August 3, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, हम सब जानते हैं कि ‘संगत से रंगत बदलती है’ याने हम जिस माहौल या जिन लोगों के बीच रहते हैं उसका प्रभाव हमारे ऊपर पड़ता है और हम वैसे ही बनते जाते हैं। लेकिन इसके बाद भी अनजाने या अज्ञानता में हम कई बार ऐसी संगत चुन लेते हैं जो हमें काफ़ी नुक़सान पहुँचाती है। अपनी बात को मैं आपको एक क़िस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बात लगभग २ वर्ष पूर्व की है। एक दिन सुबह एक सज्जन अपने बच्चे के प्लेस्कूल में आये और रिसेप्शन पर बैठे कर्मचारी को एक नम्बर देते हुए बोले, ‘सर, मैं अक्सर बाहर रहता हूँ इसलिये कृपया इसके चाचा के नंबर को आप विद्यालय के ग्रुप में जोड़ दें, जिससे विद्यालय संबंधी सारी जानकारी समय से मिल सके।’ बच्चे के हित को मद्देनज़र रखते हुए विद्यालय प्रबंधन द्वारा तुरंत उस नंबर को ग्रुप में जोड़ दिया गया।
कुछ दिनों तक तो सब ठीक चलता रहा। लेकिन अचानक ही विद्यालय प्रबंधन ने नोटिस किया कि पिछले कुछ दिनों में पालकों द्वारा की जाने वाली शिकायतों की संख्या बढ़ने लगी है। विद्यालय प्रबंधन इसकी वजह समझ पाता उसके पहले ही अचानक उस प्लेस्कूल के ३-४ शिक्षकों ने अचानक ही नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। विद्यालय प्रबंधन के साथ मिलकर जब इस विषय में गहरी पड़ताल और इस्तीफ़ा देने वालों का एक्ज़िट इंटरव्यू किया गया तो एक चौकानें वाली जानकारी सामने आई। असल में उस शहर में एक नया प्लेस्कूल आ रहा था, जिसका प्रबंधन इस समस्या के पीछे की मूल वजह था।
जी हाँ साथियों, असल मैं विद्यालय द्वारा एक अभिभावक के निवेदन पर जो नया नम्बर व्हाट्सअप ग्रुप में जोड़ा गया था वह उस नये प्लेस्कूल के संचालक का था। शायद उस नये प्लेस्कूल के संचालक सही क़ीमत पर सफलता पाने के स्थान पर 'किसी भी क़ीमत पर सफलता चाहने’ वाले थे और शायद इसीलिये जीवन और व्यवसायिक मूल्यों को ताक पर रख ग़लत रास्तों को चुन रहे थे। हमने तुरंत उन्हें विद्यालय के सभी ग्रुपों में से बाहर का रास्ता दिखाया और आवश्यक क़ानूनी कार्यवाही की।
लेकिन इतना करने के बाद भी विद्यालय प्रबन्धक संतुष्ट नहीं थे। वे नये प्लेस्कूल संचालक और उस पालक को, जिसने नये प्लेस्कूल के संचालक का नम्बर विद्यालय के समूह में जुड़वाया था, को ’सही सबक़’ सिखाना चाहते थे और इसके लिये वे किसी भी स्तर तक जाने के लिये राज़ी थे। लेकिन मुझे यह उचित नहीं लग रहा था क्योंकि यह एक नकारात्मक प्रतिक्रिया थी, जो हमारी कंस्ट्रक्टिव सोच को प्रभावित कर सकती थी।
मेरे निर्णय को आप दोस्तों, चीन की प्रचलित कहावत से भी समझ सकते हैं जिसके अनुसार, ‘बुरे आदमी से दुश्मनी भी नहीं रखनी चाहिये क्योंकि यह धीरे-धीरे आपको भी बुरा बना देती है।’ अगर आप इस बात से सहमत न हों तो मेरे एक प्रश्न का उत्तर दीजिये, अगर कोई आपको अपशब्द कहता है तो आप उसे किस भाषा में जवाब देंगे? निश्चित तौर पर उसी की भाषा में, सही है ना? इसका अर्थ हुआ अगर हमें बुरे आदमी को जवाब देना है तो हमें उसी की भाषा का प्रयोग करना होगा। अर्थात् बुरे आदमी के साथ उसी के ढंग से लड़ना पड़ेगा। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो आपको दूसरों के साथ वही व्यवहार करना पड़ेगा जो वह समझता है। अब अगर उसका व्यवहार अच्छा होगा तो आप अच्छे बनेंगे और बुरा होगा तो आप बुरे बनेंगे। इसीलिये मैंने पूर्व में कहा था, ‘बुरे आदमी की दुश्मनी आपको भी बुरा बना सकती है।’
इस आधार पर कहा जाये साथियों, तो अगर आप किसी से लड़ाई लड़ना चाहते हैं अर्थात् दुश्मनी मोल लेना चाहते हैं तो किसी अच्छे आदमी को चुनो। अर्थात् जीवन में किसी से तुलना करनी है है, किसी से प्रतियोगिता करनी है तो अच्छे लोगों को चुनो और कोई उपाय नहीं है। चोर से लड़ोगे, तो चोर हो जाओगे। बेईमान से लड़ोगे, तो बेईमान हो जाओगे क्योंकि बेईमानी का पूरा शास्त्र तुम्हें भी सीखना पड़ेगा, नहीं तो जीत न सकोगे। यही बात व्यवसाय पर भी लागू होती है क्योंकि अगर प्रतियोगी अच्छा होगा तो वह आपको अच्छा बनायेगा याने आपके बीच में स्वस्थ प्रतियोगी भावना पैदा करेगा अन्यथा वह आपको भी नीचे गिरा देगा। एक बार विचार कर देखियेगा साथियों…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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