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दुनिया से पहले ख़ुद का ख़्याल रखें…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Jul 25, 2024
  • 4 min read

July 25, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत परम श्रद्धेय श्री रामकृष्ण परमहंस जी द्वारा रचित ‘श्री रामचन्द्र की कहानियाँ और दृष्टांत’ से ली गई एक कहानी से करते हैं। एक चारागाह, जहाँ चरवाहे अपनी गायों को चरने ले ज़ाया करते थे, वहाँ एक बहुत ही ख़तरनाक जहरीला साँप रहा करता था। इस वजह से सभी चरवाहे चारागाह में बड़ी सावधानी के साथ सचेत रहकर जाया करते थे। एक दिन एक चरवाहा जब चारागाह से अपनी गायों को चराकर लौट रहा था, तब उसे एक साधु चारागाह में जाते हुए दिखे। चरवाहा दौड़ कर साधु के पास गया और उन्हें हाथ जोड़ कर विनती करता हुआ बोला, ‘महात्मन! कृपा कर आप इस रास्ते से ना जाएँ क्योंकि इस पर एक बहुत ही ख़तरनाक और जहरीला साँप रहता है।


साधु ने सचेत करने के लिए पहले तो चरवाहे को धन्यवाद किया, फिर बोले, ‘बेटा मुझे साँप से डर नहीं लगता और मैं मंत्रों से उसे वश में करना जानता हूँ, इसलिए तुम बिलकुल भी चिंता मत करो।’ इतना कहकर साधु चारागाह के अंदरूनी हिस्से की ओर बढ़ गये। अभी वे कुछ दूर ही चले थे कि उनका सामना उस ज़हरीले साँप से हो गया जो अपना फन उठाये फुफकारता हुआ तेज़ी से साधु की ओर बढ़ रहा था। साधु ने तुरंत मंत्र का जाप करना शुरू कर दिया, जिसकी वजह से सर्प एकदम शांत हो गया। साधु ने सर्प से कहा, ‘सर्प देव, तुम ईश्वर प्रदत्त अपनी शक्ति और क्षमता का दुरुपयोग क्यों कर रहे हो और इंसानों को क्यों नुक़सान पहुँचा रहे हो? इसके स्थान पर प्रभु नाम का जाप करो। इससे तुम ईश्वर से प्रेम करना सीख जाओगे और उसे अपने क़रीब; अपने साथ महसूस करने लगोगे। ऐसा करना तुम्हें हिंसक स्वभाव से भी छुटकारा दिला देगा।’


इतना कहकर साधु ने साँप को मंत्र दीक्षा दी और उसे दोहराने व दूसरों को नुक़सान ना पहुँचाने का कहकर, वहाँ से चले गये। साँप ने उसी पल से अपने गुरु के आदेश का पालन करना शुरू कर दिया। जिसकी वजह से जल्द ही चरवाहों को एहसास हो गया कि सांप अब उन्हें नहीं काटता है। यह देख चरवाहों ने मस्ती-मजाक में सांप पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया, जिसकी वजह से सांप घायल हो गया। लेकिन फिर भी उसने कोई क्रोध नहीं दिखाया। एक दिन तो उस वक़्त हद हो गई जब चरवाहे के एक बच्चे ने साँप को पंच से पकड़ कर कई बार ज़मीन पर दे मारा। जिसकी वजह से वह घायल हो बेहोश हो गया और चरवाहे के बच्चे उसे मरा हुआ समझ कर अपने घर लौट गये। देर रात होश में आने के बाद साँप धीमे-धीमे अपनी बाँबी में चला गया।चरवाहों के लड़कों के डर से अब उसने दिन में अपनी बाँबी से बाहर निकलना बंद कर दिया था। अब वह बस रात को भोजन की तलाश में बाहर निकलता था और पेड़ से गिरे पत्तों और फलों को आहार के रूप में लेकर किसी तरह अपना जीवन चलाता था। इन सब कारणों से सांप अब चमड़ी से ढका, कंकाल मात्र रह गया था। लेकिन इन सबके बाद भी वह पूरे समय गुरु से प्राप्त मंत्र का जाप किया करता था और किसी भी हाल में दूसरों को नुक़सान नहीं पहुँचाता था।


करीब एक साल बाद उन साधु का एक बार फिर उस इलाक़े में आना हुआ। इस बार भी उन्हें रास्ते में चरवाहे मिले और साधु ने उनसे साँप के विषय में पूछा। इस पर चरवाहों ने उन्हें बताया सांप तो अब मर चुका है। लेकिन साधु को उनकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। वे जानते थे कि सांप उस पवित्र मंत्र का फल प्राप्त करने से पहले मर नहीं सकता। वे उस सांप को खोजने के लिए निकल पड़े और चारागाह के अंदर पहुँच कर उन्होंने उसे पुकारा। गुरु की आवाज सुनकर, वह सांप अपनी बाँबी से बाहर आया और बड़ी श्रद्धा से उनके सामने झुक गया। सामान्य बातचीत के बाद साधु ने जब उससे कमजोरी के विषय में पूछा तो वह बोला, ‘गुरुजी, आपने मुझे आदेश दिया था कि मैं किसी को नुकसान न पहुँचाऊँ। इसलिए अब मैं केवल पत्तों और पेड़ से गिरे फलों पर ही जी रहा हूँ। शायद इसने मुझे इतना कमजोर बना दिया है।’ इस पर गुरुजी ने उससे कहा कि भोजन की कमी उसे इतना कमजोर नहीं बना सकती है। इसका कोई और कारण हो सकता है, इसलिए थोड़ा सोच कर जवाब दो। तब सांप को याद आया कि लड़कों ने उसे जमीन पर पटक कर हानि पहुंचाई थी। इस पर वह बोला, ‘गुरुजी, मुझे अब याद आया। चरवाहे के लड़कों ने एक दिन मुझे निर्दयता से जमीन पर पटक कर पीटा था। पर मुझे इसका मलाल नहीं है, वे तो अज्ञानी हैं। आखिर उन्हें कैसे पता चलेगा कि मैं बदल चुका हूँ और अब किसी को डसूँगा नहीं और उन्हें किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा?’


साँप की बात सुनकर साधु बड़े आश्चर्य में पड़ गए और फिर उन्होंने सांप से कहा, ‘कितनी बड़ी नादानी है यह, मैंने तुम्हें लोगों को नुकसान पहुंचाने से, हिंसा करने से मना किया था, खुद की जान बचाने और रक्षा करने के लिए नहीं। याद रखो, खुद की रक्षा करना हमारा सबसे पहला धर्म है। तुम अपने जहर से किसी को मारते नहीं, पर तुम फुफकार तो सकते थे।


दोस्तों, परमहंस जी द्वारा लिखित इस कहानी में दी गई शिक्षा वाक़ई बड़ी ज़बर्दस्त है। यह बिलकुल सही है कि हमें क्रोध या किसी भी तरह के नकारात्मक भावों का प्रयोग दूसरे इंसान पर नहीं करना चाहिए। लेकिन जब कोई आपका सपना चुरा रहा हो, आपकी शांति को अनावश्यक रूप से भंग कर रहा हो या फिर आपके जीवन में अनावश्यक रूप से ख़लल डाल रहा हो, तब दिखावे के तौर पर इनका प्रयोग करना बिलकुल भी ग़लत नहीं है, याद रखियेगा ईश्वर ने हमें अपनी रक्षा करने का हुनर दिया है, इसलिए खुद की रक्षा करना भी हमारी जिम्मेदारी है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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