जो जैसा है, उसे सहजता के साथ वैसे ही स्वीकारें…
- Nirmal Bhatnagar
- Jul 18, 2024
- 3 min read
July 18, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, ज़िंदगी को अगर पहली प्राथमिकता पर रखकर सोचा जाये, तो इस जीवन को जीना बहुत ही सहज है। जी हाँ दोस्तों, अगर वाक़ई में आपकी प्राथमिकता खुश, संतुष्ट और शांतिपूर्ण जीवन जीना है तो आप इस लक्ष्य को वाक़ई सहजता से पा सकते हो। लेकिन हाँ, सहज होना वाक़ई आसान नहीं है क्योंकि इसके लिए आपको लोभ, मोह, माया, भोग, अभिमान, अहंकार, तुलना आदि जैसे कई भावों को जीतना होगा। चलिए, इसी बात को हम एक कहानी के माध्यम से और अच्छी तरह समझने का प्रयास करते हैं।
बात कई साल पुरानी है, राजपुर में एक बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति रहा करता था। राजपुर और आस-पास के पूरे इलाक़े में उसकी प्रसिद्धि बहुत अधिक थी। इसी लिये सभी लोग उसकी जय-जयकार किया करते थे, जिसके कारण उसके अंदर दंभ और अहंकार ने जन्म ले लिया था। इसी कारण उस ज्ञानी व्यक्ति ने अपने ज्ञान का प्रदर्शन कर इतराना शुरू कर दिया था। अब वह कहीं भी जाता था तो दिखावे के लिए अपनी पीठ पर ज्ञान का पूरा भंडार लाद कर ले जाता था।
एक बार इस ज्ञानी व्यक्ति ने दूसरे देश जाने का निर्णय लिया और अपनी पीठ पर पूरा ज्ञान का भंडार लाद, निकल लिया। रास्ते में जब वह एक पहाड़ी पार कर रहा था, तब उसे तेज भूख लगने लगी। खाने की वस्तु तलाशने के लिए उसने चारों ओर नज़र घुमा कर देखा तो उसे एक बूढ़ी महिला बड़े पत्थरों के पीछे रोटी सेकते नज़र आई। ज्ञानी व्यक्ति तुरंत उसके पास पहुँचा और उससे अनुरोध करते हुए बोला, ‘माँ, मुझे काफ़ी तेज भूख लगी है। क्या आप मुझे भी एक रोटी खिला सकती हैं?’ बूढ़ी अम्मा के हाँ कहते ही ज्ञानी व्यक्ति बोला, ‘माँ, मेरे पास तुम्हें देने के लिए तो कुछ नहीं है। अगर आप चाहें तो मैं आपको रोटी के एवज़ में थोड़ा ज्ञान दे सकता हूँ।’ ज्ञानी व्यक्ति की बात सुन बूढ़ी अम्मा मुस्कुराई और बोली, ‘ठीक है। पहले तुम रोटी खा लो और फिर मेरे एक सवाल का जवाब दे देना।’
ज्ञानी व्यक्ति ने आराम से रोटी खाने के बाद बूढ़ी अम्मा से कहा, ‘माँ, अब पूछिए अपना सवाल।’ बूढ़ी अम्मा पूर्व की ही तरह मुस्कुराते हुए बोली, ‘अच्छा यह बताओ कि जो रोटी तुमने अभी-अभी खाई है, वह तुमने अतीत के मन से खाई है या वर्तमान के मन से या फिर भविष्य के मन से?’ सवाल सुनते ही ज्ञानी व्यक्ति भौंचक्का रह गया, उसे बूढ़ी अम्मा से इस तरह के सवाल की आशा ही नहीं थी। वह समझ ही नहीं पा रहा था कि इसका क्या जवाब दे? उसने अपनी पीठ से ज्ञान की बोरी उतारी और उसमें बुढ़िया के सवाल का जवाब तलाशने लगा। हज़ारों पन्ने पलटने के बाद भी उसे बूढ़ी अम्मा के सवाल का जवाब नहीं मिला।
जब काफ़ी देर तक ज्ञानी व्यक्ति जवाब नहीं दे पाया तो बूढ़ी अम्मा अपना सामान समेटते हुए बोली, ‘तुम रहने दो बेटा। इस सवाल का जवाब तुम्हारी यह किताबें और ज्ञान नहीं दे पाएगा क्योंकि तुम इस सवाल को बहुत जटिल मान कर, इसका हल शास्त्रों और अन्य माध्यमों से खोजने का प्रयास कर रहे हो। लेकिन हमारी ज़िंदगी में हर सवाल इतना जटिल नहीं होता है कि उसका जवाब इस तरह से खोजा जाए। इस प्रश्न का जवाब तो बड़ा सीधा सा था, आदमी रोटी अपने अतीत, वर्तमान या भविष्य के मन से नहीं अपितु अपने मुँह से खाता है। तुम बड़े ज्ञानी थे और समाज के बड़े व्यक्ति हो। इसी बात के अभिमान से याने तुमने अपने ज्ञान के बूते पर खुद को दुरूह बना लिया है, इसलिए हर सवाल के जवाब तुम पीठ पर लदे ज्ञान के बोझ में तलाशते हो, वर्ना ज़िंदगी को सहज रूप में जीने के लिए तो सहज ज्ञान की ही दरकार होती है।’
बात तो दोस्तों, बूढ़ी अम्मा की बहुत ही सटीक थी। सिर्फ़ सहजता के साथ ही हम अपने जीवन को शांतिपूर्ण तरीक़े से खुश और संतुष्ट रहते हुए जी सकते हैं। इसलिए सहजता से बढ़ कर जीवन को जीने का, कोई दूसरा मूलमंत्र है ही नहीं। जो आदमी सहज होता है, वो संतोषी होता है। जीवन के सफर को सुखमय बनाने का सबसे आसान फॉर्मूला यही है कि ‘जो जैसा है, उसे सहजता के साथ वैसे ही स्वीकारना शुरू कर दीजिए।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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