top of page
Writer's pictureNirmal Bhatnagar

ज़िंदगी काटने के लिए नहीं जीने के लिए है…

Dec 11, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, ज़िंदगी जीना अथवा काटना क़िस्मत की नहीं अपितु आपके व्यक्तिगत चुनाव की बात है।  ऐसा  मैं  इस  दुनिया में  रोने वाले लोगों की बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए कह रहा हूँ। वाक़ई में साथियों इस दुनिया में रोने वालों की कमी नहीं है। जी हाँ, सही सुना आपने, इस दुनिया में कई लोग तमाम अच्छाइयों के बाद भी रोने का कोई ना कोई  बहाना  ढूँढ ही  लेते हैं। यह  लोग कभी अपनी क़िस्मत को लेकर, तो कभी किसी और बात को कारण बना कर रोना शुरू कर देते हैं। जैसे, किसी भी  क्षेत्र में  मिले अनपेक्षित परिणामों पर यह लोग बोल सकते हैं कि मेरी तो क़िस्मत ही फूटी हुई है; भगवान ने सारे दुख मेरे ही हिस्से में लिख रखे हैं; यह मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकता है; मुझे तो विश्वास करने का परिणाम हमेशा धोखा ही मिला है, आदि… आदि…


अपनी बात को मैं आपको दो-तीन दिन पूर्व घटी एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ। दो-तीन दिन  पूर्व एक  महिला  मेरे पास आई और बोली, ‘सर, यह दुनिया इतनी मतलबी क्यों है?’ मैं कुछ कहता  उसके पहले ही  एक  पल के  ब्रेक के  पश्चात  वे अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोली, ‘सर, लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने विषय में ही क्यों सोचते हैं? उन्हें  इस  बात का जरा सा  भी एहसास नहीं रहता है कि उनकी वजह से किसी का जीवन बर्बाद हो सकता है।’ फिर एक-दो पल शांत रहने के बाद वे नम आँखों के साथ बोली, ‘मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ है। जिस पर विश्वास किया था, उसने मेरी पूरी दुनिया ही उजाड़ दी।’ मैंने  उन्हें  शांत करते हुए थोड़ा विस्तार से बताने के लिए कहा तो मुझे पता चला कि उनके पार्टनर ने उन्हें धोखा दे दिया है और इसी वजह  से वे आजकल भावनात्मक तौर थोड़ा परेशान चल रही थी। जो बीतते समय के साथ उनकी मानसिक, शारीरिक  और  वित्तीय  स्थिति को भी प्रभावित कर रहा था।


उक्त महिला की बातें मुझे हैरान कर रही थी क्योंकि एक व्यक्ति द्वारा दिए गए  धोखे  को  उन्होंने  अपने  अंतर्मन, अपने दिल में इतनी ज़्यादा जगह दे दी थी कि वे परिवार याने माता-पिता, भाई-बहन, रिश्तेदार आदि से मिलने वाले  प्यार, साथ, केयर  आदि को महसूस ही नहीं कर पा रही थी। इतना ही नहीं वे उस घटना से इतनी अधिक आहत थी कि वे अपने हर दोस्त या परिचित को उनकी लाख अच्छाई के बाद भी दोष दे रही थी। इस दौरान वे भूल गई  थी कि  अपने  इस  नकारात्मक  व्यवहार के  कारण  वे अपनों के साथ वैसा ही व्यवहार कर रही थी, जैसा उनके साथ  हुआ  था  और जो उन्हें  अच्छा  नहीं  लगा  था। यानी  वे  अपनी इच्छाओं के आगे अपने परिवार या अपनों की भावनाओं  को  नज़रंदाज़ कर  रही थी और साथ ही जीवन में  घटने  वाली  अच्छी घटनाओं और नए मौक़ों को पहचान भी नहीं पा रही थी।


सोच कर देखिए साथियों अगर उक्त  महिला ने  उस  धोखा देने  वाले व्यक्ति को नज़रंदाज़  करके उन  लोगों की भावनाओं  को अधिक मूल्य दिया होता जो उनके साथ बने हुए थे; जो उन्हें प्यार कर रहे थे, तो क्या होता? निश्चित तौर पर वे ज़्यादा संतुष्ट, खुश और सुखी होती। सही कहा ना  साथियों… इसीलिए तो  पूर्व में मैंने कहा था कि ज़िंदगी जीना या काटना  चुनाव  की  बात  है, क़िस्मत की नहीं।


असल में दोस्तों, नकारात्मक भावों की अधिकता अक्सर हमारे खुश  रहने  के मौक़े चुरा  लेती है। जब तक आप अपनी सोच को नहीं बदलते हैं; जब तक आप हर स्थिति, हर घटना के पीछे कोई सकारात्मक मक़सद नहीं ढूँढ लेते हैं तब तक आप अपनी सोच को सकारात्मक नहीं बना पाते हैं और जब तक आपकी सोच सकारात्मक नहीं होगी तब तक आपका अंतर्मन, मन और दिल सब दोष, तुलना, हीनता, ईर्ष्या जैसे नकारात्मक भावों से भरा रहेगा। इसलिए हमेशा याद रखें ‘जो होता है, अच्छे के लिये होता है!’, क्योंकि ईश्वर हमारे जीवन में वही घटनाएँ, उन्हीं बातों को लाता है जो  हमारे लिए  लाभदायक होती है। जी हाँ दोस्तों, इस भाव का होना ही आपको जीवन को काटने के स्थान पर जीने का मौक़ा देता है। विचार कर देखियेगा…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

4 views0 comments

Comments


bottom of page