Nirmal Bhatnagar
त्यौहार है सही…
Oct 08, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

‘भाई साहब, हमारे यहाँ तो लोगों को घर से निकलने, त्यौहार मनाने के बहाने चाहिए। अब आप देखिए विदेश में जहाँ पूरे साल में 2-4 फ़ेस्टिवल होते हैं, वहीं हमारे यहाँ तो एक महीने में ही 2 त्यौहार आ जाते हैं। अभी नवरात्रि आई, फिर अष्टमी-नवमी और अब दशहरा, फिर कुछ दिन बाद धनतेरस और फिर दिवाली। चलो यहाँ तक भी ठीक था, पर हमारे लोगों की मक्कारी देखिए जो त्यौहार हमारा नहीं है, उसे मनाने के लिए भी तैयार रहते हैं।’
इंदौर में मेरी सोसायटी में रावण दहन के दौरान, पास ही खड़े अनजान व्यक्ति की इन बातों ने कुछ पलों के लिए मेरे ध्यान को भटकाया या मेरी मस्ती, मेरे उत्साह में ख़लल डाला। पर अगले ही पल मैंने सोचा कि यह उनके अपने विचार हैं, मैं रावण दहन का अपना मज़ा इस पर प्रतिक्रिया दे कर या चर्चा करके क्यूँ बर्बाद करूँ? विचार आते ही मैंने मुस्कुरा कर उनकी बात को नज़रंदाज़ करा। लेकिन वे शायद सोच कर ही आए थे कि आज तो किसी ना किसी को अपनी बात ज़रूर मनवाएँगे। वे अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘आप खुद ही सोच कर देखिए इतनी बारिश के दौरान रावण दहन का क्या औचित्य? हल्की फुहार (बारिश) में भी इतने सारे लोग बच्चों को लिए खड़े हैं। खाने के दौरान भी आपने देखा होगा वहाँ खड़े रहने की भी जगह नहीं थी।’
इस बार चुप रहने की जगह मैंने जवाब देने का निर्णय लिया और कहा, ‘सर, आपने बारिश की फुहार और खड़े रहने की जगह तो देखी पर साथ में ही आप बच्चों के उत्साह भरे, खुश चेहरे और खाने के दौरान लोगों का उत्साह भरा मेल-मिलाप और अपनापन देख लेते तो शायद यह नहीं कहते। भारतीय संस्कृति में त्यौहारों का अपना महत्व है, वे हमें हर हाल में खुश रहने का मौक़ा देते हैं। इसीलिए इसे परम्पराओं से जोड़ा गया है। साथ ही यह हमें जीवन मूल्य, धर्म और इंसानियत भी सिखाते हैं। मानवता आधारित इन्हीं सीखों के कारण हम कोरोना के दौरान हुए भावनात्मक और आर्थिक नुक़सान से उबर पाए। इतना ही नहीं यही जल्दी-जल्दी आने वाले त्यौहार लाखों लोगों को आजीविका का साधन भी देते हैं।
उस वक्त मैंने किसी तरह उन सज्जन को शांत करा और रावण दहन कार्यक्रम का पूरा लुत्फ़ उठाया। लेकिन वहाँ से आने के बाद काफ़ी देर तक वही बातें मेरे ज़हन में घूमती रहीं। मैं सोच रहा था कि भारतीय संस्कृति में त्यौहारों को साथ में मिलजुल कर मनाने की प्रक्रिया हमें ढेरों फ़ायदे देती है। जैसे, यह हमें जीवन के नकारात्मक अनुभवों, परेशानियों को भूलकर खुश रहने का मौक़ा देने के साथ-साथ अपनों अर्थात् समाज के साथ जुड़े रहने, समय बिताने का मौक़ा भी देती है। लेकिन साथियों, आज मैं आपको त्यौहारों के एक ऐसे फ़ायदे के विषय में बताना चाहूँगा, जिसे अक्सर हम नज़रंदाज़ कर जाते हैं।
त्यौहार हमें चुनौतियों, विपरीत परिस्थितियों और परेशानी से निकलने का भी मौक़ा देते हैं। जी हाँ, त्यौहारों के दौरान साधारण सी लगने वाली मुलाक़ातें अक्सर ख़ुशियाँ बाँटने के साथ-साथ हमें जीवन के कठिन या चुनौती भरे दौर से बाहर निकलने का रास्ता भी दिखाती हैं। मेरी इस बात को नकारने या इसपर सवाल खड़ा करने के पहले ज़रा गहराई से त्यौहार, परेशानी और समाधान को जोड़ कर देखने के नज़रिए को समझने का प्रयास कीजिएगा।
त्यौहारों के दौरान होने वाली मुलाक़ातों में हम अपनों के साथ होते हैं और हमारे अपने, हमारे द्वारा कहे गये शब्दों के साथ-साथ उनके पीछे के भाव, हमारी स्थिति-परिस्थिति को भी समझ जाते हैं और बातों-ही-बातों में वे हमें चुनौतियों, विपरीत परिस्थितियों से निकलने का मार्गदर्शन भी दे जाते हैं। वैसे यही तो हमारे त्यौहारों का मूल उद्देश्य भी है। जी हाँ साथियों, यही तो वह समय होता है जहाँ बातचीत अपने सही अर्थ याने, बात; जो चित्त तक पहुँच जाए, को चरितार्थ करती है। तो आईए साथियों त्यौहारों के इस समय में हम इस नए उद्देश्य को भी चरितार्थ करते हैं और अपनों को ज़िंदगी जीने की एक नई आस देते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com