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धर्म, अध्यात्म, संस्कृति से सीखकर बनाये गर्व आधारित समाज…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Sep 14, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, निश्चित तौर पर आपने यह गाना तो सुना ही होगा, ‘जब जीरो दिया मेरे भारत ने, भारत ने मेरे भारत ने, दुनिया को तब गिनती आई। तारों की भाषा भारत ने, दुनिया को पहले सिखलाई। देता न दशमलव भारत तो, यूँ चाँद पे जाना मुश्किल था।धरती और चाँद की दूरी का अंदाजा लगाना मुश्किल था॥ सभ्यता जहाँ पहले आई, पहले जन्मी हैं जहाँ पे कला। अपना भारत वो भारत है, जिस के पीछे संसार चला। संसार चला और आगे बढ़ा, यूँ आगे बढ़ा, बढता ही गया, भगवान करे यह और बढ़े, बढता ही रहे और फूले फले॥’


दोस्तों, कैसा लगा था आपको इस गाने को सुनकर? मेरा मानना है इसे सुनने के बाद आपको काफ़ी अच्छा और गर्व की अनुभूति देने वाला लगा होगा। जानते हैं क्यों? क्योंकि इसमें हमें अपने अतीत से गर्व लेने का मौक़ा मिलता है। ऐसा ही कुछ गर्व हमें उस वक़्त भी होता है जब हमें पता चलता है कि हमारे पंचांग खगोलीय घटनाओं के विषय में उस समय से सही बता रहे हैं जब विज्ञान को भी इन बातों का पता नहीं था। ठीक इसी तरह हनुमान चालीसा में भी पृथ्वी से सूर्य की दूरी के विषय में सही-सही बताया गया है और ट्वीन स्टार के एक दूसरे की परिक्रमा के तरीक़े को आधार बनाकर पति-पत्नी के रिश्ते को समझाया गया है।


दोस्तों, ऐसी और भी हज़ारों बातें हैं जिनको हमारा धर्म, हमारा आध्यात्म, हमारी संस्कृति हमें सिखाती है। जैसे रामायण हमें जीवन को किस तरह जिया जाये सिखाती है तो महाभारत हमें जीवन में क्या नहीं करना है, यह बताती है। इसी तरह भगवत् गीता से हम दुनियादारी से ऊपर उठकर सत्य और कर्म के महत्व को समझ सकते हैं।


लेकिन दोस्तों, यह सब संभव कब होगा? जब हम और हमारी आज की पीढ़ी इन सब ग्रंथों, परिपाटियों, संस्कृति और सही इतिहास से जुड़ी रहेगी और यह सिर्फ़ और सिर्फ़ तब संभव हो सकता है जब हम हमारी अपनी भाषा के साथ दोस्ती रख सकें; उसके साथ जुड़े रहें, अन्यथा हम सब भी उतना ही जान पायेंगे जितना ‘व्हाट्सएप विश्वविद्यालय’ हमें सिखा पाएगा। लेकिन आज हम में से ज्यादातर लोग तो अंग्रेज़ी मानसिकता के ग़ुलाम हो गये हैं। जिसके कारण हमारे लिए हिन्दी आये या ना आये उससे ज़्यादा ज़रूरी अंग्रेज़ी आना हो गया है। मुझे बहुत अच्छे से अपना बचपना याद है, हमारे लिये हिन्दी आसान और अंग्रेज़ी मुश्किल होती थी। लेकिन आज के बच्चों को हमारी भाषा याने हिन्दी मुश्किल लगने लगी है और अंग्रेज़ी आसान। आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बता दूँ कि यह मैं आपको १५०-२०० स्कूलों में मिले अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ। यही वजह है दोस्तों, कि आज के बच्चों को नोबिता, हैरी पोर्टर आदि के बारे में तो पता है, लेकिन वे बच्चों के असली हीरो गुरु गोविंद सिंह के बेटों शहज़ादे ज़ोरावर सिंह और शहज़ादे फ़तह सिंह को नहीं जानते हैं। जिन्हें अपने पिता की आज्ञा मानने और अपने धर्म को ना छोड़ने के कारण क्रमशः ९ और ६ वर्ष की उम्र में वज़ीर ख़ान द्वारा दीवार में ज़िंदा चुनवा दिया था।


कहने का तात्पर्य है साथियों, कि बिना अपनी जड़ों से जुड़े गर्व आधारित समाज खड़ा कर पाना संभव नहीं है और जब तक गर्व आधारित समाज नहीं होगा, तब तक सही मायने में हम विकसित राष्ट्र नहीं बन पायेंगे। याद रखियेगा, वृक्ष भी वही बड़ा होता है जिसकी जड़ें मज़बूती के साथ ज़मीन में फैली हुई रहती हैं। इसी तरह इमारत भी वही बड़ी और मज़बूत होती है, जिसकी नींव गहरी और मज़बूत हो। इसलिए साथियों, अगर आप वाक़ई गर्व आधारित समाज का हिस्सा बनना चाहते हैं और अपने देश भारत को विकासशील नहीं विकसित राष्ट्र बनाना चाहते हैं तो अपनी भाषा हिन्दी से ना सिर्फ़ जुड़िये बल्कि अपने बच्चों को भी अन्य भाषाओं के साथ गर्व से हिन्दी सिखाइए। इसी विचार के साथ आप सभी को हिन्दी दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!!


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

 
 
 

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