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त्याग और समर्पण से प्रेम बढ़ाएँ…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Mar 12, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, मेट्रो हों या कोई छोटा शहर या फिर कोई क़स्बा या गाँव कोविद 19 के बाद से ही एक समस्या जो मैं एकल या संयुक्त दोनों ही तरह के परिवारों में देख रहा हूँ, वह है रिश्तों को लेकर असहजता। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पति को पत्नी से, भाई को बहन से, पिता को बेटे से, सास को बहु से याने परिवार में हर किसी को हर किसी से कुछ ना कुछ समस्या है। मेरी नज़र में इसकी सबसे बड़ी वजह मैं के भाव का बढ़ जाना है। जिसकी वजह से परिवार के हर सदस्य को दूसरे में कमी नज़र आ रही है और वह उसे बदलने के लिए प्रयासरत है। इसमें सबसे मज़े की बात यह है कि दोनों में से कोई भी रिश्तों को मज़बूत बनाने के लिए खुद बदलने या परेशानी की असली वजह को जानने के लिए तैयार ही नहीं है। ऐसा ही एक मामला हाल ही में मेरे पास काउन्सलिंग के लिये आया जिसमें पति को पत्नी से और पत्नी को पति से समस्या थी। पिछले कुछ माह में बात इतनी बढ़ गई थी कि दोनों ने एक-दूसरे के परिवार से बात करना बंद कर दिया था और दोनों ने मुझसे बातचीत के दौरान एक-दूसरे को अपने-अपने काम और दूसरे की ग़लतियों को गिनाना शुरू कर दिया। शुरुआती समझाइश के साथ मैंने दोनों को एक कहानी सुनाने का निर्णय लिया, जो इस प्रकार थी-


बात कई साल पुरानी है, रामपुर गाँव में रहने वाली एक लड़की रोज़ाना दूध बेचने दूसरे गाँव जाया करती थी। रास्ते में पड़ने वाली नदी पार करते समय वह दूध की टंकी से एक लोटा दूध निकाल कर उसमें पानी मिला दिया करती थी। नदी के दूसरे छोर पर, एक पेड़ के नीचे संत मलकूदास जी बैठकर माला जपते हुए प्रतिदिन उस लड़की को ऐसा करते हुए देखा करते थे। एक दिन उन्होंने उस लड़की को रोका और बोले, ‘बेटी मैं प्रतिदिन तुम्हें इस बड़े बर्तन में से एक लोटा दूध निकालकर, पानी मिलाते हुए देखता हूँ, क्यों करती हो तुम ऐसा?’


लड़की ने पहले तो संत मलकूदास जी को प्रणाम करा फिर बोली, ‘बाबा, इसी गाँव में मेरे होने वाले पति रहते हैं। जबसे सगाई हुई है मैं एक लोटा दूध उन्हें देती हूँ और साथ ही मुझे दूध कम ना पड़े इसलिए इसमें एक लोटा पानी मिला देती हूँ।’ संत मलकूदास जी ने एकदम गम्भीर मुद्रा में आ गए और बोले, ‘बेटी, तुझे पता भी है तू क्या कर रही है? कभी हिसाब लगाकर भी देखा है तूने कि कितना दूध पानी कर चुकी है अपने होने वाले पति के लिए?’ लड़की ने अपनी नज़रें झुकाते हुए कहा, ‘बाबा, जिसको सारा जीवन सौंपने का निश्चय कर लिया है तो फिर हिसाब क्या लगाना? जितना दे सकूँगी, देती रहूँगी।’


लड़की का जवाब सुनते ही संत मलकूदास जी की आँखों से आंसू बहने लगे और उनके हाथ से जपने वाली माला छूट कर नदी में गिर गयी। उन्होंने उसी पल उस लड़की के पैर पकड़ लिए और बोले, ‘बेटी, तुमने तो मेरी आँखें खोल दी। जप के दौरान माला का हिसाब लगाते-लगाते मैं तो जप का अर्थ ही भूल गया या समझ ही नहीं पाया। जब सारा जीवन उस परमपिता परमेश्वर को सौंप दिया फिर क्या हिसाब रखना कि कितनी माला जप ली!’


कहानी पूरी होने के पश्चात मैंने पहले दोनों की ओर देखा, फिर धीमी आवाज़ में कहा, ‘जब दोनों ने एक दूसरे को पूरा जीवन देने का निर्णय कर ही लिया है तो फिर इस बात का क्या हिसाब रखना कि मैंने क्या किया और तूने क्या किया। याद रखना दोनों ने आज तक जो भी किया है वह दूसरे से मिले किसी ना किसी तरह के समर्थन की वजह से ही किया है। रिश्ता कभी भी मैं की वजह से नहीं बल्कि त्याग और समर्पण की वजह से मज़बूत और महान बनता है। जब तुम एक दूसरे की ग़लतियाँ और खुद के कामों को गिनना छोड़ कर त्याग व समर्पण की भावना अपने अंदर लाओगे, तभी प्रेम के भाव के साथ रिश्तों को मज़बूत बनाते हुए जीवन जी पाओगे। जी हाँ दोस्तों, सच्चे प्रेम में लेन-देन का भाव गौण है और त्याग व समर्पण ही प्रेम को महान बनाता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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