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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

तृष्णा छोड़ें सुख से जिएँ…

June 14, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, पिछले कुछ दिनों से मैं इंदौर के एक प्रतिष्ठित स्कूल वेदान्त विद्याकुलम में ‘फ्यूचर लैब’ बनवाने में व्यस्त था। इस लैब का मक़सद बच्चों का सामना भविष्य के बदलावों से कर, उन्हें मात्र बड़े नहीं, बहुत बड़े; असंभव से लगने वाले सपने दिखाना था। जैसा सपना डॉ कलाम को उनके शिक्षक श्री शिव सुब्रमण्यम अय्यर ने १९४० के दशक में समुद्र किनारे उड़ती हुई चिड़िया को दिखाकर, दिखाया था। इस एक सपने ने उन्हें तमाम चुनौतियों के बाद भी साधारण छात्र से ‘मिसाइल मैन’ बनाया था। लेकिन शिक्षक श्री शिव सुब्रमण्यम अय्यर का दिखाया सपना अभी भी बाक़ी था, जिसे डॉ कलाम ने भारत के राष्ट्रपति बनने के बाद लगभग ६६ वर्ष की आयु में प्रॉपर ट्रेनिंग के बाद वायुसेना के सुखोई विमान को उड़ाकर पूरा किया।


लेकिन लैब के इंस्टॉलेशन के दौरान आई एक चुनौती को दूर करने के लिए आवश्यक सामान की ख़रीदी के दौरान जब मैं एक सज्जन को इस विषय में समझा रहा था, तो वे बोले, ‘निर्मल भाई! आपकी सबसे बड़ी समस्या यही है की आप असंभव बातों को अपना सपना बना लेते हो और फिर उसकी तृष्णा में फँसकर उलझ जाते हो। अब आप यही गलती बच्चों को बड़े सपने दिखाकर कर रहे हो।’ उस वक़्त तो मैं मुस्कुरा कर चुप रह गया। लेकिन मैं सोच रहा था कि बिना सपनों के क्या जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है? मेरी नज़र में तो नहीं…


वैसे भी तृष्णा और सपनों में बड़ा अंतर होता है। सपने आपको जीवन में आगे बढ़ने के लिए आवश्यक ऊर्जा देते हैं और तृष्णा अक्सर निराशा का कारण बनती है। सपने और तृष्णा के अंतर को मैं आपको थोड़ा विस्तार से समझाने का प्रयास करता हूँ। जब आपका सपना दृढ़ इरादा बन जाता है तो वह आपको प्रेरणा देकर जीवन में सकारात्मक रूप से आगे बढ़ाता है। इसके विपरीत अगर सपना मात्र एक इच्छा है और आप उस इच्छा को हक़ीक़त के धरातल पर लाये बिना पूरा करने के लिए जीते हैं, तो वह तृष्णा बन जाती है।


दूसरे शब्दों में कहूँ तो ‘तृष्णा’, अपने जीवन को आवश्यकताओं की बजाय इच्छाओं के अनुरूप जीने का दूसरा नाम है। जब कोई इंसान कर्म किए बिना सपनों के पूरे होने की इच्छा या आशा के साथ जीता है, तब वह इसका शिकार बनता है और अंत में निराशा से भरा जीवन जीता है। याद रखियेगा, बिना कर्म के आपकी उम्र तो दिनों दिन बढ़ सकती है, लेकिन आप सपनों की दिशा में आगे नहीं बढ़ सकते। इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है कि ‘तृष्णैका तरुणायते’ अर्थात् शरीर वृद्ध हो जाता है, पर तृष्णा कभी वृद्ध नहीं होती, वह सदैव तरुणी बनी रहती है। जी हाँ दोस्तों, संसार रोज़ नये रूप में निखरता है; वह नित्य परिवर्तनशील है लेकिन इस नित्य परिवर्तित संसार में भी तृष्णा कभी वृद्धा नहीं होती, वह सदैव जवान बनी रहती है और इसका कभी नाश भी नहीं होता है।


तृष्णा का शिकार व्यक्ति हर पल असंतोष, निराशा जैसे नकारात्मक भावों की अग्नि में जलता रहता है। इससे बचने का मात्र एक उपाय है, सपने देखने के बाद उसे पूरा करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देना और फिर अंतिम परिणाम को ईश्वर पर छोड़ देना। यही बात हमें भगवान श्री कृष्ण ने गीता में भी सिखाई है। उन्होंने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा था, ‘पार्थ, तू कर्म किए जा फल की चिंता मत कर…’


वैसे भी साथियों सपनों और तृष्णा की तुलना करना तर्क संगत ही नहीं है। जो लोग सपने का सही अर्थ नहीं जानते हैं या जो सपनों पर आधारित जीवन नहीं जीना चाहते हैं, उनसे मैं इतना ही चाहूँगा की वे भी अगर संतुष्टि पूर्ण जीवन जीना चाहते हैं, तो तृष्णा को इसी पाल छोड़ दें क्योंकि ज़रूरतों और आवश्यकताओं को तो पूरा किया जा सकता है, लेकिन इच्छाओं को पूरा करना कभी संभव नहीं है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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