Oct 28, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आपने निश्चित तौर पर हाल-चाल पूछने पर ‘कट रही है’ और व्यापार के विषय में पूछने पर ‘बुरा हाल है’, ज़रूर सुना होगा। हालाँकि इनमें से ज़्यादातर लोगों का जीवन बिलकुल सामान्य चल रहा होता है। लेकिन उसके बाद भी नकारात्मक नज़रिए की वजह से यह लोग किसी भी स्थिति, वस्तु या व्यक्ति के सकारात्मक पक्ष को देख नहीं पाते हैं। उदाहरण के लिए कुछ लोग इसलिए उदास हो सकते हैं क्यूँकि वे गरीब हैं, उनके पास अपनी ज़रूरतों के अनुरूप रुपए-पैसे नहीं है और उनकी इच्छाएँ, सपने, ख्वाहिशें मन के मन में ही रह जाती हैं। लेकिन अगर इसी स्थिति को दूसरे नज़रिए से देखा जाए तो कहा जा सकता है कि सामने वाले के पास सिर्फ़ हसरतों को पूरा करने के लिए दौलत नहीं है, लेकिन हो सकता है उसका स्वास्थ्य, रिश्ते, व्यवसाय आदि सब अच्छा चल रहा हो। क्या इसी स्थिति को हम गुलाब के पौधे के समान नहीं मान सकते, जिसमें ढेरों काँटे होने के बाद भी फूल मुस्कुराते हुए अपनी ख़ुशबू बिखेरता रहता है।
ठीक इसी तरह हो सकता है कोई व्यवसाय, रिश्तों अथवा किसी अन्य चीज़ के लिए परेशान हो रहा हो। लेकिन प्रकृति को देखिए विभिन्न वनस्पतियाँ, पेड़, पौधे या अन्य जीव कितनी विपरीत परिस्थितियों में जीते हैं। अरे इनको छोड़ कर सिर्फ़ घास के तिनके को ही देख लीजिए, वह सर्दी, गर्मी, आँधी, बारिश आदि सभी मौसमों को बिना शिकायत के सह लेता है। पता है क्यूँ? क्यूँकि उसे पता होता है उसका उद्देश्य क्या है। जी हाँ जब आपका उद्देश्य बड़ा, स्पष्ट और दिल के क़रीब होता है, तब आप विपरीत परिस्थितियों, चुनौतियों या दिक्कतों से परेशान नहीं होते, उनकी वजह से रोते नहीं हैं, रुकते नहीं है, बल्कि अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य करते हैं।
अपनी बात को मैं आपको एक सच्ची घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ। कोविद 19 के दौरान मेरे एक परिचित ने अपनी पत्नी और इकलौते बेटे को खो दिया था। दोस्तों, यह घटना सामान्य नहीं थी, एक प्रकार से देखा जाए तो उन सज्जन का पूरा परिवार ही उजड़ गया था। कुछ दिनों के लिए तो उनकी हालत एकदम ख़राब हो गई थी, ऐसा लग रहा था मानो उनकी ज़िंदगी अचानक से ही बे-पटरी हो गई थी। लेकिन अभी जब मैं कुछ दिन पूर्व उनसे मिला तो वे एकदम सामान्य और खुश नजर आए। मैंने जब उनसे इस विषय में चर्चा करी तो उनका कहना था, ‘सर, मैंने इस विषय में अंतिम सत्य को स्वीकार लिया है।’ बात उनकी छोटी सी, लेकिन बिलकुल स्पष्ट थी। मैंने तुरंत उनसे कहा, ‘लेकिन जितनी आसानी से आपने कहा, यह इतना आसान नहीं होगा।’ वे मुस्कुराते हुए बोले, ‘सर, आपसे एक प्रश्न पूछूँ?’ मैंने कहा, ’ज़रूर!’, तो वो बोले, ‘सामान्यतः हर इंसान को अपने जीवन का कौन सा हिस्सा सबसे ज़्यादा पसंद होता है, वह किसे सबसे ज़्यादा याद करता है, बचपन, युवावस्था या बुढ़ापा। मैंने बिना एक भी पल गँवाए कहा, ‘निःसंदेह बचपन।’ तो वे एकदम शांत भाव के साथ बोले, ‘उसे ही याद करके देख लीजिए, जो आपके जीवन का सबसे सुनहरा हिस्सा था वह वही था जब आप अकेले थे। ना आपकी कोई चाँद से बीवी थी और ना ही कोई बच्चा। उस वक्त तो हम ही हमारी दुनिया के एकछत्र राजा थे।’
बात तो उनकी बिलकुल सही थी साथियों। वाक़ई बचपन में हम सबसे जुड़े हुए भी थे, तो सभी से कटे हुए भी। हमारा जुड़ना हमारे उद्देश्य या लक्ष्य के आधार पर होता था। हमारा फ़ोकस एकदम स्पष्ट होता था। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते गए हमारे साथ एक-एक कर नए बंधन जुड़ते गए। अगर मेरी बात से सहमत ना हो तो भगवान बुद्ध के वचन याद कर लीजिएगा। जब उन्हें बेटा हुआ था, तब उन्होंने ठंडी साँस लेते हुए कहा था, ‘आज एक बंधन और बढ़ गया।’ इसके बाद उन्होंने उसी रात पत्नी, बच्चे, घर-बार आदि को छोड़ सन्यास ले लिया था।
याद रखिएगा दोस्तों, जिस चीज़ के आने पर हमें ख़ुशी होती है, उसी के जाने पर हमें दुःख भी होगा। अगर हम किसी तरह ऐसी ज़िंदगी जीना सीख जाएँ जब हमें किसी के आने से ख़ुशी और किसी के जाने का ग़म ना हो, तो हम खुश रहना सीख जाएँगे और यह तभी सम्भव है जब हम सब में खुद को देखना शुरू कर दें।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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