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दूसरों की थाली में घी हमेशा ज़्यादा नज़र आता है…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Aug 25, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, कहते हैं ना, ‘दूसरों की थाली में घी हमेशा ज़्यादा नज़र आता है।’ अर्थात् ज़िंदगी में हमेशा हमें दूसरे लोग ज़्यादा सुखी और समृद्ध नज़र आते हैं। लेकिन हक़ीक़त असल में बिलकुल इसके उलट होती है क्योंकि मेरा मानना है कि चुनौतियाँ, विपरीत परिस्थितियाँ, परेशानी, दुख आदि सभी नकारात्मकताएँ हर किसी के जीवन में होती हैं। कुछ लोग उन नकारात्मक बातों और घटनाओं को ज़्यादा तवज्जो देते हुए, अपने जीवन को नकारात्मक नज़रिए से देखते हैं और इसी वजह से दूसरों से तुलना करते हुए अपना जीवन जीते हैं। नकारात्मक नज़रिया और तुलना करने की आदत ही इन लोगों को दूसरे की थाली में अधिक घी देखने को मजबूर करती है।


ऐसा ही कुछ मेरे एक परिचित की ज़िंदगी में चल रहा था। उन्हें हमेशा लगता था कि उनके भाग्य में कुछ अच्छा लिखा ही नहीं है और इसी वजह से वे हमेशा दुखी रहते थे। जब भी मैं उन्हें समझाने का प्रयास करता था तो वे दूसरों के जीवन से तुलना करते हुए, अपने स्कूल के समय से नौकरी और फिर शादी से लेकर बच्चे होने तक की तमाम नकारात्मक घटनाएँ गिना देते थे।


एक दिन वे सज्जन घर वालों से किसी बात पर नाराज़ होकर मेरे पास आए और कुछ कॉमन मित्रों से तुलना करते हुए बोले, ‘देखिए निर्मल जी इन सभी लोगों का जीवन कितना सहज, सरल और खुशहाल चल रहा है और मेरा देखिए, बारह बजी हुई है। पता नहीं क्या सोच कर ईश्वर ने मेरा भाग्य लिखा है।’ मैंने उसी पल उन्हें असली ज़िंदगी से रूबरू कराने का निर्णय लिया और उन्हें साथ लेकर अपने उस परिचित के यहाँ गया, जिनसे थोड़ी देर पहले वे अपने जीवन की तुलना कर रहे थे। उन सज्जन ने बहुत गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया।


शुरुआती सामान्य बातचीत के बाद मैंने उन सज्जन से उनके व्यापार के विषय में पूछा तो वे बोले, ‘आपको तो पता ही है पार्टनर के धोखा देने की वजह से आजकल हालात कितने ख़राब चल रहे हैं। मकान गिरवी पड़ा है, ऑफिस छिन गया है। एक बार फिर, इस उम्र में शून्य के भी नीचे से शुरुआत कर रहा हूँ।’ इतना कह कर वे सज्जन एक पल के लिए रुके और फिर गहरी साँस लेते हुए बोले, ‘ईश्वर की कृपा से स्वस्थ हूँ और घरवालों का पूर्ण सपोर्ट है, बाज़ार में साख है और काम करना आता है, इसलिए जल्द ही सब कुछ वापस से सामान्य हो जाएगा।


कुछ देर की चर्चा के बाद हम वहाँ से निकले और एक दूसरे मित्र के यहाँ पहुँच गये और शुरुआती सामान्य बातचीत के बाद मैंने वही प्रश्न थोड़ा सा घुमा कर दोहरा दिया और उनसे पूछ लिया ज़िंदगी कैसी चल रही है। प्रश्न सुनते ही मित्र बोले, ‘ईश्वर की कृपा है सब ठीक चल रहा है।’ मैंने तुरंत अगला प्रश्न दागा, ‘पिताजी और भाभी की तबियत कैसी है?’ मित्र बोले, ‘पिताजी तो उम्र संबंधित परेशानियों से जूझ रहे हैं। अभी बाथरूम में गिर गये थे इसलिए बेड पर हैं और पत्नी का तो तुम्हें पता ही है कि कैंसर की वजह से उनकी कीमोथैरेपी चल रही है। बाक़ी सब ईश्वर की कृपा से ठीक है।’


आपसी बातचीत में कब रात के दस बज गये पता ही नहीं चला। अंत में मैंने शुभारात्रि कहते हुए मित्र से विदा ली और उन सज्जन को साथ लेकर पैदल ही अपने घर की ओर चल दिया। रास्ते में मैंने जानबूझकर एक बस्ती में से निकलने का निर्णय लिया जिससे मैं उन सज्जन को जीवन की असली परेशानियों से और रूबरू करा सकूँ। अभी हम उस बस्ती में थोड़ा सा आगे बढ़े थे कि एक घर से आवाज़ आई जिसमें एक महिला ईश्वर से अपने बच्चे को बीमारी से बचाने की दुआ कर रही थी। कुछ कदम आगे चलने पर एक और आवाज़ सुनाई दी, जिसमें एक व्यक्ति संभवतः अपनी पत्नी से कह रहा था कि वह मकान मालिक से बात करके कुछ और दिन की मोहलत ले ले और उससे निवेदन करे कि वह रोज़-रोज़ आकर बच्चों के सामने परेशान ना करे। मैं जल्द ही उसका सारा किराया चुका दूँगा।


थोड़ा और आगे चलने पर हमें भूख से परेशान एक बुजुर्ग खाने के लिए कुछ माँगता हुआ नज़र आया। मैंने उन सज्जन की ओर देखते हुए कहा, ‘आज आपने जीवन के कुछ और रंगों को देखा है। अगर आपको इनमें से किसी की भी परेशानी अपनी परेशानी से कम लगती है तो मैं ज़रूर आपके भाग्य को बुरा मान सकता हूँ। वैसे मैं आपको याद दिला दूँ कि जिससे हम अभी मिले हैं, इनमें से पहले दोनों वही लोग थे जिन्हें आप अपने से बेहतर स्थिति में मानते थे।’


मेरी बात सुन वे सज्जन कुछ देर तो वहीं खड़े रहे, फिर धीमे से बोले, ‘जो लोग हमारे सामने खुश और सुखी दिखाई देते हैं, उनके पास भी कोई ना कोई दुख और परेशानी की कहानी होती है।’ बात तो दोस्तों, उन सज्जन की अब एकदम सटीक थी। इस दुनिया में हर किसी की अपनी कहानी है, बस अंतर इतना होता है कि कुछ लोग उसका रोना रोकर अपने जीवन को मुश्किल बना लेते हैं और कुछ लोग अपने सब दुख और दर्द को छुपाकर या यूँ कहूँ सकारात्मक नज़रिये के कारण परेशानियों को भूलकर अपने जीवन को जीते हैं। यही सकारात्मक नज़रिया अंततः उनके जीवन को खुशहाल बना देता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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