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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

जैसे को तैसा…

Dec 12, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आइए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत पंचतंत्र से ली गई एक कहानी से करते हैं। प्राचीन समय में नगर में अकेले रहने वाले जीर्णधन ने धन अर्जित करने के लिए विदेश जाने का सोचा। आगे पीछे कोई ना होने के कारण ऐसा करना उसके लिए मुश्किल भी नहीं था। उसके पास १ मन याने ४० किलो के लोहे के तराज़ू के अलावा कोई विशेष संपत्ति तो थी नहीं, इसलिए उसने उसे नगर के महाजन के यहाँ धरोहर के रूप में रखा और फिर विदेश चला गया।


आवश्यकतानुसार धन कमाने के बाद जीर्णधन एक दिन विदेश से वापस गाँव लौट आया और महाजन के पास जाकर अपने तराज़ू माँगने लगा। महाजन ने उसे अपने समीप बैठाया और बड़े प्यार से बोला, ‘जीर्णधन, तुम्हारी लोहे की तराज़ू को चूहे खा गए।’ महाजन की बात सुन जीर्णधन समझ गया कि उसके मन में खोट आ गई है और अब वह तराज़ू वापस नहीं देना चाहता है। जीर्णधन ने अपनी बुद्धि से काम लिया और बड़ी विनम्रता के साथ बोला, ‘अब तराज़ू को चूहे खा गए तो इसमें तुम क्या करोगे। इसलिए अब व्यर्थ की चिंता छोड़ो क्योंकि गलती तुम्हारी नहीं, चूहों की है।’ इतना कहकर जीर्णधन वहाँ से वापस चला गया।


इसके बाद जीर्णधन कई बार उस महाजन से मिला लेकिन उसने कभी तराज़ू के विषय में उससे कोई बात नहीं करी। एक दिन जीर्णधन महाजन के पास पहुँचा और उससे बोला, ‘मैं नदी किनारे स्नान करने के लिए जा रहा हूँ। तुम चाहो तो अपने पुत्र धनदेव को मेरे साथ भेज दो, वह भी नहा के आ जाएगा।’ इतने दिनों में महाजन, जीर्णधन की बातों से प्रभावित हो गया था, इसलिए वह अपने पुत्र को जीर्णधन के साथ स्नान करने के लिए भेजने के लिए उसी क्षण तैयार हो गया।


जीर्णधन, महाजन के पुत्र धनदेव को वहाँ से लेकर निकला और कुछ ही दूरी पर स्थित एक गुफ़ा में उसे बंद कर दिया। धनदेव वहाँ से भाग ना पाये इसलिए उसने गुफ़ा के मुहाने पर एक बड़ी से चट्टान रख दी। इसके बाद जीर्णधन नदी गया और वहाँ से नहाकर वापस महाजन के पास पहुँच गया। उसे अकेले देख महाजन ने पूछा, ‘मेरा बेटा धनदेव कहाँ है? वह तो तुम्हारे साथ ही नहाने के लिए नदी गया था।’ जीर्णधन पूर्व की ही तरह पूर्ण शांत भाव के साथ बोला, ‘उसे तो चील उठा कर ले गई।'


महाजन को लगा जीर्णधन मजाक कर रहा है। लेकिन जब थोड़ा और वक्त बीतने के बाद भी धनदेव वापस नहीं आया तो महाजन ने अपना प्रश्न वापस से दोहराया, जिसे सुन जीर्णधन बोला, ‘मैंने आपको बताया ना कि धनदेव को चील उठा कर ले गई है।’ बनिया इस बार थोड़ा चिढ़ते हुए बोला, ‘क्या फालतू की बात कर रहे हो। चील इतने बड़े बच्चे को उठाकर नहीं ले जा सकती है।’ इतना सुनते ही जीर्णधन बोला, ‘तो चूहे भी एक मन भारी तराज़ू को नहीं खा सकते।’


इसी तरह के आरोप-प्रत्यारोप के कारण कुछ ही देर में विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों इस समस्या को लेकर राजमहल पहुंच गए। वहां न्याय अधिकारी के सामने महाजन ने अपने दुख भरी कथा सुनाई और जीर्णधन पर आरोप लगाया इसने मेरे बच्चे को चुरा लिया है। न्याय अधिकारी जीर्णधन से बोले, ‘इसका लड़का इसे दे दो।’ जीर्णधन पूरी तरह शांत भाव के साथ बोला, ‘मैं कहाँ से इनके बच्चे को लौटाऊँ? मैंने इनके बच्चे को नहीं चुराया है न्याय अधिकारी महोदय, उसे तो चील उड़ा कर ले गई है।’ न्याय अधिकारी आश्चर्य मिश्रित स्वर में बोले, ‘कैसी अजीब सी बात करते हो? चील कोई इतने बड़े बच्चे को उड़ा कर ले जा सकती है?’ जीर्णधन बोला, ‘महोदय, मेरे एक मन के लोहे के तराज़ू को अगर चूहे खा सकते हैं तो इनके बच्चे को भी चील उड़ा कर ले जा सकती है।’ जीर्णधन का जवाब सुन न्याय अधिकारी ने सारी बात विस्तारपूर्वक बताने का कहा, जिससे कुछ ही मिनटों में दूध का दूध और पानी का पानी हो गया और जीर्णधन को उसके एक मन भारी तराज़ू और महाजन को उसका बेटा मिल गया।


दोस्तों, प्रकृति का एक ही नियम है, ‘जैसे को तैसा!’ अर्थात् यहाँ देर-सवेर ही सही, लेकिन हर सेर को सवा सेर मिलता है। इसलिए दोस्तों, आपके कर्म हमेशा ऐसे होने चाहिए कि जब उसका फल आपको मिले तो किसी तरह का कोई पश्चाताप ना हो। एक बार विचार कर देखियेगा…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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