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धैर्य और संयम से जीतें जहां…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Mar 21
  • 3 min read

Mar 21, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आइए साथियों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पहले की है, सुदूर एक राज्य में एक महान योद्धा रहता था। उसकी वीरता और युद्ध कौशल के चर्चे काफ़ी दूर-दूर तक कहे-सुने जाते थे। उसके बारे में एक और बात प्रचलित थी कि उसने अपने जीवन में कभी कोई युद्ध नहीं हारा था। हालाँकि अब उम्र के कारण उसका शरीर बूढ़ा हो चला था, लेकिन उसका युद्ध कौशल, मानसिक बल और स्थिरता व ज्ञान अद्वितीय था। उसकी इन्हीं विशेषताओं और ख्याति के कारण देश-विदेश से युवा योद्धा उसके पास परीक्षण लेने आते थे।


एक दिन एक अहंकारी युवा और कुख्यात लड़ाके ने इस योद्धा को ललकारने का निर्णय लिया। इसके पीछे उसका एक ही उद्देश्य था महान योद्धा को हराना, ताकि वह दुनिया में पहला व्यक्ति बन सके जिसने उसे पराजित किया हो और वह लोकप्रियता हासिल कर सके। यह अहंकारी योद्धा अपने निर्मम व्यवहार और युद्ध कौशल के लिए जाना जाता था। उसके बारे में प्रचलित था कि वो अपने विरोधी की पहली चाल से उसकी कमजोरी भांप लेता और फिर अपनी पूरी ताकत से उस पर आक्रमण करता था। दूसरे शब्दों में कहूँ तो वह अपने विरोधी के पहले वार का इंतज़ार किया करता था और फिर उसकी कमज़ोरी भाँप कर, उसपर शेर की ताक़त और बिजली की गति से पलटवार कर, अपने प्रतिद्वंदी को एक ही बार में पराजित कर देता था।


इसी वजह से बूढ़े योद्धा के अनुयायी थोड़े चिंतित थे। उन्होंने अपने गुरु स्वरूप बूढ़े योद्धा से विनती करी कि वे उस अहंकारी युवा योद्धा की चुनौती को स्वीकार ना करें। लेकिन महान योद्धा इन सभी अनुयायियों की सलाह से सहमत नहीं था। इसलिए उसने इसे अनदेखा करते हुए उस अहंकारी युवा योद्धा की चुनौती को स्वीकार कर लिया। युद्ध के मैदान में जब दोनों योद्धा आमने-सामने हुए तब अहंकारी योद्धा ने अपनी योजनानुसार वृद्ध अनुभवी योद्धा को गुस्सा दिलाने का प्रयास करना शुरू कर दिया जिससे वे पहला वार करें और वो उनकी कमजोरी को पहचान कर उन्हें हरा सके। शुरू में उसने वृद्ध योद्धा को अपमानित किया, फिर उस पर रेत-मिट्टी डाली, उनके चेहरे पर थूका, याने उसने हर वो तरीका अपनाया जिससे बूढ़े योद्धा का धैर्य टूट जाए। लेकिन इस सबके बाद भी बूढ़ा योद्धा शांतचित्त, स्थिर और अडिग खड़ा रहा।


युवा लड़ाके की लाख कोशिश के बाद भी जब कई घंटों तक वृद्ध योद्धा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, तो हताशा ने उसे घेरना शुरू कर दिया और वह थकान महसूस करने लगा। संध्या होते-होते उसकी सारी ऊर्जा ख़त्म हो गई और उसे अपनी हार का एहसास होने लगा। अंत में उसे शर्मिंदगी का एहसास होने लगा और वो वहाँ से हार मान भाग खड़ा हुआ। इस घटना को देख महान योद्धा के कुछ शिष्य बहुत निराश हुए। उन्हें लग रहा था कि उनके गुरु को इस अहंकारी लड़ाके को सबक सिखाना चाहिए था। इसलिए उन्होंने अंत में बूढ़े योद्धा याने अपने गुरु से प्रश्न किया, ‘गुरुदेव, आपने इतना अपमान कैसे सह लिया? आपने उसे भाग जाने का मौका क्यों दिया?’ महान योद्धा मुस्कुराए और बोले, ‘यदि कोई व्यक्ति आपके लिए कोई उपहार लाए, लेकिन आप उसे स्वीकार करने से इनकार कर दें, तो वह उपहार किसके पास रहेगा?’ शिष्यों ने उत्तर दिया, ‘देने वाले के पास ही रहेगा गुरुदेव।’ जवाब सुन महान योद्धा मुस्कुराए और शिष्यों को समझाते हुए बोले, ‘ठीक उसी प्रकार, जब कोई तुम्हें गुस्सा, अपमान और नफरत भेंट में देता है और तुम उसे स्वीकार नहीं करते, तो वह उनके पास ही रह जाता है। क्रोध और अपमान को अपने भीतर स्थान मत दो, क्योंकि इससे केवल तुम्हारी ही हानि होगी।’


बात तो दोस्तों वृद्ध योद्धा की सटीक थी। किसी भी इंसान के लिए संयम और धैर्य ही सबसे बड़ी शक्ति है। यदि हम हर अपमान का जवाब क्रोध से देंगे, तो हम भी उसी नकारात्मकता में फंस जाएंगे। लेकिन यदि हम अपनी शांति और आत्मसंयम बनाए रखेंगे, तो अहंकार और घृणा अपने आप पराजित हो जाते हैं। इसलिए, जीवन में हर स्थिति पर प्रतिक्रिया देने से पहले यह सोचना जरूरी है कि क्या हमें वह 'उपहार' स्वीकार करना चाहिए या नहीं। याद रखिएगा दोस्तों, संयम और धैर्य ही सच्ची जीत की कुंजी है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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