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तुलना कर ख़ुद को कम ना आँके…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

July 1, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक बड़ी प्यारी कहानी से करते हैं। पर्यावरण प्रेमी राजा काम की अधिकता के कारण इस बार कई दिनों बाद अपने बगीचे में गया था। वहाँ सभी पेड़-पौधों को मुरझाया देख हतप्रभ था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि बगीचे के एक से बढ़कर एक पेड़-पौधों को क्या हो गया है? वह एक-एक पेड़ या पौधे के पास जाकर उनसे बात करने लगा; उनसे उनकी परेशानी पूछने लगा। ओक का वृक्ष बड़ा मायूस होकर बोला कि वह देवदार जितना लंबा नहीं है, इसलिए परेशान है। राजा देवदार के पास गया तो उसके भी हाल बुरे थे। राजा ने जब उससे यही प्रश्न दोहराया तो उसने बताया कि वह अंगूर लता की तरह रसीले फल पैदा नहीं कर सकता, इसलिए परेशान है और अंगूर लता का कहना था कि वह गुलाब की भाँति खिल नहीं पाती इसलिए परेशान है। कुल मिलाकर सारे पेड़-पौधे किसी ना किसी दूसरे पेड़-पौधे को देख परेशान थे।


इन सभी से जुदा, बाग के एक कोने में नीम का एक पेड़ बड़ा खुश और खिला-खिला नज़र आ रहा था। राजा उसे देख आश्चर्यचकित था। राजा तुरंत उसके पास गया और उससे बोला, ‘नीम देवता, आपको देख मैं बड़ा हैरान हूँ। इस बाग में जहाँ सारे पेड़-पौधे किसी ना किसी वजह से मुरझाए हुए हैं, वहीं आप सबसे दूर; सबसे अलग होने के बाद भी मज़े में हो। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस बाग के सभी पुराने, ताकतवर पेड़ तो दुखी बैठे हैं और तुम सबसे दूर, सबसे अलग और कमजोर होने के बाद भी इतने प्रसन्न हो। ऐसा कैसे संभव हुआ ?’


नीम का पेड़ मुस्कुराता हुआ बोला, ‘महाराज, इस बाग के पेड़ अपनी विशेषता, अपनी उपयोगिता पहचानने के स्थान पर दूसरों के साथ तुलना कर रहे हैं, इसलिए दुखी हैं। लेकिन मुझे याद है कि बाग के इस स्थान पर मेरा रोपण आपके द्वारा किया गया था। इसलिए मेरा मानना है कि आप यही चाहते होंगे कि मैं अपने गुणों, अपने रूप-रंग से बाग के इस हिस्से की शोभा बढ़ाऊँ। इस बाग को और सुंदर बनाने में अपना सकारात्मक योगदान दूँ। सही कहा ना मैंने? अगर आपको मेरी ज़रूरत यहाँ नहीं होती तो आप पहले ही यहाँ किसी अन्य पेड़ या पौधे को रोपित करते। इसीलिए मैं किसी और की तरह बनने की बजाय अपनी क्षमता के अनुसार श्रेष्ठतम बनने का प्रयास करता हूँ और प्रसन्न रहता हूँ।’


दोस्तों, उक्त कहानी मुझे एक विद्यालय में बच्चों से बात करते वक़्त उस समय याद आई जब मैंने उनसे विषय और कैरियर चुनने के विषय में प्रश्न करा। इस प्रश्न के जवाब में ज़्यादातर बच्चों का कहना था कि उनका निर्णय उस क्षेत्र में मिलने वाले कैरियर, माता-पिता के सुझाव, दोस्तों के निर्णय आदि पर आधारित है। अर्थात् वे सभी दूसरों से प्रभावित हो, अपने जीवन को उनके सपनों के जीवन जैसा बनाना चाह रहे थे। विषय और कैरियर के इस चुनाव में उन्होंने अपनी योग्यता और विशेषता का जरा भी ध्यान नहीं रखा था। इसी वजह से उनमें से कुछ ने ख़ुद को कम आंकने की गलती भी की थी।


वैसे यही गलती हम में से ज़्यादातर लोग दूसरों से अपनी तुलना कर ख़ुद को कम आंक कर करते हैं और जीवन में इसीलिये दुखी रहते हैं। दूसरों की विशेषताओं को देख प्रेरित होने के बजाय अफ़सोस करना इसकी मुख्य वजह है। इसके स्थान पर यह सोचना कि ईश्वर ने हमें किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए जैसे हम हैं, वैसा बनाया है। हम में भी कुछ विशेष योग्यता है, जिसका विकास कर हम भी अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते हैं, हमें विशेष बनाता है। याद रखियेगा; इंसान की सबसे बड़ी भूल ख़ुद की क़ीमत को कम आंकना है। इसलिए दोस्तों, आज नहीं अभी से अपने गुणों, अपनी योग्यताओं पर ध्यान केन्द्रित करें। यह जान लें कि आप जितना समझते हैं, उससे कहीं बेहतर हैं। बड़ी सफलता उन्हीं लोगों का दरवाजा खटखटाती है, जो लगातार खुद के सामने ऊंचे लक्ष्य रखते हैं, जो अपनी कार्यक्षमता को हर पल सुधारते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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