Aug 29, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, बात जब देने या सेवा करने की आती है तो लोग अक्सर कहते हैं कि पहले मैं बड़ा बन जाऊँ फिर करूँगा। लेकिन इस मामले में मेरा मानना इसका ठीक उलट है। जब आप सीमित संसाधन और सीमित समय के बावजूद भी देना और सेवा करना शुरू करते हैं, तब आप बड़े बनते हैं। अपनी बात को मैं आपको एक सच्ची घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ।
अमेरिका के एक रेस्टोरेंट में एक कपल लंच करने के लिए पहुँचा, जहाँ उनका स्वागत एक वेट्रेस ने किया। वेलकम ड्रिंक के बाद वेट्र्स ने उस कपल को मेनू कार्ड दिया, तो मुस्कुराते हुए वह शख़्स बोला, ‘इसकी आवश्यकता नहीं है। आपके होटल में जो सबसे सस्ती डिश हो वह ला दीजिए क्योंकि मेरे पास अभी सीमित पैसे हैं।’ इतना कह कर वह एक पल के लिये रुका, फिर ठंडी साँस लेते हुए बोला, ‘कई महीनों से वेतन नहीं मिला है, इसलिए अभी थोड़ा मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं।’
वेट्र्स सारा ने मुस्कुराते हुए उन्हें दो डिश की सिफ़ारिश की जिस पर वे बिना ज़्यादा सोचे-विचारे या यूँ कहूँ बिना संकोच के राज़ी हो गए क्योंकि वे वाक़ई में सबसे सस्ते थे। सारा जल्दी से उनका ऑर्डर ले आई, जिसे दोनों-पति-पत्नी ने बड़े चाव से खाया। भोजन के पश्चात पति-पत्नी ने वेट्र्स से बिल लाने के लिए कहा। कुछ पलों बाद वेट्रेस बिलिंग वॉलेट में उनके बिल के स्थान पर एक चिट्ठी रख कर लाई, जिसपर लिखा हुआ था, ‘मैं आपकी परेशानी समझ सकती हूँ। इसलिए मैंने अपने व्यक्तिगत खाते से आपके बिल के पैसे चुका दिए हैं और मेरी तरफ़ से गिफ्ट के रूप में कृपया आप यह सौ डॉलर स्वीकारें। कम से कम मैं आपके लिये इतना तो कर ही सकती हूँ।’ इतना कहकर वेट्रेस सारा एक पल के लिये रुकी फिर बोली, ‘और हाँ, यहाँ आने के लिए शुक्रिया।’
दोस्तों, आपको ऐसा लग रहा होगा कि इसमें इतना विशेष क्या है? तो आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बता दूँ कि वेट्रेस सारा उस वक़्त स्वयं भी कठिन वित्तीय परिस्थितियों से गुजर रही थी। उसके बावजूद भी उसने अपनी प्राथमिकताओं को नज़रंदाज़ करते हुए उस कपल के सपने को पूरा करा और इससे भी महत्वपूर्ण यह था कि ऐसा करते वक़्त वह बेहद खुश थी। वैसे यहाँ यह बताना बेहद ज़रूरी है कि सारा अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को सही रूप से निभाने के लिये एक ऑटोमेटिक वाशिंग मशीन खरीदना चाह रही थी और इसके लिए ही पिछले एक वर्ष से पैसे बचा रही थी।
जैसे ही इस बात का पता सारा की दोस्त को चला, तो उसने सारा को बहुत डाँटा क्योंकि वह जानती थी कि उसने बिल चुकाने के लिए दिये पैसे अपनी और अपने बच्चों की ज़रूरतों को टाल कर बचाये थे। असल में सारा की दोस्त का मानना था कि दूसरों की मदद करने से अधिक पैसों की ज़रूरत सारा को स्वयं को थी। अभी सारा और सारा की दोस्त के बीच इस विषय पर चर्चा चल ही रही थी कि इसी बीच सारा के पास उसकी माँ का फ़ोन आया और उन्होंने बड़ा खुश होते हुए कहा, ‘सारा, आज तुमने क्या किया?’ सारा ने थोड़ा सा चौंकते और डरते हुए कहा, ‘मैंने तो कुछ भी नहीं किया। लेकिन आप ऐसा क्यों पूछ रही हो?’ माँ ने उसी अन्दाज़ में कहा, ‘अरे घबरा क्यों रही है? पूरा सोशल मीडिया आज तुम्हारी तारीफ़ों से भरा है। हर कोई तुम्हारे व्यवहार की प्रशंसा में ज़मीन-आसमान एक कर रहा है।’
असल में दोस्तों, उस दंपत्ति ने पूरी घटना को सारा को टैग करते हुए फ़ेसबुक पर साझा कर दिया था और अंत में लिखा था ‘मुझे आप पर फ़ख़्र है…’ अभी सारा की बात सारा की माँ के साथ ख़त्म ही हुई थी कि सारा को उसकी एक स्कूल की फ्रेंड का फ़ोन आया और उसने उसे बताया कि हर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर सारा द्वारा किया गया कार्य सराहा जा रहा है। सारा ने तुरंत अपना फ़ेसबुक अकाउंट खोला, तो उसे टीवी प्रोड्यूसर्स, प्रेस रिपोर्टर्स के सैंकड़ों मेसेज मिले, जो उसके द्वारा किए गए कार्य के विषय में उससे चर्चा करना चाह रहे थे।
अगले दिन सारा अमेरिका के सबसे लोकप्रिय टीवी शो में से एक शो में दिखाई दी। इस प्रोग्राम के अंत में प्रोग्राम के प्रस्तुतकर्ता ने सारा को एक बहुत ही शानदार वाशिंग मशीन, टीवी और दस हज़ार डॉलर दिये। इसके साथ ही एक इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी ने उन्हें इनाम के तौर पर पांच हजार डॉलर का शॉपिंग वाउचर दिया। कुछ ही दिनों में सारा को उसके महान मानवीय व्यवहार की सराहना के लिए मिलने वाली रक़म 100,000 डॉलर से ज़्यादा तक पहुंच गई।
दोस्तों अगर आप पीछे पलटकर देखेंगे तो पायेंगे कि बिना अपेक्षा के सौ डॉलर से कम क़ीमत वाली दो डिशेस ने उसकी ज़िंदगी बदल दी। इसीलिए दोस्तों मैंने इस लेख की शुरुआत में कहा था, ‘जब आप सीमित संसाधन और सीमित समय के बावजूद भी देते और सेवा करते हैं, तब आप बड़े बनते हैं। इसी बात को दूसरे शब्दों में कहा जाये तो उदारता ये नहीं है कि जिस चीज़ की आपको ज़रूरत नहीं है, वो किसी को दे दें, बल्कि उदारता तो यह है कि जिस चीज़ की आपको ज़रूरत है, आप उसे भी किसी और ज़रूरतमंद को दे दें। इसीलिए मैं कहता हूँ असल ग़रीबी पैसों की ग़रीबी नहीं अपितु मानवता और दृष्टिकोण की ग़रीबी है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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