर्क में आने पर लोहा, सोना बन जाता है, उसी तरह अच्छे इंसान के संपर्क में आने पर दुष्ट से दुष्ट व्यक्ति भी इंसान रूपी देवता बन सकता है और बुरी संगति देवता को भी दुष्ट बना सकती है। इसी को आधार बनाकर कवि श्री सुबा लाल जी ने कहा है,

‘पवन संग मिलि धूल, बन आँधी छुए आकाश। वही धूल कीचड़ बने, जल संग जब बहि जात।।

तोता साधु घर पले, करे राम का जाप। हत्यारा संग पाय वह, कहे काट रे काट।।’

ठीक इसी तरह हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है, ‘संसर्गजा दोष, गुणा भवंति।’ अर्थात् जैसे वातावरण याने संगति में आप रहेंगे, वैसे ही आप बन जाएँगे।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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