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ज्ञान और पूर्ण भाव के साथ किया कार्य बनाता है आपको सफल…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

May 24, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, मेरा मानना है कि बिना भाव के ज्ञान अधूरा है। जी हाँ सुनने में आपको यह बात थोड़ी अजीब लग सकती है, लेकिन है बिलकुल सत्य। उदाहरण के लिए हम सब जानते हैं कि परेशान व्यक्ति को और परेशान या प्रताड़ित नहीं करना चाहिए। लेकिन भाव ना हो पाने के कारण आपको प्रतिदिन ऐसे कई लोग मिल जाएँगे, जो लोगों की मजबूरियों का लाभ उठाते हैं। इसीलिए मैं अक्सर कहता हूँ कि पूर्ण सफलता आपको ज्ञान के साथ भाव होने पर ही मिलती है। चलिए इसी बात को वर्तमान समय पर कटाक्ष करती एक कहानी से करते हैं।


बात कई साल पुरानी है, शहर के बाहरी इलाक़े में स्थित मंदिर में पूजा-पाठ, आरती और उसकी देखरेख करने के लिए ट्रस्ट ने कुछ लोगों को नौकरी पर रखा हुआ था। इन्हीं लोगों में रामदीन नामक अनपढ़ व्यक्ति भी था, जो मंदिर की सामान्य व्यवस्थाएँ सँभालने के साथ-साथ आरती के समय पूरे भाव के साथ घंटा बजाया करता था। आरती के लिए मंदिर में आने वाले सभी व्यक्ति भगवान के दर्शन करने के बाद उस घंटा बजाने वाले को भी देखा करते थे और उसकी तारीफ़ किया करते थे।


साल के अंत में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी मंदिर के प्रबंधक बदले गए। नए प्रबंधक औपचारिक शिक्षा प्रणाली के पक्षधर थे। उन्होंने पहला आदेश पारित किया कि मंदिर कर्मचारियों का कम से कम बारहवीं उत्तीर्ण होना आवश्यक है। जो भी कर्मचारी बारहवीं उत्तीर्ण नहीं है, उन्हें हम तत्काल प्रभाव से कार्यमुक्त करते हैं। चूँकि यह आदेश अनपढ़ रामदीन को भी प्रभावित कर रहा था, इसलिए वो मंदिर के नये प्रशासक के पास गया और उन्हें समझाने का प्रयास करते हुए बोला, ‘मैं अपना कार्य पूरी लगन, मेहनत और भाव के साथ कर रहा हूँ। मंदिर आने वाले सभी भक्तगण भी मेरे कार्य से प्रसन्न हैं और औपचारिक रूप से शिक्षित ना होना किसी भी रूप से मेरे कार्य की गुणवत्ता को प्रभावित नहीं करता है।’ लेकिन मंदिर प्रशासक ने उसकी एक ना सुनी और यह बोलते हुए तत्काल प्रभाव से कार्यमुक्त कर दिया कि ‘सुन लो तुम पढ़े लिखे नही हो, इसलिए तुम्हें नहीं रखा जायेगा। आज से तुम मंदिर के कार्य से मुक्त हो।’


दूसरे दिन से मंदिर में नए लोग काम पर आने लगे, इन्हीं में से एक घंटी बजाने वाला भी था। लेकिन उन लोगों में वो भाव नहीं था जो पूर्व के कर्मचारियों में था इसलिए लोगों को अब आरती में पहले जैसा आनंद नहीं आ रहा था। कुछ लोगों ने मिलकर निर्णय लिया कि वे रामदीन को घंटा बजाने के लिए वापस बुला लाते हैं। वे सब रामदीन के पास गये और उसे मंदिर में आने और घंटा बजाने के लिए राज़ी करने लगे। लेकिन रामदीन नहीं माना, उसका कहना था कि इससे प्रशासक को लगेगा कि मैं नौकरी पाने के लिए ऐसा कर रहा हूँ।


ख़ैर सब लोगों ने मिलकर इसका एक हल निकाला कि रामदीन को मंदिर के सामने एक दुकान खुलवा देते हैं। दिनभर रामदीन अपना कार्य करेगा और आरती के समय मंदिर आकर घंटा बजाएगा। ऐसा ही किया गया और समय के साथ रामदीन का व्यापार बढ़ता ही चला गया। उसने कुछ ही सालों में शहर में एक बहुत बड़ा कारख़ाना स्थापित कर लिया और उसकी गिनती शहर के अमीर लोगों में होने लगी। लेकिन उसने मंदिर आकर पूर्ण भाव के साथ आरती के समय घंटा बजाना जारी रखा। अंतर बस इतना सा था कि अब वह अपनी मर्सिडीज़ कार से घंटा बजाने आया करता था।


समय बीतता रहा, बहुत सारी बातें भी समय के साथ बदलती गई। मंदिर को सँभालने के लिए भी अब एक नए प्रशासक आ गए थे। उन्होंने मंदिर का जीर्णोंदार कर एक नया रूप देने की योजना बनाई। इसके लिए उन्हें काफ़ी दान की ज़रूरत थी। काफ़ी सोच विचार कर उन्होंने रामदीन सेठ से मिलने का निर्णय लिया और उनके सहायक से समय लेकर उनके कार्यालय पहुँच गये। रामदीन ने उनकी बहुत अच्छी आवभगत करी और उनसे आने का कारण पूछा। मंदिर को नये रूप देने की योजना और आवश्यकता सुनते ही रामदीन ने अपनी चेकबुक प्रशासक के सामने रख दी और कहा, ‘आपको कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं है आपको जितने पैसे की ज़रूरत है, आप इस चेक पर भर लीजिए।’ प्रशासक ने ऐसा ही करा और वापस से चेकबुक रामदीन की ओर हस्ताक्षर करने के लिए बढ़ा दी। रामदीन ने तुरंत उस पर अपना अंगूठा लगा दिया।


अंगूठा लगाता देख प्रशासक चौंक गए और बोले, ‘रामदीन साहब, आपने अनपढ़ होते हुए भी इतनी तरक़्क़ी कर ली। यदि पढ़े-लिखे होते तो आज आप पता नहीं कहाँ होते?’ रामदीन सेठ ज़ोर से हंसते हुए बोला, ‘भाई, अगर मैं पढ़ा-लिखा होता तो बस मंदिर में घंटा बजा रहा होता।’


दोस्तों कहानी सुनने में जरा ज़्यादा ही काल्पनिक लगती है, लेकिन सीख बड़ी ज़बर्दस्त देती है। रामदीन का कार्य यूँ तो सिर्फ़ मंदिर में घंटा बजाना था, जो हर कोई कर सकता था। लेकिन उसे पूर्ण मनोभाव से करने के कारण रामदीन सबसे अलग बन गया और इसी बात ने उसे जीवन में कुछ नया करने का मौक़ा भी दिया। निश्चित तौर पर रामदीन ने उस कार्य को भी पूर्ण मनोभाव से किया होगा इसीलिए उसे वहाँ भी सफलता मिली। इसीलिए दोस्तों मैंने पूर्व में कहा था, ‘बिना भाव के ज्ञान अधूरा रहता है।’ आपको जीवन में पूर्ण सफलता सिर्फ़ तब मिल सकती है जब आपको अपने कार्य करने का ज्ञान हो और आप उसे पूर्ण भाव के साथ करते हो।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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