top of page
Writer's pictureNirmal Bhatnagar

तुम इसे नहीं कर सकते…

June 26, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, मेरा मानना है कि अगर आप सबकी बातें सुनने लगेंगे तो कभी अपने लक्ष्यों को पा नहीं पाएँगे क्योंकि लोगों के किंतु-परंतु, अस्पष्ट बातें, अधूरे सुझाव आपको इतना उलझा देंगे कि आप ख़ुद की क्षमताओं और संभावनाओं को संदेह की नज़रों से देखने लगते हैं। इसके विपरीत जब आप ख़ुद पर यक़ीन करके जीवन में आगे बढ़ते हैं तो निश्चित तौर पर सफल हो जाते हैं। चलिए, इसी बात को एक कहानी से समझने का प्रयास करते हैं।


बात कई साल पुरानी है, गाँव में रहने वाले ८-९ साल के दो एकदम पक्के दोस्त, मोहन और सोहन, खेलते-खेलते गाँव के बाहरी इलाक़े में पहुँच गए, जो सामान्यतः सुनसान रहता था। खेल के दौरान दौड़ते समय मोहन अचानक ही वहाँ मौजूद एक पुराने कुएँ में गिर गया। एक पल के लिए तो सोहन को कुछ समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे?, लेकिन मोहन की बचाओ-बचाओ की चीखने की आवाज़ ने उसको गंभीरता का अहसास कराया और वह भी मदद माँगने के लिये ज़ोर-ज़ोर से बचाओ-बचाओ चिल्लाने लगा। पर उस सुनसान जगह कोई होता, तो उसे बचाने आता।


जब इस बात का एहसास सोहन को हुआ तो उसने चिल्लाना छोड़, अपने आसपास देखना शुरू किया। जल्द ही उसकी नज़र कुएँ के पास पड़ी रस्सी पर पड़ी, जो संभवतः कुएँ से पानी निकालने के काम में लाई जाती थी। सोहन ने रस्सी के एक सिरे को एक ही पल में एक बड़े पत्थर से बांध दिया और दूसरे सिरे को मोहन की ओर कुएँ में फेंक दिया। ८-९ साल के सोहन द्वारा फेंकी गई रस्सी मोहन के लिये ‘डूबते को तिनके का सहारा’, समान थी। उसने लपक कर रस्सी को पकड़ा और ऊपर आने का प्रयास करने लगा।


दूसरी ओर सोहन ने मोहन को साहस बन्धाते हुए अपनी ओर से रस्सी को पूरी ताक़त के साथ ऊपर खींचना शुरू किया। अथक प्रयास के बाद सोहन, मोहन को ऊपर तक खींच लाया। इसके पश्चात दोनों बच्चे गाँव की ओर चल दिये। गाँव पहुँचकर जब सोहन और मोहन ने सभी को उक्त घटना की जानकारी दी, तो उन दोनों की बातों पर कोई यक़ीन करने को राज़ी नहीं था। हर कोई सिर्फ़ एक ही बात कह रहा था, ‘यह तो असंभव है!’ वहाँ मौजूद एक सज्जन ने तो इस बात को आगे बढ़ाते हुए यहाँ तक कहा, ‘तुम एक बाल्टी पानी तो कुएँ से खींच कर निकाल नहीं सकते, इस बच्चे को कैसे बचा लाए? मुझे तो पूरा यक़ीन है कि तुम झूठ बोल रहे हो।’


तभी वहाँ मौजूद एक बुजुर्ग सज्जन दोनों बच्चों का पक्ष लेते हुए बोले, ‘बकवास बंद करो तुम सब लोग। मोहन और सोहन बिलकुल सही कह रहे हैं। तुम्हें मोहन के भीगे हुए कपड़े और दोनों के चेहरे के भाव नहीं दिख रहे हैं क्या? सोहन, मोहन की जान इसलिए बचा पाया क्योंकि वहाँ पर इसके पास मोहन को बचाने का कोई दूसरा उपाय या रास्ता नहीं था और हाँ, वहाँ पर तुम्हारे जैसा कोई भी व्यक्ति नहीं था जो इसे कह सकता था कि, ‘तुम ऐसा नहीं कर सकते हो!’


बात तो दोस्तों, बुजुर्ग व्यक्ति की एकदम सही थी, अगर कोई सोहन के मन में संशय के भाव को पैदा कर देता तो वह मोहन की जान कभी नहीं बचा पाता। इसलिए दोस्तों, अगर ज़िंदगी में सफलता चाहते हो, तो उन लोगों की बातें मानना छोड़ दो जो यह कहते हैं कि ‘तुम इसे नहीं कर सकते…’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

10 views0 comments

Comments


bottom of page