Mar 22, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, मेरा मानना है कि डर को ‘डराकर’ ही जीता जा सकता है। उलझ गये ना शब्दों के जाल में! चलिए कोई बात नहीं, साधारण शब्दों में इस बात को समझ लेते हैं। बात २०१० के आस-पास की है एक वर्कशॉप के दौरान मेरे गुरु ने डर से पार पाने के उपाय के विषय में समझाते हुए कहा था कि सामान्यतः डर दो प्रकार के होते है। पहला, असाध्य अर्थात् ऐसे कार्य या संदर्भ या विषय से उपजा डर जिसका आप प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सामना करने में ख़ुद को अक्षम मानते हैं। अर्थात् ऐसा डर जिसका किसी प्रयत्न द्वारा निवारण असंभव होता है या हमें असंभव महसूस होता है और दूसरा, साध्य अर्थात् ऐसा डर जो प्रयत्न करके दूर भगाया जा सकता है।
अगर आप असाध्य डर, जिसका सामना करने में आप ख़ुद को अक्षम मान रहे हैं या फिर किसी साध्य डर से परेशान या पीड़ित है तो इससे बचने का एक ही तरीक़ा है इस स्थिति का बार-बार सामना करना। जब आप उस विशिष्ट स्थिति का सामना बार-बार करते हैं, तो बीतते समय के साथ आप उस डर के पार निकल जाते हैं। इसीलिए मैंने पूर्व में कहा था, ‘डर को डराकर ही जीता जा सकता है।’ वैसे भी दोस्तों, हमारे यहाँ तो कहा ही जाता है कि ‘डर के आगे जीत है।’
जिस तरह दोस्तों, डर के आगे जीत है, ठीक उसी तरह, हर समस्या के आगे उसका समाधान है। इसी आधार पर मैं हमेशा कहता हूँ, इस ज़िंदगी में या यूँ कहूँ हमारे जीवन में कोई भी ऐसी समस्या नहीं है, जिसका समाधान ना हो। जी हाँ दोस्तों, मैं बिलकुल सही कह रहा हूँ, जीवन में समस्या चाहे कितनी ही बड़ी या मुश्किल क्यों ना हो, अगर आप प्रयास करेंगे तो निश्चित तौर पर उसका कोई ना कोई समाधान खोज ही लेंगे। दूसरे शब्दों में कहूँ तो अगर आप समस्या को चुनौती मानकर उसका डट कर मुक़ाबला करना शुरू कर देंगे, तो आप उसका समाधान खोज लेंगे। इसीलिए मैं कहता हूँ, समस्या मुक़ाबला करने से दूर होती है, मुकरने याने उससे भागने से नहीं।
वैसे आप इसे प्रकृति के इस नियम से भी जोड़ कर देख सकते हैं कि यहाँ सदैव दुर्बल को ही सताया जाता है। अगर आप ख़ुद को समस्या के मुक़ाबले छोटा या दुर्बल मानेंगे तो वह समस्या आपके ऊपर नकारात्मक प्रभाव डालेगी। आपकी ऊर्जा को ख़त्म करेगी और अंत में आपसे आपकी ख़ुशी छीन लेगी। अर्थात् वह आपको सताएगी, परेशान करेगी, आपका चैन छीन लेगी, आपको आराम से जीने नहीं देगी।
इसके विपरीत अगर आपने समस्या का डट कर सामना कर लिया तो अधिकतम क्या होगा? आप असफल हो जाएँगे; आपको मनमाफिक परिणाम नहीं मिलेगा। लेकिन अगर आपने समस्या से डटकर सामना करने का निर्णय लिया है तो आप इस असफलता से भी कुछ ना कुछ नया सीख लेंगे, जो अंततः आपको उस समस्या का समाधान खोजने लायक़ बना देगा।
दोस्तों, दुखों के साथ भी ठीक ऐसा ही होता है। जितना आप दुखों से भागने का प्रयास करोगे वह उतना ही आपके ऊपर हावी हो जाएँगे। इसीलिए स्वामी विवेकानंद जी कहा करते थे, ‘दुःख बंदरों की तरह होते हैं, जो पीठ दिखाने पर पीछा किया करते हैं और सामना करने पर भाग जाते हैं।’ इसलिए दोस्तों, जीवन को पूर्णता के साथ जीने के लिए हमें डर और समस्या का डटकर मुकाबला करना होगा। ऐसा करना दुख को हमारे जीवन में आने के पहले ही सुख में बदल देगा। जी हाँ दोस्तों, जीवन में घटने वाली हर घटना या आने वाली हर स्थिति का सामना करना ही, जीवन को सर्वोत्तम बनाने का एकमात्र उपाय है। विचार कर देखियेगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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