June 6, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
संस्थाओं के लिए किए जाने वाले ट्रेनिंग प्रोग्राम में अक्सर एच॰आर॰ डिपार्टमेंट के लोग मुझसे पूछते हैं, ‘सर, आप ट्रेनिंग के दौरान इतनी अधिक एक्टिविटी या खेल अथवा नाश्ते-खाने के ब्रेक क्यों रखते हैं? अगर हम इन्हें हटा दें और सिर्फ़ एक ब्रेक दें तो फ़ुल डे सेशन, हाफ़ डे में पूरा हो सकता है और इस तरह हम कम्पनी का काफ़ी पैसा बचा सकते हैं।’ मेरे पास उनके इस प्रश्न के जवाब के रूप में मुस्कुराने के अलावा कोई जवाब नहीं रहता है क्योंकि मेरा मानना है कि एच॰आर॰ डिपार्टमेंट को यह सारी बातें पहले से पता होना चाहिए।
असल में साथियों ऐसा करने की दो मुख्य वजह होती हैं। पहली, आप अपने कर्मचारियों को जितना अच्छा माहौल देंगे वे ट्रेनिंग में उतनी ही अच्छी तरह भाग लेंगे। उतना ही ज़्यादा सीख पाएँगे, जो हमारा मूल मक़सद है। दूसरा, ऐसा करना कर्मचारियों की अच्छी-बुरी आदतों, क्षमताओं, अच्छाइयों को पहचानने में मदद करता है। जो निश्चित तौर पर कम्पनी के हित में किया गया कार्य है, जो लम्बे समय में मुनाफ़े को बढ़ाने और नुक़सान को बचाने में मददगार होता है। आप सोच रहे होंगे, ‘कैसे?’ तो मैं आपको बता दूँ कि खेलते और खाते वक्त इंसान एकदम सामान्य अवस्था में रहता है। वह उन्हीं शब्दों, आदतों को दर्शाता है जो वह सामान्य जीवन में करता है। ठीक इसी तरह वह इंसान विपरीत परिस्थितियों, चुनौतियों, अच्छे समय में भी इन्हीं आदतों को प्रदर्शित करता है। चलिए, अपनी बात को मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ।
मान लीजिए आप कॉफ़ी पीने के लिए एक रेस्टोरेंट में गए हैं। अभी आप कॉफ़ी का पहला घूँट ले ही रहे थे कि एक सज्जन आपसे आकर टकरा गए और आपके कप की कॉफ़ी आपके कपड़ों समेत फ़र्श पर छलक गई। अब मैं आपसे एक छोटा सा प्रश्न करता हूँ, ‘फ़र्श पर कॉफ़ी क्यों गिरी?’ क्या कहा आपने, ‘टक्कर के कारण?’ जी नहीं, टक्कर के कारण नहीं, कप में कॉफ़ी होने के कारण, कॉफ़ी फ़र्श और आपके कपड़ों पर गिरी। अगर उस कप में चाय होती, तो निश्चित तौर पर चाय गिरती और पानी होता तो पानी गिरता। कहने का तात्पर्य है टक्कर लगने पर वही छलकेगा जो उस कप के अंदर होगा, सही है ना?
ठीक इसी तरह जब आप ट्रेनिंग के दौरान अथवा सामान्य ज़िंदगी में खेलते हैं या कुछ खाते हैं अथवा पूरी तरह रिलैक्स रहते हैं, तब भी आप वही दर्शाते हैं, जैसे आप अंदर से होते हैं। इसीलिए आउटबाउंड ट्रेनिंग के दौरान कई सारी ऐक्टिविटीज़ या गेम्स रखे जाते हैं या ट्रेनिंग के दौरान काफ़ी सारे ब्रेक दिए जाते हैं। इन ऐक्टिविटीज़ और ब्रेक के दौरान ट्रेनर सभी पार्टिसिपेंटस पर नज़र रखते हैं और उनकी कमियों को पहचानकर, ट्रेनिंग कंटेंट के द्वारा उन्हें दूर करने का प्रयास करते हैं।
ठीक यही स्थिति तब भी निर्मित होती है, जब आप मानसिक या शारीरिक तौर पर जीवन के उतार-चढ़ाव झेलते हैं। याने जब आप दुखी, परेशान या फिर अत्यधिक ख़ुश होते है, तब भी आपके अंदर से वही छलकता है, जो आपके अंदर होता है। याद रखिएगा जीवन है, तो विपरीत दौर और चुनौतियाँ तो आएँगी ही। ऐसे में आपके व्यवहार से, आपके कार्यों से, कुल मिलाकर कहा जाए तो आपके अंदर से वही छलकेगा, जो आपके अंदर होगा।
दोस्तों, अगर आप इस सूत्र या तरीके से अपने जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं, तो स्वयं से बार-बार, थोड़े-थोड़े अंतराल में पूछिए, ‘मेरे प्याले में क्या है?’ याने मेरे अंदर क्या है। याने जब जीवन कठिन होता है, तब मेरे अंदर से क्या छलकता है? इस प्रश्न के उत्तर को अच्छी तरह पहचानिए और अपने अंदर वह डालना शुरू कीजिए जो आप छलकाना चाहते हैं। दोस्तों, जीवन में सकारात्मक रूप से आगे बढ़ने का यही एकमात्र तरीक़ा है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
Comments