May 8, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, मेरी नज़र में आज भी बुराई से कई गुना ज़्यादा अच्छाई मौजूद है। लेकिन अक्सर हम मानसिक, भावनात्मक या भौतिक नुक़सान की वजह से नकारात्मक बातों या घटनाओं को ज़रूरत से ज़्यादा अहमियत दे देते हैं और उन्हें पकड़ कर बैठ जाते हैं। अब आप ही बताइए, जब हमारा पुरा ध्यान नकारात्मकता पर होगा तो हमें सकारात्मकता नज़र आएगी कैसे? हो सकता है मेरे विचार जानने के बाद आपको लगे कि मैं किताबी बातें कर रहा हूँ या अच्छाई पर प्रवचन दे रहा हूँ। लेकिन यक़ीन मानियेगा ऐसा कुछ नहीं है, मेरे मन में उक्त विचार बहादुर के क़िस्से को पढ़कर आए थे।
बहादुर का जन्म एक बहुत ही ग़रीब परिवार में हुआ था। पारिवारिक स्थितियों के चलते उसे महज़ १० या १२ साल की उम्र में एक होटल पर काम करने को मजबूर कर दिया। अब यह छोटा सा चंचल बालक पढ़ने या खेलने के स्थान पर पूरी ऊर्जा और उत्साह के साथ होटल पर काम करता और वहाँ आने वाले ग्राहकों का आदर-सत्कार करता। यक़ीन मानियेगा दोस्तों, उस होटल पर आने वाला कोई भी ग्राहक उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था।
बीतते समय के साथ बहादुर ने भट्टी पर चाय बनाना सीख लिया और उस होटल में उसकी भूमिका बदल गई। अब तो वह कभी-कभी मालिक की कहीं और व्यस्तता या अनुपस्थिति में गल्ला याने कैश काउंटर भी सम्भाल लिया करता था। समय के साथ मालिक का भरोसा बहादुर पर बढ़ता ही जा रहा था और अब तो होटल के मालिक बहादुर के भरोसे होटल छोड़कर शहर के बाहर भी जाने लगे। उनकी अनुपस्थिति में बहादुर पूरी मेहनत से काम करता और उनके आने पर पूरा हिसाब-किताब दे देता था।
एक दिन होटल मालिक की पत्नी ने अपने पति यानी होटल मालिक से कहा, ‘किसी भी व्यक्ति पर इतना अंधविश्वास करना उचित नहीं है, विशेषकर तब जब उसकी उम्र भी इतनी कम हो। आप बहादुर पर भरोसा करके पूरा होटल छोड़कर चले जाते हो, कहीं इसने आपकी अनुपस्थिति में गल्ले से पैसे चुरा लिए तो? उस वक़्त तो होटल मालिक ने हँसी में पत्नी की बात को टाल दिया, परंतु उस दिन से उनके मन में शक ने जन्म ले लिया। अब वे मौक़ा मिलते ही बहादुर पर नज़र रखने की कोशिश किया करते थे।
एक दिन अपने इसी शक के चलते मालिक ने चुपके से मिठाई के काउंटर के पीछे रिकॉर्डिंग चालू करके एक कैमरा रख दिया और दुकान की ज़िम्मेदारी बहादुर को सौंप कर, शाम को आने का कहकर बाहर चले गये। कैमरे और रिकॉर्डिंग से अनजान बहादुर दिन भर होटल को अच्छे से सम्भालता रहा याने लोगों को चाय बनाकर देना; खाने-पीने का सामान, जो वो चाह रहे हैं, उपलब्ध कराना, उनसे पैसे लेना, उसे गल्ले में रखना, आदि, अच्छे से करता रहा।
शाम को मालिक के लौटने पर बहादुर ने सारा हिसाब-किताब उन्हें सौंपा और घर चला गया। उसके जाने के बाद होटल मालिक और उनकी पत्नी ने कैमरे को निकाला और साथ बैठकर उसकी रिकॉर्डिंग देखने लगे। रिकॉर्डिंग देखते-देखते कुछ देर में दोनों की आँखों से आँसू बहने लगे। असल में रिकॉर्डिंग में उन्होंने देखा कि काउंटर पर बैठा बहादुर ना सिर्फ़ सभी ग्राहकों से अच्छा व्यवहार कर रहा था बल्कि उनसे यथोचित पैसे लेकर गल्ले में रखने के बाद उन्हें अच्छे से चाय-नाश्ता उपलब्ध करवा रहा था। दोपहर में बहादुर के पिता होटल पर आए और उससे बोले, ‘बेटा! मुझे एक समोसा, छोले के साथ खिला दो और साथ ही एक चाय पिलवा दो।’ बहादुर ने तुरंत अपने पिता से पंद्रह रुपये चुकाने के लिए कहा। बेटे की बात सुन पिता हैरान थे। वे बहादुर की ओर हैरानी से देखते हुए बोले, ‘बेटा! तू हमसे भी पैसे लेगा और ऐसा व्यवहार करेगा। भला कोई अपने बाप से इस तरह पैसे माँगता है क्या ?’
बहादुर एकदम गंभीर स्वर में बोला, ‘पिताजी, इस समय मैं इस दुकान का नौकर और आप एक ग्राहक हैं। मैं मालिक की अनुमति के बिना आपको बिना पैसे के कुछ भी नहीं दे सकता हूँ। अंततः बहादुर के पिता ने पहले पैसे चुकाये और फिर छोले-समोसा खाया और चाय पीकर बहादुर को गले लगाकर वहाँ से चले गए। पूरा वीडियो देखने के बाद होटल मालिक को बहुत पछतावा हुआ और अगले दिन सुबह, बहादुर के होटल आने पर उन्होंने उसे गले लगा लिया।
दोस्तों, आगे बढ़ने से पहले मैं आपको एक बार और बता दूँ कि यह एक सत्य घटना है। यक़ीन मानियेगा आज भी इस जमाने में बुराई से ज़्यादा अच्छाई मौजूद है। वह तो बस हम लोग बुरी बातों को ज़्यादा याद रखते हैं। अगर आपको मेरी बात पर भरोसा ना हो तो एक बार कागज पेन लेकर उन लोगों के नाम लिख लीजियेगा जिन्होंने आपके साथ बुरा किया है। यक़ीन मानियेगा आप एक पेज भी पूरा नहीं भर पायेंगे। इसके बाद आप उन लोगों के नाम लिखियेगा जिन्होंने आपके साथ अच्छा बर्ताव किया है; आपकी मदद करी है। जैसे स्कूल में टिफ़िन भूलने पर आपको जिसने अपने टिफ़िन से खाना खिलाया था, चोट लगने पर जिसने ध्यान रखा था, जिसने लिफ्ट दी थी, आदि। दोस्तों, मैं दावे से कहता हूँ आपको घटनायें तो याद आएँगी, लेकिन आप उन मददगारों के नाम याद नहीं रख पाओगे। इसीलिए मैंने पूर्व में कहा था हम नकारात्मक भावों और घटनाओं को ज़्यादा महत्व देते हैं; उन्हें पकड़ कर रखते हैं।
दोस्तों, अगर आप इस नकारात्मक नज़रिए से बचना चाहते हैं तो आज नहीं अभी से ही सकारात्मक घटनाओं और अच्छे लोगों के बारे में चर्चा करना शुरू कीजिए। अच्छे विचारों, अच्छे लेखों और अच्छे कार्यों को औरों से साझा कीजिए और साथ ही मौक़ा मिलते ही अच्छे कार्य करने वालों को अप्रीशीएट कीजिए।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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