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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

जो उपयोगी है, वही मूल्यवान है…

Sep 29, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जिस तरह देकर ही पाने के रास्ते खुलते है, ठीक उसी तरह दूसरों के लिए जीकर ही आप दूसरों को अपने लिए जीने के लिए तैयार करते हैं। इस स्थिति को आप बाग़वानी या कृषि से भी जोड़कर देख सकते हैं अर्थात् जब आप अपने बाग या खेत का अच्छे से ख़्याल रखते हैं, उसमें अपना समय देकर उन्हें खाद पानी देते हैं, उनकी उचित देख-रेख करते हैं तो वही बाग समय आने पर आपको फल और ठीक उसी तरह खेत आपको फसल वापस देता है।


दोस्तों जीवन चक्र ठीक इसी तरह चलता है, लेकिन अक्सर अपने स्वार्थ के कारण हम इसे भूल जाते हैं। आप स्वयं सोचकर देखिए, अगर हम अपने बाग या खेत की उपेक्षा करने लगें तो क्या होगा? निश्चित तौर पर वे हमें अपनी शीतल छाया, फल और फसल से वंचित कर देंगे। ठीक ऐसी ही स्थिति अक्सर विभिन्न रिश्तों में हमें देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए अगर आप अपने कर्मचारियों का अच्छे से ध्यान नहीं रखेंगे; आप उन्हें उचित सम्मान, मानदेय आदि नहीं देंगे तो वे निश्चित तौर पे आपके हितों के अनुरूप अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पायेंगे। ठीक ऐसा ही आप बच्चों के लालन-पालन के संदर्भ में भी कह सकते हैं। अगर आप बच्चों को अपना समय नहीं देंगे तो वे सही संस्कार नहीं सीख पायेंगे और अपनी संस्कृति से नहीं जुड़ पायेंगे। फिर भले ही आपने उन्हें कितने ही संसाधन क्यों ना दे दिये हों।


अब दोस्तों इसके विपरीत स्थिति को सोच कर देखिए। मान लीजिए आप अपने बच्चों को आवश्यकतानुसार क्वालिटी टाइम दे रहे हैं; उन्हें उस समय में सही बातें सिखाकर अपनी संस्कृति से जोड़ते हुए संस्कारवान बना रहे हैं। तो अब आप बताइए उनका आने वाला जीवन कैसा रहेगा? निश्चित तौर पर फल देने वाले वृक्ष की तरह मधुर और सुखद। सही है ना साथियों? इसी उदाहरण को आप बाग में उपलब्ध आम और बबूल के पेड़ से भी जोड़कर देख सकते हैं। अर्थात् अगर हमारा जीवन आम की तरह मधुर फल देने वाला होगा तो हम सभी के चहेते बन जाएँगे और फिर हर कोई हमारा ध्यान रखेगा; हमारी सेवा और सुरक्षा में लग जाएगा और अगर हमने इसके ठीक विपरीत बबूल के पेड़ की तरह चुभने वाला व्यवहार किया तो निश्चित तौर पर हम बबूल की ही तरह उखाड़ फेंक दिये जाएँगे। अर्थात् समाज में रहते हुए भी अलग-थलग पड़ जाएँगे।


इसका अर्थ हुआ जो उपयोगी है, वही मूल्यवान है। यही प्रकृति का शाश्वत नियम है। इस आधार पर कहा जाये साथियों तो सही जीवन जीने का तरीक़ा परमार्थ और परोपकार के रास्ते से जाता है। अर्थात् जब तक हम परमार्थ और परोपकार का रास्ता नहीं चुनेंगे, तब तक समाज में हमारी उपयोगिता सिद्ध नहीं होगी और जब तक हम समाज के लिए ख़ुद को उपयोगी सिद्ध नहीं करेंगे, तब तक हम अपनी प्रतिष्ठा भी स्थापित नहीं कर पायेंगे। इस आधार पर कहा जाये तो परोपकार और परमार्थ ही प्रतिष्ठा को जन्म देता है। इसलिए आज नहीं अभी से ही आप दूसरों के लिए अच्छा सोचना शुरू करें; दूसरों के लिए ही जीना सीखें, फिर देखियेगा प्रतिदिन हज़ारों-लाखों लोग आपके लिए प्रार्थना करने को आतुर रहेंगे।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

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