top of page
  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

धैर्य और तर्क के साथ बच्चों को समझाएँ अपनी बात…

Nov 7, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जीवन में कई अनुभव ऐसे होते हैं जिन्हें भूल पाना संभव ही नहीं होता। ऐसा ही एक अनुभव मुझे एक विद्यालय के अवलोकन के दौरान हुआ। जहाँ एक कक्षा के सारे बच्चे ‘चिटियाँ कलाइयाँ वे…’ गाने पर डांस कर रहे थे सिवाए एक लड़की के, जिसके हाव-भाव बता रहे थे कि वो भी डांस करना जानती है लेकिन कर नहीं रही है। जब मैंने उस बच्ची से इस विषय में बात करी तो उसने बताया कि उसकी कलाइयाँ चिटियाँ याने गोरी नहीं हैं ना, इसलिए कक्षा के अन्य सहपाठी उसे डांस नहीं करने दे रहे हैं। उस बच्ची का जवाब सुन मैं हैरान था, पहले कुछ पलों तक तो मुझे समझ ही नहीं आया कि मैं उसको क्या जवाब दूँ। लेकिन मैं समझ चुका था कि उस बच्ची के सांवले रंग के कारण बच्चे यह भेद पैदा कर रहे हैं। मैंने बच्चों को जात-पात, ऊँच-नीच, रंग भेद आदि का पाठ पढ़ाने के उद्देश्य से एक कक्षा में एकत्र करा और संस्था प्रमुख को बच्चों की संख्या के मुताबिक़ संतरों का प्रबंध करने के लिए कहा।


संतरे आते ही मैंने एक-एक संतरा सभी बच्चों को दिया और उन्हें उसे खाने के स्थान पर अच्छे से देखने और पहचानने के लिए कहा। कुछ देर पश्चात मैंने बच्चों से प्रश्न किया, ‘क्या अब आप अपने संतरों को अच्छे से पहचान सकते हैं?’ सभी बच्चों ने तुरंत ‘हाँ’ में सर हिला दिया। मैंने मुस्कुराते हुए सभी बच्चों से संतरों को वापस एक टोकरी में डालने के लिए कहा। जब सब बच्चों ने संतरे टोकरी में डाल दिये तो मैंने उन्हें अच्छे से मिक्स करवा कर टोकरी एक बार फिर बच्चों की ओर आगे बढ़वा दी और उन्हें अपना-अपना संतरा पहचानने के लिए कहा। मेरी बात सुन सभी बच्चे उलझन में थे क्योंकि अब उन्हें टोकरी में रखे सभी संतरे एक जैसे नज़र आ रहे थे।


मैंने बच्चों से अपने स्थान बैठने के लिए कहा और बोला, ‘टोकरी में रखे सभी संतरे शायद आपको एक जैसे लग रहे होंगे इसीलिए आप अपने संतरे को पहचान नहीं पाए। ऐसा कीजिए आप सभी एक बार फिर एक-एक संतरा लीजिए और उस पर अपना नाम लिख लीजिए या उस पर अपना कोई निशान बना दीजिए जिससे आपके लिए अपने संतरे को पहचानना मुश्किल ना हो।’ सभी बच्चों ने तुरंत वैसा ही करा। मैंने बच्चों से संतरों को एक बार फिर टोकरी में डलवाया और फिर कुछ देर पश्चात बच्चों को अपना-अपना संतरा वापस लेने के लिए कहा। इस बार सभी बच्चों ने कुछ ही मिनिटों में सफलतापूर्वक अपने संतरे को पहचान लिया। मैंने बच्चों के लिए पहले ताली बजवाई और फिर एक बार संतरों को वापस टोकरी में डलवाते हुए पूछा, ‘क्या आप एक बार फिरसे अपने-अपने संतरों को पहचान सकते हैं?’ सभी बच्चों ने पूरे जोश के साथ जोर से ‘हाँ’ कहा।


मैंने सभी बच्चों को पहले एक कहानी सुनाई और फिर उन्हें टोकरी में से अपने-अपने संतरों को लेने के लिए कहा। लेकिन यह क्या? बच्चे इस बार फिर दुविधा में थे क्योंकि वे अपने संतरों को पहचान नहीं पा रहे थे। अरे आप दुविधा में मत पड़िये मैं आपको इसकी वजह बता देता हूँ। असल में जितनी देर में मैंने बच्चों को कहानी सुनाई थी उतनी देर में शिक्षकों ने मेरे कहने पर सभी संतरों की छील दिया था। आप भी सोच रहे होंगे ना मैं यह संतरा-संतरा क्या खेल रहा हूँ। चलिए, अब अपनी बात का पटाक्षेप करता हूँ।


बच्चे मुझसे छिले हुए संतरों के विषय में कुछ बोलते उसके पहले ही मैंने उनसे कहा, ‘बच्चों जिस तरह पहली बार संतरों में किसी तरह का निशान ना होने पर तुम अपने-अपने संतरों को नहीं पहचान पाए थे, ठीक उसी तरह की दिक़्क़त समाज को हमें पहचानने में ना आये इसलिए ईश्वर ने हमें अलग-अलग क़द काठी, रंग रूप में बाँटा है और सबकी शक्ल-सूरत को अलग-अलग बनाया है। सोचो अगर हम सब संतरों की तरह बिलकुल एक जैसे लगते तो क्या होता?’ मेरी बात सुनते ही सभी बच्चे कानाफूसी में व्यस्त हो गये। मैंने उन्हें नज़रंदाज़ करते हुए अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘जिस तरह नाम लिखे संतरों के छिलके उतारने के बाद सभी संतरे एक बार फिर एक जैसे हो गये थे, ठीक उसी तरह अलग-अलग रंगरूप को नज़रंदाज़ कर दिया जाए तो हम सभी बिलकुल एक समान इंसान हैं। इसलिए हमेशा याद रखियेगा धर्म, जाती, रंग, रूप, क़द, काठी आदि के आधार पर कोई बड़ा या छोटा अथवा अच्छा या बुरा नहीं होता। हम सब के जीवन में तो अंतर सिर्फ़ और सिर्फ़ अच्छे और बुरे कर्मों की वजह से आता है।


इस क़िस्से के माध्यम से मैं आपको सिर्फ़ इतना कहना चाहूँगा साथियों कि बच्चों को डराने, धमकाने या ज़बरदस्ती किसी भी बात को मनवाने के स्थान पर उसे अगर धैर्य के साथ तार्किक आधार पर समझाया जाए, तो वे उसे तुरंत स्वीकार लेते हैं। एक बार विचार कर देखियेगा ज़रूर…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com


5 views0 comments
bottom of page