May 11, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, प्रकृति या यह सृष्टि हमारी प्राथमिकताओं, हमारी इच्छा या हमारे लिए लाभप्रद स्थिति के अनुसार नहीं अपितु अपने नियमों के हिसाब से चलती है और इसी प्रकृति या सृष्टि का एक नियम है, ‘जो आप बोएँगे, वही आप पाएँगे।’ इसी बात को अगर मैं गीता जी के अनुसार कहूँ तो ‘जैसा कर्म आप करते हैं, वैसा ही फल आपको प्राप्त होता है।’ वैसे दोस्तों, यही बात मुझे सामान्य व्यवहार पर भी लागू होती हुई प्रतीत होती है अर्थात् दोस्तों जिस तरह का व्यवहार आप दूसरों से करेंगे, ठीक वैसा ही व्यवहार वो आपसे करेंगे। इसलिए, हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण यह जानना हो जाता है कि हम इस दुनिया से चाहते क्या हैं और जब आप यह जान लें, तब आप उसके अनुसार ही इस प्रकृति या सृष्टि को देना शुरू करें। जल्द ही आप पाएँगे कि इस सृष्टि ने आपको वही सब कई गुना बढ़ा कर देना शुरू कर दिया है।
अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ, जिसे आपने संभवतः पहले भी सुना होगा। बात कई साल पुरानी है, गाँव में एक बहुत ही ईमानदार और मेहनतकश किसान अपने परिवार के साथ रहा करता था। जिस समय किसान अपने खेत में कार्य करता था उस वक़्त उसकी पत्नी दूध से दही और फिर दही से मक्खन और घी बनाया करती थी। जिसे किसान एक-एक किलो की पैकिंग में पैक कर, शहर में बेच दिया करता था।
एक दिन किसान की पत्नी ने मक्खन बनाया जिसे किसान ने एक-एक किलो की पैकिंग में पैक किया और हमेशा की भाँति शहर की एक तय दुकान पर जाकर मक्खन बेचा और उससे मिले पैसे से एक किलो दाल, एक किलो शक्कर, एक किलो चावल, एक लीटर तेल आदि लेकर वापस गाँव आ गया।
किसान के जाने के बाद दुकानदार के मन में विचार आया कि क्यों ना एक बार किसान द्वारा लाये गये मक्खन का वजन जाँच लिया जाये? विचार आते ही दुकानदार ने मक्खन का वजन जाँचा तो पाया कि प्रत्येक पैक 1 किलो का नहीं, बल्कि 900 ग्राम का है। दुकानदार को किसान पर बहुत ग़ुस्सा आया और उसने अपने कर्मचारियों के समक्ष उसे बहुत भला-बुरा कहा। अगले सप्ताह वही किसान एक बार फिर मक्खन बेचने के लिए उसी दुकानदार के पास पहुँचा, उसे देखते ही दुकानदार को कम वजन वाली बात याद आ गई और उसने उसपर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दिया… ‘चल भाग बेईमान। मेरी दुकान के अंदर घुसने की जुर्रत भी मत करना। मैं धोखेबाज़ों और मक्कारों के साथ व्यापार नहीं करता हूँ। मैं तो तुम्हारा चेहरा भी नहीं देखना चाहता हूँ। मैं तुम पर विश्वास करके हमेशा बिना वजन जाँचे मक्खन ले लिया करता था, लेकिन इस बार जाँचने पर मुझे पता चला कि हर बार तुम 1 किलो की जगह मात्र 900 ग्राम मक्खन दे जाते हो।’
पूरी बात सुनने और समझने के बाद किसान बड़ी नम्रता के साथ बोला, ‘सेठ जी नाराज़ ना हों। मैं तो ठहरा एक ग़रीब किसान। जैसे-तैसे अपना जीवन चलाता हूँ। कुछ माह पूर्व मेरा वजन करने का बाट घूम गया था और मेरे पास नया बाट ख़रीदने के लिए पैसे भी नहीं थे। इसलिए मैंने तराज़ू के एक पलड़े में बाट की जगह आपके यहाँ से ले जाई गई चीनी की थैली रख मक्खन को तोलना शुरू कर दिया था।’
किसान की बात सुनने के बाद दुकानदार की क्या हालत हुई होगी दोस्तों यह बताने की ज़रूरत नहीं है। उसे आज फल के रूप में वही मिल रहा था, जो उसने बोया था। अगर उसने ईमानदारी बोई होती तो उसे ईमानदारी वापस मिलती, लेकिन उसने तो बेईमानी और चालाकी की फसल बोई थी, इसलिए वह घूम कर उसी के पास वापस आई। यही तो प्रकृति का या हमारी इस सृष्टि का नियम है। इसीलिए तो मैंने पूर्व में कहा था, ‘प्रकृति या यह सृष्टि हमारी प्राथमिकताओं, हमारी इच्छा या हमारे लिए लाभप्रद स्थिति के अनुसार नहीं अपितु अपने नियमों के हिसाब से चलती है और इसी प्रकृति या सृष्टि का एक नियम है, ‘जो आप बोएँगे, वही आप पाएँगे।’ फिर चाहे वह सम्मान हो या नफ़रत या फिर विश्वास हो या धोखा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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