Feb 17, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

आइए दोस्तों, आज के शो की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है एक नगर में एक धनवान सेठ, एक बहुत ही ग़रीब किसान के पास रहा करते थे। सेठ और किसान दोनों के बीच आपसी सामंजस्य इतना अच्छा था कि सेठ को कभी ग़रीब किसान के पास रहने का मलाल बिल्कुल भी नहीं था। ग़रीब किसान की एक विवाह योग्य बेटी थी, जिसका नाम रुक्मणी था।
पैसों की तंगी के कारण ग़रीब किसान हमेशा रुक्मणी के विवाह को लेकर चिंतित रहा करता था। एक दिन सुबह घूमते वक्त ग़रीब किसान ने बड़ी हिम्मत करके सेठ से कुछ धन उधार माँगा, पर सेठ ने उसके निवेदन को ठुकरा दिया। उसी दिन रात को सोते समय सेठानी, सेठ से बोली, ‘देखो देखते ही देखते पड़ोसी किसान की बेटी रुक्मणी सयानी हो गई है। अब उसके माता-पिता को उसके विवाह के विषय में सोचना चाहिए।’ सेठानी के इतना कहते ही सेठ बोला, ‘हाँ! तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो और ऐसा ही उसके माता-पिता भी सोच रहे हैं, लेकिन धन की कमी के कारण कर नहीं पा रहे हैं। वे कल मेरे पास इस विषय में बात करने के लिए आए थे और साथ ही कुछ धन मुझसे उधार के रूप में माँग रहे थे।’ सेठानी बात आगे बढ़ाते हुए बोली, ‘फिर आपने क्या किया।’ सेठ बोले, ‘मैं ठहरा व्यापारी आदमी, किसी ग़रीब को बिना सोचे कैसे धन दे सकता हूँ।’
उसी रात सेठ के घर एक चोर चोरी की नीयत से घुसा, लेकिन सेठ सेठानी को बात करता देख, वहीं छिपकर बैठ गया और उनकी बातें सुनने लगा। वह साफ़-साफ़ समझ पा रहा था कि सेठ को ग़रीब की मदद ना करने का अफ़सोस था, लेकिन साथ ही वह अपनी व्यापारिक सोच से भी बाहर नहीं आ पा रहा था। खैर उस रात मौका पाकर चोर ने सेठ के घर से धन की पोटली चुरा ली और वहाँ से बाहर आ गया। बाहर आकर चोर को ध्यान आया कि उसकी पत्नी ने कुछ बर्तन चुरा कर लाने का कहा था, लेकिन उसे दूसरी बार सेठ के घर घुसना सुरक्षित नहीं लगा। इसलिए वह पास में रहने वाले ग़रीब किसान के घर में घुस गया। वहाँ भी ग़रीब किसान और उसकी पत्नी आपस में बात कर रहे थे। चोर इस बार भी वहीं छुप कर बैठ उनकी बातें सुनने लगा। ग़रीब किसान की पत्नी किसान से कह रही थी, ‘तुम्हें याद होगा पंडित जी ने एक बार हमसे कहा था कि पुत्री का विवाह बीस वर्ष की आयु से पहले करना होगा, अन्यथा उसकी मृत्यु का योग बनता है। अब उसके बीस वर्ष का होने में मात्र चार माह बाकी हैं, और अभी तक तुम धन की व्यवस्था नहीं कर पाये हो।’
ग़रीब किसान ठंडी आहें भरता हुआ बोला, ‘मैं प्रयास तो कर रहा हूँ लेकिन समझ ही नहीं आता कहाँ से धन लेकर आऊँ। कल पड़ोसी सेठ से भी बात करी थी, लेकिन उन्होंने भी मना कर दिया।’ इतना कहकर किसान ने एक ठंडी साँस ली फिर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘सेठ का मना करना भी उचित है। वह व्यापारी है, इसलिए व्यापारिक नजरिये से ही सोचेगा। अगर मैं इंतजाम ना कर पाऊं तो ईश्वर मेरी जान ले ले, लेकिन मेरी बेटी को सुरक्षित रखें।’
चोर किसान और उसकी पत्नी की बात सुन अचंभित था। अब उसे अपनी परेशानी, किसान की परेशानी से बहुत छोटी लग रही थी। साथ ही उसे अपने जवान बेटे की मृत्यु याद आ रही थी। उसने सेठ के घर से चुराई पैसों की पोटली किसान के घर पर छोड़ दी और कोयले से आँगन में लिख दिया, ‘पड़ोसी सेठ की तरफ से रुक्मणि बिटिया के विवाह के लिए दिया गया धन। –एक चोर!’
सुबह उठते ही ग़रीब किसान को पहले धन की पोटली मिली, फिर उसने चोर का लिखा संदेश पड़ा और अंत में उसे अपने घर में बर्तनों की चोरी होने का पता चला। एक क्षण के लिए तो उसके मन में ख्याल आया क्यों ना मैं सारा धन रख लूँ और उससे अपनी बिटिया की शादी कर दूँ। लेकिन अगले ही क्षण उसके ईमानदार चरित्र ने उसे धन लौटाने का निर्णय लेने के लिए मजबूर किया। वह तुरंत सेठ के घर गया, जहाँ धन चोरी होने के कारण अफ़रातफ़री का माहौल था। उसने उसी क्षण सेठ को पूरी बात बताते हुए धन की पोटली लौटाई और उसे अपने घर लाकर चोर का लिखा संदेश पढ़ाया।
संदेश पढ़ते ही सेठ के मुँह से निकला, ‘एक चोर इतना संवेदनशील हो सकता है कि चुराया हुआ धन किसी जरूरतमंद को दे सकता है, और मैं, जिसके पास ईश्वर की कृपा से ढेर सारा धन है वह उसे देने के लिए राजी नहीं है।’ इतना कहते ही सेठ ने उस किसान को आधा धन दे दिया और बोला, ‘यह लो, अब यह धन तुम्हारा है और इसे तुम्हें लौटाने की भी जरूरत नहीं है।’
दोस्तों, दिल छू लेने वाली इस अनसुनी कहानी से हमें कई सीख मिलती हैं। पहली और महत्वपूर्ण सीख है, देने के लिए संसाधन होने से ज्यादा भाव जरूरी है। दूसरी सीख, अच्छे लोग आपको किसी भी रूप में मिल सकते हैं। इसलिए किसी के भी रूप-रंग या पेशे को देख कर हमें उसके चरित्र का अंदाजा नहीं लगाना चाहिए। तीसरी सीख, संकीर्ण सोच आपके पूरे जीवन को प्रभावित कर सकती है जैसा उक्त कहानी में सेठ के साथ हो सकता था।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
Comments