Feb 9, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जानते हैं हमारी सफलता की राह का सबसे बड़ा रोड़ा क्या है? चलिए मैं ही बता देता हूँ, हम ख़ुद ही हमारी राह के सबसे बड़े रोड़े हैं। जी हाँ! सही सुना आपने, समय के साथ जीवन में मिले अनुभव और सफलता हमारे अंदर इतना अहंकार पैदा कर देते है कि हम स्वयं अपना नुक़सान करना शुरू कर देते हैं। अपनी बात को मैं आपको हाल ही में घटी एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ। बात लगभग एक माह पहले की है, किसी कार्यवश मुझे एक विद्यालय में जाने का मौक़ा मिला। अभी मैं विद्यालय के वरिष्ठ अधिकारी के केबिन तक ही पहुँचा था कि एक तेज आवाज़ ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा, ‘भूलिएगा मत मुझे भी सीबीएसई के प्राचार्य के रूप में १५ वर्षों का अनुभव है और मैं भी आप ही की तरह सीबीएसई का मास्टर ट्रेनर हूँ।’
वैसे तो माहौल मेरे कार्य के अनुरूप नहीं था फिर भी स्थिति को सम्भालने के उद्देश्य से मैं तत्काल डोर नॉक करता हुआ प्राचार्य के कमरे में पहुँच गया और मुस्कुराते हुए बोला, ‘क्या हो गया सर? आज किसको याद दिलाया जा रहा है कि आप भी अनुभवी मास्टर ट्रेनर हो।’ मेरी बात सुनते ही उन्होंने एक झूठी मुस्कान दी और बोले, ‘कुछ नहीं सर। मैनेजमेंट कमेटी के एक सदस्य का फ़ोन था। ज़बरदस्ती की सलाह दे रहे थे।’
चूँकि मैं प्राचार्य और मैनेजमेंट कमेटी के सभी सदस्यों, दोनों को व्यक्तिगत तौर पर जानता था, इसलिए तत्काल समझ गया कि समस्या क्या है?, असल में समस्या मैनेजमेंट कमेटी की नहीं अपितु प्राचार्य के अहंकार की थी, जब भी उन्हें कोई भी सलाह देता था या फिर उनकी ग़लतियाँ बताता था, तब वे इसी तरह की प्रतिक्रिया दिया करते थे। असल में वे अतीत में एक बड़े ब्रांड के साथ काम किया करते थे और आज उन्हें एक लोकल प्लेयर के साथ काम करना पड़ रहा था। इसलिए वे उनकी वरिष्ठता स्वीकार नहीं कर पा रहे थे और यही उनके टकराव की एक मुख्य वजह था। शायद यही वह कारण था जिसकी वजह से उन्हें पिछले एक वर्ष में तीन नौकरियों को बदलना पड़ा था।
असल में दोस्तों, अहंकार सिर्फ़ व्यवसायिक ही नहीं अपितु व्यक्तिगत जीवन को भी प्रभावित करता है और इसका होना जीवन में अनावश्यक झगड़ों का कारण बनता है। अहंकार को आप ज़हर के माफ़िक़ मान सकते हैं, जो एक बार दिमाग़ में फैल जाए तो समझ, प्यार और देखभाल करने के भाव को कमजोर या ख़त्म कर देता है। वैसे दोस्तों, मैं आपको कोई नई बात नहीं बता रहा हूँ, हम सब अहंकार के विषय में सब कुछ जानते हैं, लेकिन उसके बाद भी इसके शिकार हो जाते हैं क्योंकि अहंकार और स्वाभिमान के बीच बहुत बारीक सा ही अंतर होता है। दोस्तों अगर आप उस अंतर को पहचानना चाहते हैं तो निम्न बात पर गौर करियेगा-
1) अहंकारी लोग सुनते कम बोलते ज़्यादा हैं। अर्थात् वे अच्छे श्रोता नहीं होते हैं।
2) अहंकारी व्यक्ति सही और ग़लत को नज़रंदाज़ कर दुनिया को जीतना या उस पर क़ब्ज़ा करना चाहते है।
३) अहंकार के संदर्भ में एक और बात बहुत महत्वपूर्ण है, अहंकारी हर हाल में ख़ुद को विजेता मानता है फिर भले ही लोग उसकी बात को सबसे अंत में ही क्यों ना माना जाता हों।
दोस्तों, जब किसी इंसान या उसके विचारों को ज़्यादातर समय अनसुना किया जाता है या फिर उसे बार-बार रोका या नियंत्रित किया जाता है अर्थात् जो व्यक्ति बहुत सारे दबावों के बीच अपने आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाते हुए जीवन में आगे बढ़ता है, तब वह अपनी ज़रा सी सफलता मिलने पर अहंकारी बनने लगता है। इस आधार पर कहा जाए तो कुछ हद तक अहंकार आपके आत्मसम्मान को बचाने के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन अगर यह एक हद से आगे बढ़ जाए तो यह हमें धीमे-धीमे, बिना एहसास के ही आपको ख़त्म कर देता है। दोस्तों, अगर आप ख़ुद को एक सितारे के रूप में उभरता हुआ देखना चाहते हैं तो अपने अहंकार को हद से ज़्यादा ना बढ़ने दें और लोगों के बीच सामान्य भाव के साथ रहें। गुजरते वक्त के साथ आप पायेंगे कि लोग आपका साथ पसंद करने लगेंगे और साथ ही आपको सभी से प्यार और सराहना मिलने लगेगी। इसीलिए कहा जाता है कि, ‘आपके अहंकार के लिए एक बुरा दिन; आपकी आत्मा के लिए एक अच्छा दिन है।’ एक बार इस पर विचार कर देखियेगा ज़रूर…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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