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देने का सुख ही जीवन जीने का सुख है…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

June 15, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, इस प्रकृति का एक ही नियम है, इसे आप जो देंगे वही कई गुना होकर आपके पास वापस आ जाएगा। इसे मैं आपको अमेरिका के पहले अरबपति और सबसे अमीर व्यक्ति जॉन डी रॉकफेलर की कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ। अपनी दूरदृष्टि और व्यापारिक समझ के कारण वे मात्र २५ साल की उम्र में अमेरिका की तीन सबसे बड़े तेल रिफ़ाइनरी में से एक के मालिक बन गए और ३१ वर्ष की उम्र में वे दुनिया के सबसे बड़े तेल रिफाइनर बन गए और ३८ साल की उम्र उन्होंने यू.एस. में 90% रिफाइंड तेल की कमान सम्भाल ली। इसका नतीजा यह हुआ कि 50 की उम्र तक, वह देश के सबसे अमीर व्यक्ति बन गये थे। जब उनकी मृत्यु हुई, तो वह दुनिया के सबसे अमीर आदमी थे।


उनकी व्यवसायिक सफलता में सबसे बड़ा योगदान उनके दृष्टिकोण, निर्णय लेने की क्षमता और रिश्ते निभाने की क्षमता का था। वे अपनी सारी क्षमता का उपयोग, अपनी व्यक्तिगत शक्ति और धन को बढ़ाने में करते थे। ५३ साल की उम्र में उनके जीवन में एक बहुत बड़ा बदलाव आया, वे एक गंभीर बीमारी का शिकार हो गये। जिसकी वजह से उनके पूरे शरीर में दर्द रहने लगा और उनके सारे बाल भी झड़ गये।


नियति का खेल देखिए दोस्तों, दुनिया एकमात्र अरबपति, जो सब कुछ ख़रीदने की क्षमता रखता था, वह अब केवल सूप और हल्के स्नैक्स ही खा और पचा सकता था। उनके एक सहयोगी ने अपने लेख में लिखा था, ‘वह ना तो सो सकते थे, न मुस्कुरा सकते थे और उस समय जीवन में उसके लिए कुछ भी मायने नहीं रखता था।’ उनकी शारीरिक स्थिति को देखते हुए उनके व्यक्तिगत और अत्यधिक कुशल चिकित्सकों ने भविष्यवाणी की थी कि वे एक वर्ष ही जी पाएँगे। यह वर्ष उनके लिए बहुत धीरे-धीरे गुजर रहा था और उनके लिए अत्यधिक पीड़ादायक भी था। रोज़ वे मृत्यु के क़रीब पहुँचते जा रहे थे। एक दिन सुबह उन्हें ख़ुद इस बात का एहसास हुआ। वे सोचने लगे मैंने अपने जीवन में जो कुछ भी किया है वह सब इसी दुनिया में यूँ ही व्यर्थ पड़ा रह जाएगा और वे अपने साथ दूसरी दुनिया में कुछ भी नहीं ले जा सकते हैं।


जो इंसान पूरी दुनिया के व्यापार को नियंत्रित कर सकता था, उसे आज एहसास हो गया था कि अब उसका अपना जीवन ही उसके नियंत्रण में नहीं है। सोच कर देखियेगा दोस्तों, उस इंसान के लिए यह स्थिति कितनी विषम होगी। अब उनके पास एक ही उपाय बचा था, जो भी इस प्रकृति से उन्होंने लिया है, वो उसे ही लौटा दिया जाये। उन्होंने अपने वकीलों, एकाउंटेंट और प्रबंधकों को बुलाया और घोषणा की कि वह अपनी संपत्ति को अस्पताल, अनुसंधान के कार्य और धर्म-दान के लिए उपयोग में लेना चाहते हैं। उन्होंने उसी पल जॉन डी. रॉकफेलर फाउंडेशन की स्थापना की। जल्द ही यह फ़ाउंडेशन अपने लक्ष्य के अनुरूप बड़े-बड़े कार्य करने लगा और अंततः पेनिसिलिन की खोज हुई, जिससे मलेरिया, तपेदिक और डिप्थीरिया का इलाज संभव हो पाया।


दोस्तों, रॉकफेलर की कहानी का सबसे आश्चर्यजनक हिस्सा यह है कि जिस क्षण उन्होंने अपनी कमाई का हिस्सा धर्मार्थ देना शुरू किया, उसी दिन से उनके शरीर की हालात आश्चर्यजनक रूप से बेहतर होती गई। एक समय ऐसा था जहां डॉक्टरों की टीम को लग रहा था कि वे 53 साल की उम्र तक ही जी पाएँगे, लेकिन वे उनके इस आकलन को ठेंगा ठिखाते हुए 98 साल तक जीवित रहे।


दोस्तों, बीमारी ने रॉकफेलर को कृतज्ञता सिखाई और उन्होंने अपनी अधिकांश संपत्ति समाज को वापस कर दी। इसने उन्हें परिपूर्णता और आत्मिक शांति के अहसास से भर दिया और वे पूरी तरह स्वस्थ हो गये। असल में उन्होंने बेहतर और परिपूर्ण होने का तरीका खोज लिया था। ऐसा कहा जाता है कि रॉकफेलर ने जन कल्याण के लिए अपना पहला दान स्वामी विवेकानंद के साथ बैठक के बाद दिया और उत्तरोत्तर वे एक उल्लेखनीय परोपकारी व्यक्ति बन गए। स्वामी विवेकानंद ने रॉकफेलर को संक्षेप में समझाया कि उनका यह परोपकार, गरीबों और संकटग्रस्त लोगों की मदद करने का एक सशक्त माध्यम बन सकता है।


अपनी मृत्यु से पहले, रॉकफेलर ने अपनी डायरी में लिखा था, ‘मुझे जीवन ने काम करना सिखाया, मेरा जीवन एक लंबी, सुखद यात्रा है, काम और आनंद से भरपूर, मैंने राह की चिंता छोड़ दी और ईश्वर ने मुझ पर कृपा की और मुझे हर रोज एक अच्छाई से पूर्ण किया!’


दोस्तों रॉकफेलर की ज़िंदगी से हम बेहतर जीवन जीने के दो महत्वपूर्ण सूत्र सीख सकते हैं। पहला, दुनिया की सारी दौलत से ज्यादा जरूरी है, मन की शांति और दूसरा, देने का सुख ही जीवन का सबसे बड़ा सुख है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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