June 14, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
सामान्य दिनों की ही भाँति एक दिन राजू तपती दोपहर में, शहर के सबसे व्यस्त चौराहे के ट्रैफ़िक सिग्नल के पास, नंगे पैर ठंडे पानी की बोतल बेच रहा था। उसी समय महेश, जो कार से ऑफ़िस जा रहा था, लाल सिग्नल के कारण उस चौराहे पर रुका। जैसे ही उसकी निगाह राजू पर गई वह द्रवित हो उठा क्योंकि राजू के चेहरे के हाव-भाव साफ़-साफ़ बता रहे थे कि गर्म सड़क पर नंगे पैर खड़े रहना उसके लिए काफ़ी मुश्किल और परेशानी भरा है। महेश ने तुरंत अपनी कार सड़क किनारे खड़ी करी और पास ही की एक दुकान से नई चप्पल ख़रीद कर राजू को दे दी।
चप्पल पहनते ही राजू के चेहरे की चमक देखते ही बनती थी। कुछ पलों तक तो ऐसा लग रहा था मानो वह सातवें आसमान पर उड़ रहा है। महेश भी एकटक राजू को ही निहारे जा रहा था। थोड़ी देर बाद जब राजू थोड़ा सामान्य हुआ तो वह महेश का हाथ पकड़ता हुआ बोला, ‘क्या आप भगवान हैं?’ उसकी बात सुन महेश एकदम चौंक गया, पर किसी तरह खुद को संयमित रख बोला, ‘नहीं, मैं भगवान नहीं हूँ, पर तुमको ऐसा क्यों लगा?’ राजू बोला, ‘असल में कल रात को घर जाते समय ही मैंने मंदिर में भगवान से प्रार्थना करी थी कि ‘हे ईश्वर, कृपया मुझे एक चप्पल दिलवा दीजिए क्योंकि गर्म सड़क पर चलते समय मेरे पैर बहुत जलते है और आज आप मेरे लिए चप्पल लेकर आ गए।’ महेश के पास उस बच्चे राजू की बात का कोई जवाब नहीं था, वह बस हल्का सा मुस्कुरा कर रह गया। कुछ पलों की खामोशी के बाद राजू बोला, फिर मुझे लगता है आप कोई देवता होंगे, जिसे ईश्वर ने मेरी मदद करने के लिए भेजा है।’
वैसे देखा जाए तो उस बच्चे राजू की बात तो एकदम सही थी, क्योंकि जो देता है, वही देवता होता है और इस कहानी में महेश ने राजू को परेशानी में देख, चप्पल लाकर दी थी। इसीलिए कहा जाता है, ‘जब कोई मनुष्य समाज को कुछ देता है, तब वह देवता के रूप में स्व प्रतिष्ठित हो जाता है।’ वैसे भी अगर आप इस विषय में गहराई से सोचेंगे तो पाएँगे कि देना, अर्थात् दूसरों की मदद करने का विचार करना, ईश्वरीय कृपा और प्रेरणा के बिना कैसे सम्भव हो सकता है? मेरी बात से सहमत ना हों तो एक बार स्वयं से यह प्रश्न पूछ लीजिए, ‘क्या ईश्वर स्वयं किसी की मदद करने आ सकते हैं?’ जी नहीं, इसीलिए वह हममें से किसी के मन में सेवा का भाव जगाकर, जरूरतमंदों की मदद करते हैं।
जी हाँ दोस्तों, सेवा और त्याग की भावना, जिसकी वजह से इंसान किसी की मदद करता है, ईश्वर हर किसी को नहीं देता है। इसीलिए हम समाज में उसी मनुष्य को मूल्यवान मानते हैं जो जीवन में त्याग कर सेवा करता है। यही दो चीज़ें याने सेवा और त्याग मनुष्य का समाज की नज़र में मूल्य निर्धारण करती हैं। तभी तो हम इसे देवीय गुण मानते हैं। लेकिन अगर आप इस पर अभिमान करना शुरू कर देंगे, तो यह अभिशाप बन जाएगा।
जी हाँ साथियों, अगर देने का अभिमान किया तो फिर आप कोई भी क्यों ना हों नियति एक ना एक दिन आपके उस अभिमान को चूर-चूर कर देती है। इसलिए अगर आप दे रहे है तो सेवा और त्याग के साथ विनम्रता का भाव रखें और साथ ही खुद को याद दिलाएँ कि आप विशेष हैं इसलिए ईश्वर ने अपनी मदद किसी तक पहुँचाने के लिए आपको चुना है। इसलिए मेरा मानना है कि सेवा और त्याग के साथ विनम्र वही रह पाता है जो ईश्वर से विशेष आशीर्वाद या वरदान प्राप्त होता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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