Sep 8, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, अगर आप अपने जीवन को उच्चतम स्तर अर्थात् पूर्णता के स्तर तक जीना चाहते है तो कुछ भी करने से पहले अपने दिमाग़ को प्रशिक्षित करें क्यूँकि अशांति से शांति, दुःख से सुख, बेचैनी या विचलित मन से शांतचित्त, सभी की यात्रा की शुरुआत इसी से होती है। जी हाँ साथियों, जीवन में घटने वाली घटनाओं पर हमारी प्रतिक्रिया क्या होगी यह हमारा दिमाग़, मस्तिष्क अथवा मन ही तय करता है। यहाँ समझना आसान हो जाए इसीलिए मैंने दिमाग़, मस्तिष्क और मन को एक समान ले लिया है।
अपनी बात को मैं आपको एक उदाहरण से समझाता हूँ। मान लीजिए, एक समूह में दो लोग आपस में बात कर रहे हैं। उन दोनों में से एक व्यक्ति कहता है, ‘तुम्हें पता है महेश ने अपने जीवन में बहुत पैसा कमाया है। हालाँकि महेश बड़ा अनुशासित जीवन जीता है लेकिन वह हमेशा आक्रामक और उत्तेजित रहते हुए प्रतिक्रिया देता है। दूसरी ओर अगर तुम सुरेश को देखोगे, तो पाओगे कि उसने पैसा तो बहुत अधिक नहीं कमाया है, लेकिन वह अपने परिवार के साथ गुणवत्ता पूर्ण समय बिताता है और उच्च जीवन मूल्यों का पालन करता है और अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखता है।’
आगे बढ़ने से पहले हम उपरोक्त कथन को थोड़ा गहराई से समझने के लिए हम इसे थोड़ा ध्यान से देखते हैं और इसमें छिपी हुई बातों को अलग-अलग बिंदुओं में लिख लेते हैं। 1) बहुत सारा पैसा कमाना 2) अनुशासित रहना 3) मन की शांति 4) परिवार के साथ गुणवत्ता पूर्ण समय बिताना 5) जीवन मूल्यों का पालन करना 6) स्वस्थ रहना। अब अगर आप महेश और सुरेश की आपस में तुलना इन बिंदुओं के आधार पर करेंगे तो आप अलग-अलग परिणाम पाएँगे। जैसे-
1) अर्जित धन या पैसों के तुलनात्मक अध्ययन में महेश, सुरेश से बेहतर स्थिति में है।
2) अनुशासित जीवन जीने में महेश, सुरेश से बेहतर स्थिति में है।
3) अगर मन की शांति के आधार पर देखा जाए तो सुरेश, महेश के मुक़ाबले बेहतर स्थिति में है।
4) परिवार के साथ गुणवत्ता पूर्ण समय बिताने में भी सुरेश, महेश के मुक़ाबले बेहतर स्थिति में है।
5) महेश ज़रूरत पड़ने पर जीवन मूल्यों से समझौता कर लेता है लेकिन सुरेश के लिए जीवन मूल्य ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं।
6) हालाँकि महेश अनुशासित जीवन जीता है लेकिन फिर भी सुरेश स्वास्थ्य के प्रति अधिक सचेत रहता है।
दोस्तों, उपरोक्त में से किसी एक बिंदु को ध्यान में रखकर, हमें किसी के साथ अपनी तुलना करने की गलती नहीं करना चाहिए, क्योंकि कोई भी दो लोगों के उद्देश्य, लक्ष्य, इरादे, परिस्थितियाँ, योग्यताएँ या क्षमताएँ, उपलब्ध संसाधन, कारण आदि एक समान नहीं हो सकते हैं। जब स्थितियाँ ही समान नहीं है, तो तुलना कैसे सम्भव हो सकती है? इसलिए दोस्तों, तुलना के स्थान पर वांछित बिंदु में अपनी स्थिति के सुधार के लिए दैनिक आधार पर प्रयास करना चाहिए, फिर चाहे वह प्रयास छोटा ही क्यूँ ना हो। इसका सबसे बड़ा फ़ायदा यह होगा कि आपके द्वारा सुधार की दिशा में उठाया गया कदम आपकी क्षमताओं, उपलब्ध संसाधनों, आपकी स्थिति-परिस्थिति, वातावरण या इरादे पर आधारित होगा या उपरोक्त सभी को ध्यान में रखते हुए उठाया गया होगा।
जब सुधार के लिए उठाया गया कदम किसी से तुलना के स्थान पर खुद की क्षमताओं पर आधारित होगा तब आप किसी और से नहीं बल्कि खुद से प्रतिस्पर्धा करते हैं और बिना किसी डर, जटिलता, दबाव के खुद को बेहतर बनाने या खुद को बेहतर स्थिति में लाने में सक्षम होते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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