Oct 12, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, मेरा मानना है, हमारी ज़िंदगी प्रतिध्वनि से अधिक कुछ नहीं है। अर्थात् आप जिस लहजे में इसे पुकारते हैं, यह ठीक उसी लहजे में आपको प्रत्युत्तर देती है। इसी बात को हम नज़रिए से जोड़ कर भी देख सकते हैं। अर्थात् अपने जीवन को आप जिस नज़रिए से देखते हैं, यह आपको ठीक वैसा ही नज़र आता है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बात कई साल पुरानी है, शहर के मध्य इलाक़े में एक व्यक्ति ठेले पर सब्ज़ियाँ बेचा करता था और हर किसी को ‘प्रभु’ कहकर संबोधित किया करता था। आप यह भी कह सकते हैं कि ‘प्रभु’ उसका तकिया कलाम था। जैसे, कोई उससे पूछता, ‘आलू कैसे दिये?’, तो वह कहता, ‘प्रभु तीस रुपये किलो।’, कोई कहता, ‘धनिया कैसे दिया?’ तो वह कहता, ‘प्रभु दस रुपये का पचास ग्राम।’ अच्छे व्यवहार, मीठा संबोधन, मिलनसार व्यक्तित्व के कारण लोग उससे सब्ज़ियाँ ख़रीदना पसंद किया करते थे और उसका व्यवसाय अच्छा चला करता था।
एक दिन एक बुजुर्ग व्यक्ति उसके यहाँ सब्ज़ी ख़रीदने पहुँचे तो यह देख हैरान रह गए कि वह सभी ग्राहकों को ‘प्रभु’ कहकर संबोधित कर रहा है और सभी ग्राहक उसे भी ‘प्रभु’ कहकर संबोधित कर रहे हैं। उन्होंने आश्चर्य मिश्रित स्वर में उस सब्ज़ी वाले से पूछा, ‘तुम सबको और लोग तुमको प्रभु-प्रभु क्यों कहते हैं? तुम्हारा कोई दूसरा नाम भी है या नहीं?’ सब्ज़ी वाला मुस्कुराते हुए बोला, ‘प्रभु! मेरे माता-पिता ने मेरा नाम भैया लाल रखा था।’ इतना कहकर वह सब्ज़ी वाला, एक पल के लिये रुका, फिर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘प्रभु! लोगों का तो नहीं पता, लेकिन मेरे पास सबको ‘प्रभु’ कहकर बुलाने का कारण है। बात आज से लगभग १० वर्ष पहले की है, जब मैं गाँव में रहा करता था। उस वक़्त गाँव में मुझे प्रख्यात संत विद्या सागर जी के प्रवचन सुनने का मौक़ा मिला। अनपढ़-गंवार होने के कारण प्रवचन का ज़्यादातर भाग मेरे पल्ले नहीं पड़ा। लेकिन उनकी कही एक लाइन मेरे दिल में हमेशा के लिए घर कर गई। प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा था कि हर इंसान में प्रभु का वास है और कण-कण में भगवान विराजते हैं। अगर तुम उन्हें तलाशने का प्रयास करोगे तो पता नहीं किस पल, किस रूप में तुम्हें वो मिल जाएँगे और तुम्हारा उद्धार कर जाएँगे। बस उस दिन से मैंने हर मिलने वाले को ‘प्रभु’ के रूप में देखना और पुकारना शुरू कर दिया। इसके एक बदलाव ने ऐसा चमत्कार किया कि सामान्यतः दुनिया जिसे शैतान मानती है, वह भी मेरे लिये प्रभु हो गया।’
वे बुजुर्ग सज्जन मंत्रमुग्ध हो उस सब्ज़ी वाले की बातों में बहते जा रहे थे। सब्ज़ी वाले की बात पूरी होते ही वे बोले, ‘मैं समझ गया, चूँकि आप सब में ‘प्रभु’ को देखते हैं, इसलिए सबको आपके अंदर भी प्रभु नज़र आते हैं और इसीलिए वे आपको ‘प्रभु’ कहकर बुलाते हैं।’ बुजुर्ग सज्जन की बात सुन सब्ज़ी वाला मुस्कुराया और बोला, ‘शायद आप सही कह रहे हैं। लेकिन मैं तो बस इतना जानता हूँ कि जब से मैंने लोगों के अंदर प्रभु को देखना शुरू कर दिया है, तबसे मेरे दिन फिर गये हैं और मैं मज़दूर से व्यापारी बन गया हूँ। आज प्रभु की कृपा से मेरे पास सुख-समृद्धि के सभी साधन हैं और आज मेरे लिये सारी दुनिया ही प्रभु रूप का दूसरा रूप बन गई है।’
दोस्तों, कहने के लिए उपरोक्त कहानी बड़ी साधारण और काल्पनिक स्तर की लगती है, जिसे जीवन में उतारना नामुमकिन ही है। लेकिन सोच कर देखिए, अगर हम इंसान के अंदर प्रभु नहीं, इंसान ही देखना शुरू कर दें और उसके साथ इंसानियत के साथ व्यवहार करने लगें तो यह दुनिया कितनी हसीन हो जायेगी। याद रखियेगा, बड़े-बड़े परिवर्तन बड़ी बातों या बड़े कामों से नहीं अपितु छोटे लेकिन सही मूल्यों के साथ उठाये गये कदमों से आते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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