June 4, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जिस इंसान के पास ‘धैर्य’ है, उस इंसान को खुशहाल जीवन जीने से कोई रोक नहीं सकता है क्योंकि धैर्यवान इंसान विषम से विषम परिस्थितियों में भी अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाता है। वैसे भी यही बात उसे अन्य प्राणियों से विशेष बनाती है। चलिए, अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बात कई साल पुरानी है, गाँव के बाहरी इलाक़े में रहने वाले संत रोज़ की ही तरह सुबह-सुबह स्नान करने के लिए नदी गये। नदी में डुबकी लगाते ही संत की नज़र नदी की धार में बहते बिच्छू के बच्चे पर पड़ी। संत ने उसी पल बिच्छू के बच्चे को बचाने का निर्णय लिया और उसके समीप पहुँच गए। वहाँ पहुँच कर संत ने जैसे ही बिच्छू के बच्चे को बचाने के लिए हाथ में उठाया, बिच्छू के बच्चे ने उन्हें डंक मार दिया। बिच्छू का डंक लगने से हुई पीड़ा के कारण संत के हाथ से बिच्छू का बच्चा छूट कर वापस से नदी में गिर गया और बहने लगा।
इसके बाद भी संत ने कई बार बिच्छू के बच्चे को बचाने का प्रयास किया, लेकिन हर बार अपनी आदत या यूँ कहूँ स्वभाव के कारण बिच्छू संत को डंक मारता और संत के हाथ से छूटकर नदी में गिर जाता। संत के इस व्यवहार को नदी किनारे खड़े ग्रामीण और बहुत सारे बच्चे आश्चर्यचकित हो देख रहे थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि संत बार-बार एक ही गलती क्यों कर रहे हैं? काफ़ी देर पश्चात जब नदी में संत के समीप ही स्नान कर रहे कुछ ग्रामीणों का धैर्य जवाब दे गया तो उन्होंने संत से कहा, ‘बाबा! आपको बिच्छू का बच्चा बार-बार डंक पे डंक मार रहा है और आप उसे बचाने पर तुले है। छोड़ क्यों नहीं देते आप उसको उसके हाल पे।’ ग्रामीण का प्रश्न सुन संत मुस्कुराए और बोले, ‘अगर तुम गहराई से इस बिच्छू के व्यवहार को देखते तो ऐसा नहीं बोलते। देखो मुश्किल में होते हुए भी यह बिच्छू का बच्चा अपना स्वभाव नहीं छोड़ रहा है, तो फिर हम मनुष्य अपना स्वभाव क्यों छोड़ें? इस जहां में ईश्वर ने सबसे अधिक क्षमता और शक्ति हम मनुष्यों को दी है। हम अपनी पसंद का खाते हैं, पसंद का पहनते हैं, अपनी इच्छा अनुसार सोते और जागते हैं। इस जहां में कोई और प्राणी इस तरह का जीवन नहीं जीता है। इसलिए समस्त प्राणियों की रक्षा करना हमारा धर्म है। बिच्छू का बच्चा अपने धर्म; अपने स्वभाव का पालन कर रहा है और मैं अपने धर्म और धर्म अनुरूप स्वभाव का पालन कर रहा हूँ। वैसे भी हर इंसान की पहली प्राथमिकता असहाय प्राणी की रक्षा करना होना चाहिये।’ इतना कहते-संत ने किसी तरह बिच्छू के बच्चे को कमंडल की सहायता से बचा लिया।’
दोस्तों, आपको यह कहानी बड़ी साधारण और बच्चों को जीवन मूल्य सिखाने वाली लग सकती है। लेकिन यक़ीन मानियेगा इस कहानी में हम सभी का जीवन बदलने की क्षमता है। बस आप ‘बिच्छू के बच्चे’ को विषम परिस्थिति और असफलता से बदल कर देख लीजिए। जीवन में कई बार आप विषम परिस्थितियों से घिर जाते हैं। अथाह प्रयास करने के बाद भी आपको मनमाफिक परिणाम नहीं मिलते हैं अर्थात् हम अपने लक्ष्य को पाने में असफल हो जाते हैं। उस वक़्त हमें संत के माफ़िक़ ही एक बार और प्रयास करना चाहिये और इसे तब तक दोहराते रहना चाहिये जब तक स्थितियाँ हमारे अनुकूल ना हो जायें; हम अपने लक्ष्यों को पाने में सफल ना हो जाएँ। याद रखियेगा, विषम परिस्थितियों में जो अपना धैर्य नही खोता है और अपने कर्तव्यों का पालन करता है, वही इतिहास रचता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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