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दिखावे पर ना जाएँ, अपनी अक़्ल लड़ाएँ…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

July 10, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

‘आडंबर, छद्म रूप, दिखावटी व्यवहार आदि आज के युग में इतना सामान्य हो गया है कि असली इंसान को पहचानना ही मुश्किल हो गया है।’, मित्र के मुख से उक्त बात सुन मैं हतप्रभ था क्योंकि मेरा आज भी मानना यही है कि आज के युग में भी अच्छाई और अच्छे लोग, बुराई और बुरे लोगों के मुक़ाबले कई गुना अधिक है। बस सामान्य नज़रिए या सोच वाले लोग उन्हें देख या पहचान नहीं पाते हैं। ऐसा ही कुछ हाल मेरे मित्र का था। मैंने उसी पल मित्र को सच्चाई का अहसास करवाने और अच्छे लोगों को पहचानने की कला को सिखाने का निर्णय लिया और उसे एक कहानी सुनाई जो इस प्रकार थी।


बात कई साल पुरानी है, जंगल के बीच में मौजूद एक आश्रम अपनी शैक्षणिक गुणवत्ता के कारण लोगों में बड़ी तेज़ी से लोकप्रिय होता जा रहा था। बढ़ती लोकप्रियता के कारण आश्रम में शिक्षा लेने आने वाले लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी। एक बार जंगल के उस इलाक़े में अत्यधिक बारिश के कारण बाढ़ आ गई जिसकी वजह से गुरु जी के लिए आश्रम में रहने वाले लोगों के लिए भोजन व ज़रूरत का सामान उपलब्ध करवाना भी मुश्किल हो गया। आश्रम के गुरुजी ने काफ़ी सोच-विचार कर राजा से मदद लेने का निर्णय लिया और वे एक दिन राजमहल में जाकर उनसे मिले। राजा ने तुरन्त आश्रम के लिये ज़रूरत का सारा सामान मुहैया कराया और ज़रूरत के अनुसार आर्थिक सहायता देना भी प्रारंभ कर दिया।


राजा से मिलने वाली सहायता के कारण आश्रम में तेज़ी से विकास कार्य होने लगा। अब वहाँ छात्रों को रहने के लिए नये कक्ष, व्यवस्थित भोजनशाला, कक्षा के लिए उचित स्थान आदि सब कुछ बनने लगे थे। गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा और अच्छी सुविधा के कारण आश्रम और ज़्यादा प्रसिद्ध होने लगा और आश्रम के गुरु जी की नज़दीकियाँ राजा के साथ बढ़ने लगी। राजा भी अब आवश्यकता पढ़ने पर गुरु जी से सलाह-मशविरा किया करता था, जिसके कारण राज्य के कई मंत्री ख़ुद को असुरक्षित महसूस करने लगे और उनके मन में आश्रम व गुरु जी के प्रति ईर्ष्या उत्पन्न होने लगी।


एक दिन ऐसे सभी मंत्री इकट्ठे होकर राजा के पास गये और उनसे बोले, ‘महाराज, आप दिन-प्रतिदिन दिल खोलकर आश्रम की मदद कर रहे हैं, जिसका प्रभाव हमारे राष्ट्रीय ख़ज़ाने पर भी पढ़ रहा है। एक बार आप आश्रम जाकर देखिए भी तो सही कि क्या वहाँ पर वाक़ई आपकी मदद की ज़रूरत है? हम सभी ने वहाँ जाकर देखा है कि वहाँ रहने वाले सभी लोग स्वस्थ, सक्षम और काबिल होने के बाद भी कुछ करते नहीं है। ना ही वे लोग आध्यात्मिक लगते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि मदद करके आप राजकीय पैसे की बर्बादी कर रहे हैं?’


मंत्रियों की बात सुन राजा को लगा कि आश्रम की मदद कर में कहीं में वाक़ई कोई चूक तो नहीं कर रहा हूँ? लेकिन तभी दूसरे पल उन्हें एहसास हुआ कि गुरु की सिखों ने उसको भी कई बार मुश्किलों से बचाया है और इसीलिए वे स्वयं भी गुरु की बहुत इज्जत करते हैं। वे तुरंत गुरु जी से मिले और बोले, ‘गुरुजी, कुछ लोग लगातार आश्रम के विषय में उल्टी-सीधी बातें बोल रहे हैं। उनका कहना है कि आश्रम में अध्यात्म और शिक्षा से संबंधित कोई कार्य नहीं हो रहा है। वहाँ के लोग अच्छे ख़ासे खाते-पीते मस्तमौला नज़र आते हैं। ऐसे में आपको राजकीय सहायता क्यों दी जाये?’ गुरु उसी पल राजा की मनोदशा समझ गये। उन्होंने राजा को अंधेरा होने के बाद अपने साथ चलने के लिए कहा।


संध्या होते ही दोनों ने अपना भेष बदला और गुरु, राजा को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री के घर पहुँचे और उनपर एक बाल्टी ठंडा पानी डाल दिया। मुख्यमंत्री एकदम चौंक कर उठे और पानी फेंकने वाले अनजान शख़्स को गाली देने लगे। इसके पश्चात वे कुछ और मंत्रियों के घर गये और उन सभी पर भी इसी तरह पानी डाला। सभी मंत्री मुख्यमंत्री की ही तरह अनर्गल बातें और गंदी भाषा का प्रयोग कर रहे थे। ये सभी मंत्री वे लोग थे जो आश्रम को दी जाने वाली मदद का विरोध कर रहे थे। इसके बाद गुरु राजा को आश्रम ले गये और वहाँ सो रहे सन्यासियों और शिष्यों पर भी मंत्रियों की तरह ठंडा पानी डलवाया। यह लोग भी ठंडे पानी की वजह से एकदम ‘हे राम’, ‘राम -राम’ या ‘शिव-शिव’ कहते हुए चौंक कर उठे।


प्रयोग पूरा होते ही गुरु बोले, ‘राजन, मंत्रियों और आश्रम में रहने वाले लोगों की प्रतिक्रिया का अंतर आप स्वयं महसूस कर चुके होंगे। याद रखियेगा, आध्यात्म और भक्ति का अर्थ मंदिर जा कर राम-राम कहना नहीं है और ना ही शिक्षा का अर्थ पूरे समय किताबों में घुसे रहना है। मेरी नज़र में तो जो बात इन्सान को अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रचित्त करती है, वही शिक्षा है और जो इंसान लक्ष्य पाने के लिए कार्य करते वक़्त पूरी तरह एकाग्रचित्त रहे, लक्ष्य के प्रति पूरी तरह समर्पित रहे, वही सच्चा आध्यात्मिक भक्त है।


दोस्तों, आज के युग में जहाँ दिखावा इतना सामान्य हो गया है कि सामान्य लोग भी आडंबर और छद्म रूप धर कर दिखावटी व्यवहार करने लगे हैं। ऐसे में हमें उनके दिखावे पर जाने के स्थान पर उन बातों को पहचानना होगा जो वे अकेले में करते हैं। अर्थात् हमें दिखावे के स्थान पर उन बातों पर ध्यान देना होगा जिससे ऐसे लोगों के असली चरित्र को पहचाना जा सके।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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