top of page

ज्ञान और विनम्रता से पाएँ सफलता …

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Apr 30, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, एक दिन अपनी दैहिक यात्रा पूर्ण कर एक पंडित और एक डाकू साथ-साथ यमराज के दरबार में पहुंचे। भगवान यमराज ने भगवान चित्रगुप्त को अपने बही-खातों में दोनों के पाप और पुण्य का हिसाब देखने के लिए कहा। इसके बाद यमराज दोनों याने पंडित जी और डाकू की ओर देखते हुए बोले, ‘यदि तुम दोनों अपने बारे में कुछ कहना चाहते हो तो कह सकते हो।’ डाकू भगवान यमराज को प्रणाम करते हुए अत्यंत विनम्र शब्दों में बोला, ‘प्रभु! मैंने जीवनभर पाप कर्म किए हैं, अर्थात् बुरा कार्य किया है। मैं एक अपराधी हूँ, आप मेरे लिये जो भी दंड तय करेंगे, मुझे स्वीकार होगा।’


डाकू की बात पूर्ण होते ही पंडित जी बड़े गर्व के साथ बोले, ‘भगवान! मैंने आजीवन तपस्या और भक्ति की है। मैं कभी असत्य के मार्ग पर नहीं चला। मैंने सदैव सत्कर्म ही किए हैं, इसलिए आप कृपा करके मेरे लिए स्वर्ग में सुख-साधनों का प्रबंध करें।’ पंडित जी की बात सुनते ही यमराज मुस्कुराने लगे, फिर डाकू की ओर देखते हुए बोले, ‘तुम्हें अपने कर्मों का दंड भोगना पड़ेगा। आज से तुम प्रतिदिन इन पंडित जी की सेवा करोगे।’ डाकू ने उसी पल सिर झुकाकर यमराज द्वारा सुनाई सजा को स्वीकार लिया। लेकिन उसी पल पंडित जी ने एकदम तुनकते हुए कड़े शब्दों में यमराज की सुनाई सजा पर आपत्ति उठाते हुए कहा, ‘प्रभु! यह क्या कह रहे हैं आप? इस पापी के स्पर्श से मैं अपवित्र हो जाऊँगा। मेरी जीवन भर की तपस्या और भक्ति का फल निरर्थक हो जाएगा।’


पंडित जी की बात सुनते ही भगवान यमराज को ग़ुस्सा आ गया, वे क्रोधित होते हुए एकदम कड़क स्वर में बोले, ‘पंडित, देखो निरपराध और भोले व्यक्तियों को पहले लूटने और बाद में हत्या करने वाला तो इतना विनम्र हो गया कि तुम्हारी सेवा करने को तैयार है। लेकिन दूसरी ओर तुम इतने वर्षों की तपस्या और भक्ति करने के बाद भी अहंकार से ग्रसित हो। इतने वर्षों की तपस्या और भक्ति भी तुम्हें इतनी साधारण सी बात नहीं सीखा पाई कि हर इंसान में एक ही आत्म तत्व समाया हुआ है। इसलिए मेरा मानना है कि तुम्हारी तपस्या अभी अधूरी है। अत: मैं तुम्हें आज से इस डाकू की सेवा करने का दंड सुनाता हूँ।


उक्त कहानी मुझे उस वक़्त याद आई जब मैंने कोचिंग संचालक अपने परिचित से एक तथाकथित ज्ञानी और पढ़े-लिखे व्यक्ति के विषय में सुना। असल में कुछ दिन पूर्व उन्होंने कोचिंग के छात्रों को और अच्छी शिक्षा देने के लिए एक विषय विशेषज्ञ की सेवा लेने का निर्णय लिया और एक सज्जन को इस विषय में चर्चा करने के लिए अपनी कोचिंग पर बुलवाया। शुरुआती सामान्य बातचीत के बाद मेरे परिचित ने उन सज्जन से कुछ प्रश्न उनकी योग्यता के आधार पर पूछे। इन्हीं प्रश्नों में से एक प्रश्न के उत्तर में मेरे परिचित ने गलती निकालते हुए, उन सज्जन को समझाने का प्रयास किया तो वे थोड़ा नाराज़ होते हुए बोले, ‘माफ़ कीजियेगा, आप ख़ुद इस विषय के विशेषज्ञ नहीं हैं, फिर आप मेरी गलती कैसे निकाल सकते हैं?’ जब मेरे परिचित ने उन्हें समझाने का प्रयास किया तो वे बोले, ‘सर, मैं आप से ज़्यादा शिक्षित हूँ। मुझे पता है कि क्या सही है और क्या ग़लत।’


बताने की ज़रूरत नहीं है दोस्तों, कि इस बातचीत का अंत क्या रहा होगा। ज़रा से अहंकार ने उन सज्जन से एक बड़ी संस्था से जुड़ने का मौक़ा छीन लिया था। दोस्तों, जीवन में कई बार आपका सामना ऐसे लोगों से हो जाता है, जो अपने ‘अहम’ के ‘वहम’ में ही अपना पूरा जीवन बर्बाद कर देते हैं और अपने अहंकार के चलते संपर्क में आए लोगों को भी नकारात्मकता से भर देते हैं। याद रखिएगा, ज्ञान अगर किसी में भी अहंकार ला रहा है, तो वो निश्चित तौर पर सफलता नहीं पतन की ओर ले जा रहा है। इसके विपरीत ज्ञानी व्यक्ति अगर विनम्र होता है तो वह जीवन में नई ऊँचाइयों को छूता है। एक बार विचार कर देखियेगा…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

7 views0 comments

Bình luận


bottom of page