Nirmal Bhatnagar
दान याने अच्छे कर्म करने का ईश्वर द्वारा दिया गया स्वर्णिम मौक़ा…
Oct 6, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अक्सर आपने देखा होगा कुछ लोग अपने द्वारा दिये गये दान को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर लोगों को बताते है, उसका प्रचार-प्रसार करते हैं। याने वे ख़ुद का महिमा मंडन इस तरह से करते हैं जैसे वे स्वयं इस कार्य को करके ख़ुदा हो गये है। ऐसे लोगों को मैं सिर्फ़ इतना कहना चाहूँगा कि वे भूल गए हैं कि यह मौक़ा भी उन्हें ईश्वर की कृपा से ही मिला है। इसलिए ऐसी स्थितियों में हवा में उड़ने के स्थान पर ईश्वर का आभारी रहना ही बेहतर है। अपनी बात को मैं जीवन का मर्म समेटे एक बहुत ही प्यारी कहानी से करता हूँ।
बात कई साल पुरानी है, राजा राघवेंद्र के राज्य में ऊँच-नीच, छोटे-बड़े का कोई भेदभाव नहीं था। वे सभी को समान नज़रों से देखते थे और ख़ुद भी सामान्य लोगों की ही तरह अपना जीवन जीते थे। उदाहरण के लिए जब वे भगवान के दर्शन के लिए मंदिर जाते थे तो वे सामान्य लोगों के साथ ही दर्शन किया करते थे। चूँकि उनका मंदिर दर्शन का समय फिक्स था, इसलिए कुछ लोग उसी वक़्त मंदिर पहुँच ज़ाया करते थे। इन्हीं लोगों में दो भिखारी भी थे। अक्सर यह दोनों भिखारी राजा के दायें और बायें ओर बैठकर पूजा किया करते थे।
दायें ओर वाला भिखारी अपनी प्रार्थना में कहा करता था, ‘हे भगवान! तूने राजा को बहुत कुछ दिया है, थोड़ा बहुत मुझे भी दे दे।’ जबकि बायें ओर बैठने वाला भिखारी प्रार्थना के दौरान भगवान से माँगने के स्थान पर राजा से माँगते हुए कहता था, ‘हे राजन! भगवान ने तुझे बहुत कुछ दिया है, उसमें से थोड़ा बहुत मुझे भी दे दे।’ दाईं ओर वाला भिखारी अक्सर इस बात पर बाईं ओर वाले भिखारी को टोकते हुए कहा करता था, ‘माँगना है तो ऊपर वाले से माँग, उसकी इच्छा के बग़ैर कुछ नहीं मिलेगा।’ इसका जवाब बाईं ओर वाला भिखारी बड़े चिढ़ते हुए देता था और कहता था, ‘अपने काम से काम रख, मेरे बीच में मत पड़।’
ख़ैर ऐसे ही कई दिन बीत गये, एक दिन राजा को बाईं ओर बैठने वाले भिखारी पर दया आई और उन्होंने अपने मंत्री से कहा देखो दाईं ओर बैठने वाला भिखारी तो बड़े समर्पण के साथ ईश्वर की पूजा करता है। भगवान एक ना एक दिन उसकी प्रार्थना ज़रूर सुनेंगे और उसे यथोचित फल देंगे। लेकिन बाईं ओर वाला भिखारी हमेशा मुझसे ही माँगता है; मुझसे ही अपेक्षा रखता है। आप एक काम कीजियेगा आज उसे खीर में रखकर सोने की कुछ अशरफ़ियाँ दे दीजिएगा। मंत्री ने राजा की आज्ञा के अनुसार ठीक वैसा ही किया।
अगले दिन राजा वापस मंदिर गये तो यह देखकर हैरान रह गए कि दाईं ओर बैठने वाला भिखारी तो ईश्वर को धन्यवाद दे रहा है और बाईं ओर बैठने वाला राजा से आज भी पूर्व की ही तरह याचना कर रहा है। राजा ने चौंकते हुए उससे पूछा, ‘कल तुम्हें खीर मिली थी या नहीं।’ भिखारी बोला, ‘जी राजन, वह बड़ी स्वादिष्ट थी उसके लिए धन्यवाद। पहले मैंने उसे भरपेट खाया लेकिन वो बहुत ज़्यादा थी इसलिए वह काफ़ी मात्रा में बच गई। फिर मैंने बची हुई खीर आपके दाईं ओर बैठे भिखारी को दे दी क्योंकि वह बेचारा हमेशा भगवान से माँगा करता था और आजतक तो उसे भगवान ने कभी कुछ दिया ही नहीं।’ भिखारी की बात सुनते ही राजा मुस्कुराए और बोले, ‘लेकिन आज ईश्वर ने उसकी सुन ली है और उसे जो चाहिये था, दिलवा दिया है।’
बात तो दोस्तों राजा राघवेंद्र ने बिलकुल सही कही। असल में इस दुनिया में किसी को भी कुछ देने या किसी से भी कुछ लेने वाला भगवान ही है। हम सब इस दुनिया में उसके प्यादे मात्र से ज़्यादा कुछ नहीं है, जिससे वह रोज़ अपनी योजनानुसार कर्म करवा रहा है। इसलिए दोस्तों अगर आपको ईश्वर कुछ दान करने या देने का मौक़ा दे रहा है तो ख़ुद को बहुत बड़ा या दानी मत समझो बल्कि ईश्वर को इस बात के लिए धन्यवाद दो कि उसने अरबों-खरबों इंसानों के बीच में इस पुण्य कार्य के लिए तुम्हें चुना है। वह तुम्हारे हाथों एक नेक काम करवाना चाहता था, इसलिए उसने यह मौक़ा तुम्हें दिया। अन्यथा इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि आप दंभ और अभिमान के शिकार हो जाओ और बेहतर इंसान बनने का एक मौक़ा गँवा दो।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com