Dec 14, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, एक बात तो हमें अब स्वीकार कर ही लेनी चाहिए कि कहीं ना कहीं पाश्चात्य का अनुसरण करने में हम अपनी मूल संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं और शायद यही वो सबसे बड़ा कारण है जो हमें धर्म और आस्था के मामले में संकीर्ण बनाता जा रहा है। एक बच्चे से चर्चा करते वक़्त मुझे इस बात का एहसास तब हुआ, जब मैंने उससे हिरण्यकश्यप, सुदामा, प्रह्लाद और नृसिंह अवतार जैसी कहानियों पर बात करना चाहा। मेरी अपेक्षा के विपरीत उस बच्चे को इनमें से किसी के बारे में भी विस्तार से नहीं मालूम था। जब मैंने उससे इस विषय में चर्चा आगे बढ़ाई तो उस बच्चे का कहना था कि हमारे धर्म में यह बातें नहीं बताई जाती हैं।
उस बच्चे का जवाब सुनते ही मुझे हंसी के साथ-साथ अपना बचपन याद आ गया क्योंकि उस समय यह कहानियाँ हमारे लिए धर्म को समझने से ज़्यादा मनोरंजन का साधन थी जो कहीं ना कहीं हमें जीवन मूल्य, इंसानियत या मानवता, संस्कृति, प्रकृति आदि से जोड़ देता था या यूँ कहूँ उसे गहराई से समझने का मौक़ा देता था। मैंने उसी पल उसे कृष्ण और सुदामा की कहानी को नए अन्दाज़ में सुनाने का निर्णय लिया, जो इस प्रकार थी-
बात कई साल पुरानी है एक ग़रीब ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ एक टूटी-फूटी झोपड़ी में रहा करता था। एक दिन उसकी पत्नी रात्रि के समय उसके पास आई और बोली, ‘स्वामी, इन कुछ मुट्ठी भुने चने के अलावा घर में सारा अन्न ख़त्म हो गया है।’ पत्नी की बात सुनते ही पूजा-पाठी ब्राह्मण एकदम हताशा भरे स्वर में बोला, ‘हे भगवान, यह कैसी महिमा है तेरी! जो पूजा-पाठ करता है, लोगों की मदद करता है, उसकी ऐसी हालत कर दी? क्या अच्छाई का यही परिणाम होता है?’ पति की निराशा भारी बातें सुन पत्नी ने उसे उसके एक सक्षम दोस्त के विषय में बताया और उससे मदद माँगने का कहा। पति पहले तो ना-नुकुर करता रहा लेकिन पत्नी के दबाव के कारण अनमने मन से ही जाने की तैयारियाँ करने लगा। उस वक़्त फटेहाल ब्राह्मण के पास ना तो फूटी कौड़ी थी और ना ही अच्छे कपड़े और जूतियाँ।
फटेहाल अवस्था में, मित्र से मदद की आस लिए, वह ब्राह्मण अपनी एकमात्र धोती को तन पर लपेटे धूल और काँटों भरे रास्ते पर चल दिया। मित्र के घर पहुँचने पर उसने घर के सुरक्षाकर्मी को अपना परिचय दिया और मित्र का नाम लेते हुए उसे बुलाने के लिए कहा। सुरक्षाकर्मी ऐसे फटेहाल व्यक्ति से मालिक का नाम सुन नाराज़ हो गया और हंसते हुए बोला, ‘चलो भागो यहाँ से। मेरे साहब ऐसे फटेहाल लोगों से नहीं मिलते। लेकिन वह फटेहाल ब्राह्मण सुरक्षाकर्मी के बुरे व्यवहार और अपमान से परेशान हुए बिना वहीं खड़ा रहा और बार-बार अपनी बात दोहराने लगा। सुरक्षा कर्मी परेशान होकर अपने मालिक के पास गया और फटेहाल ब्राह्मण का नाम लेकर सारा घटनाक्रम सुना दिया। मित्र का नाम सुनते ही वह सेठ नंगे पैर दौड़ा चला आया और सीधे अपने घर पर ले गया, उसके हाथ-पाँव धुलवाये, उसे पहनने के लिए नये कपड़े दिए, उसके पैरों में से कांटे निकाले। इसी बीच फटेहाल ब्राह्मण की धोती में बंधी भुने चनों की पोटली निकल कर ज़मीन पर गिर पड़ी, जिसे उस व्यवसायी ने उठाया और उसमें से चने निकाल कर खाने लगे। अपने बड़े व्यवसायी मित्र का यह रूप देख उस फटेहाल ब्राह्मण की आँखों से आँसू बहाने लगे।
इसी तरह हंसते-मुस्कुराते, मस्ती में कब कई दिन गुजर गए पता ही नहीं चला। इन दिनों में ना तो उस फटेहाल ब्राह्मण ने अपने व्यवसायी मित्र से मदद माँगी और ना ही व्यवसायी ने फटेहाल ब्राह्मण मित्र से उसके आने का कारण पूछा। वहाँ से वापस जाते समय भी फटेहाल मित्र अपने मन की बात व्यवसायी मित्र से कह ना सका और मन में तमाम आशंकाएँ लिए वापस अपने घर की ओर निकल पड़ा। रास्ते में वह मित्र की दिखावे वाली बातों के विषय में सोच रहा था। लेकिन उसकी यह आशंका अपने घर पहुँचते ही ख़ुशी में बदल गई क्योंकि आज उसकी टूटी-फूटी झोपड़ी के स्थान पर एक सुंदर मकान बना हुआ था जिसमें सुख-सुविधाओं का सभी सामान मौजूद था।
कहानी पूरी होते ही मैंने उस युवा से इस कहानी से मिली सीख के विषय में पूछा तो वह बोला, ‘सर, इस कहानी से मुझे मित्रता का महत्व और उसे कैसे निभाना चाहिए यह सीखने को मिला। असली मित्र वही होता है जो ज़रूरत के समय मित्र के काम आए और असली मित्रता वह याने जिसमें बग़ैर जताए, बिना बताए मित्र की सहायता इस रूप में कर दी जाये कि, मित्र को भी पता ना चले। जैसा उपरोक्त कहानी में हुआ था।’
उसकी बात पूरी होते ही मैंने उस युवा से कहा इस कहानी में तुम्हें किसी विशेष धर्म की अच्छाई और किसी धर्म की बुराई तो नज़र नहीं आई? उसके ना में सर हिलाते ही मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘पर निश्चित तौर पर कहानी सुनने के बाद तुम्हारा मन मिठास से भर गया होगा। उसने एक बार फिर हाँ में सर हिला दिया। मैंने उस युवा से बात आगे बढ़ाते हुए कहा आज से अब तुम भी अपने मित्रों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों, सहकर्मियों आदि की इसी तरह से मदद करा करो क्योंकि मिलजुल कर, एक दूसरे का ध्यान रख हम अपने जीवन को मज़े में जी सकते है। अंत में मैंने उस युवा से कहा, ‘बस यही बात हमें कृष्ण और सुदामा की कहानी सिखाती है, जिसे किसी भी धर्म को मानने वाला काम में ले सकता है।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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