Apr 8, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, कई बार बच्चे मजाक-मजाक में ही हैरान करने वाली इतनी गंभीर बातें बोल जाते हैं कि विश्वास ही नहीं होता है। ऐसा ही एक वाक़या हाल ही मेरे साथ हुआ जब मैं अपने एक परिचित से मिलने के लिये उनके घर गया। शुरुआती बातचीत के बाद जब मैं उनके बड़े बेटे से बातें कर रहा था तो वो मुझसे बोला, ‘अंकल, कई बार लगता है पिताजी सही में मुझे बाज़ार से तो लेकर नहीं आए हैं?’ प्रश्न सुनते ही मेरे चेहरे पर हंसी आ गई, मैंने जवाब देने के स्थान पर बच्चे से प्रश्न करते हुए पूछा, ‘आपको ऐसा क्यों लगता है?’ तो वह पूर्ण गंभीर लहजे में बोला, ‘अंकल, पापा मुझसे सौतेला व्यवहार करते हैं।’
एक बच्चे के मुँह से इतने गंभीर और बड़े-बड़े शब्द सुन मैं हैरान था। मैं कुछ कहता उसके पहले ही बच्चा अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘असल में अंकल, पापा को तो अपनी बेटी प्यारी है। वे हमेशा उसका पक्ष लेते हैं। उदाहरण के लिए अगर वह कोई गलती करेगी तो वो बोलेंगे, ‘छोड़ना, छोटी बच्ची है।’ और अगर वही गलती मैं करूँगा तो एक घंटे तक डाँटते ही रहेंगे।’ उस बच्चे की बातों को सुन मुझे हंसी आ रही थी। मैं मन ही मन सोच रहा था कि बचपन की अपनी शैतानी; बचपन की अपनी अलग ही परेशानी होती है। जैसे इस बच्चे को ही ले लें, बिना किसी परेशानी के भी परेशान था क्योंकि ना तो वो समझ पा रहा था और ना ही उसे समझाना संभव था कि पिता के लिए दोनों बच्चे समान हैं। वे दोनों से ही समान रूप से प्यार करते हैं; वे दोनों का ही भला चाहते हैं।
ख़ैर! उस वक़्त तो मैंने किसी तरह उस बच्चे को समझा-बुझा कर शांत किया और थोड़ी देर में अपनी मुलाक़ात पूर्ण कर घर लौट आया। लेकिन बाद में, मैं सोच रहा था कि ऐसा ही व्यवहार तो हम अपनी क़िस्मत; अपने भाग्य को दोष देते हुए ईश्वर के सामने करते हैं। अर्थात् अपनी तुलना किसी और से करते हुए, जो नहीं मिला उसके लिए कभी ख़ुद को तो कभी अपनी क़िस्मत को, तो कभी ईश्वर को दोष देते हैं और जो बात बच्चों को समझाते हैं वही ख़ुद नहीं समझते हैं।
अरे भाई जिस तरह हमने उपरोक्त उदाहरण में बच्चे को समझाया था कि पिता के लिए दोनों बच्चे समान होते हैं और वे हर हाल में उनका भला चाहते हैं। ठीक उसी तरह अब हमें ख़ुद को याद दिलाना होगा कि प्रभु याने ईश्वर भी सभी जीवों का मंगल चाहते हैं क्योंकि उन सब की उत्पत्ति उन्हीं से हुई है। बस हमें कई बार उनके व्यवहार में अंतर सिर्फ़ इस वजह से लगता या नज़र आता है क्योंकि वे हमें ठीक करने के लिए वैद्य या डॉ वाला रास्ता अपना रहे होते हैं। अर्थात् जिस तरह डॉ या वैध किसी बीमार को मीठी तो किसी को अति कड़वी दवा से ठीक करता है। लेकिन दोनों से भिन्न व्यवहार करने के पीछे भी उसका उद्देश्य एक ही होता है, रोगी को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान कराना।
ठीक इसी तरह ईश्वर के अलग-अलग लौकिक व्यवहार का उद्देश्य भी हर तरह से अपने बच्चों याने तमाम जीवों का कल्याण करना होता है। जी हाँ दोस्तों, अगर आप किसी भी धार्मिक ग्रंथ को पढ़कर देखेंगे या पौराणिक कथाओं पर गौर करेंगे तो आप पाएँगे कि ईश्वर ने अपनी बड़ी विलक्षण व्यवस्थाओं से हमें तारा है। उदाहरण के लिए अगर आप सुदामा जी को देखेंगे तो पायेंगे कि उन्होंने उन्हें अकिंचन बनाकर तारा है। इसी तरह उन्होंने शुक्र देव को परम ज्ञानी बनाकर, तो विदुर जी को प्रेमी बनाकर तारा है। अगर आप रामायण पर गौर करेंगे तो पायेंगे कि रावण और बाली भगवान राम के हाथों से मरकर मोक्ष को प्राप्त हुए तो सुग्रीव दोस्त बनकर। इसी तरह भगवान कृष्ण ने पाण्डवों को मित्र बनकर तारा और कौरवों को शत्रु बनाकर। लेकिन दोस्तों तरीक़ा कोई सा भी क्यों ना रहा हो, भगवान ने जो भी किया है उसका उद्देश्य अपने भक्तों या बच्चों को तारना ही रहा है। इस आधार पर याद रखियेगा दोस्तों ईश्वर के तारने के तरीक़े में अन्तर हो सकता है लेकिन उनके भाव में नहीं। इसलिए साथियों स्थिति-परिस्थिति या हालत कैसे भी क्यों ना हों कभी ईश्वर को दोष देते हुए मत जीना।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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