Dec 11, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आइये दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। जंगल से सटे गांव में एक बुजुर्ग सभी ग्रामवासियों को पेड़ पर चढ़ने का प्रशिक्षण दिया करते थे। उनका मानना था, जंगली इलाके में पेड़ पर चढ़ना आना, मुश्किल समय में आपकी जान बचा सकता है। एक बार वे बुजुर्ग गाँव के युवाओं के समूह को पेड़ पर चढ़ने का प्रशिक्षण दे रहे थे। प्रशिक्षण की समाप्ति के पश्चात उन्होंने सभी युवाओं को एक स्थान पर एकत्र किया और उन्हें लेकर एक बड़े ऊँचे और सपाट से पेड़ के पास लेकर गए और उन सभी से बोले, ‘आज तुम्हारे प्रशिक्षण का अंतिम दिन है और मैं यह देखना चाहता हूँ कि तुम सभी लोग पेड़ पर चढ़ने की कला में माहिर हो गए हो या नहीं। चूँकि इस सपाट और ऊँचे पेड़ पर चढ़ना बेहद कठिन है। इसलिए मैं तुम्हें इस चिकने और ऊँचे पेड़ पर चढ़ने की चुनौती दे रहा हूँ। जो भी युवा इस पेड़ पर चढ़ेगा, वह इस विधा का धुरंधर माना जायेगा और वह दुनिया के किसी भी पेड़ पर आसानी से चढ़ पाने में सक्षम होगा।
बुजुर्ग व्यक्ति की बातों ने सभी युवाओं को उत्साहित कर दिया और वे उस पेड़ पर चढ़ने के लिए एक पंक्ति में खड़े हो गए। गुरु याने उस बुजुर्ग का इशारा पाते ही पहला युवा एक ही बार में पेड़ पर चढ़ गया और फिर नीचे उतरने लगा। जब वह आधा पेड़ उतर गया तब बुजुर्ग गुरु उसे समझाते हुए बोले, ‘सावधान… ध्यान से संभलकर उतरो। हमें कोई जल्दी नहीं है।’ उस युवक ने ऐसा ही किया और बड़े आराम से सावधानीपूर्वक नीचे उतर आया। उसके बाद एक-एक करके सभी युवा पेड़ पर चढ़ने लगे। जब वे पेड़ पर चढ़ते थे तब तो बुजुर्ग गुरु उन्हें कुछ नहीं कहते, लेकिन जब वे नीचे आते यानी उतरते वक्त आधे रास्ते पर होते तो बाबा उन्हें सावधान करते हुए कहते, ‘सुनो! आराम से, थोड़ा संभलकर और पूरी सावधानी से उतरो। किसी प्रकार की कोई जल्दी नहीं है।’
सभी युवकों ने बुजुर्ग गुरु की बात मानी और सफलता पूर्वक पेड़ पर चढ़ने और उतरने में सफल हुए। इस सफलता से सभी बड़े खुश थे, लेकिन एक बात उनके मन में खटक रही थी कि पेड़ पर चढ़ना कठिन और जोखिम भरा होने के बाद भी बुजुर्ग गुरु ने उन्हें सावधान नहीं करा, लेकिन उतरते वक्त वे सबको सचेत कर रहे थे। एक युवा से जब रहा नहीं गया तो उसने इसी प्रश्न को बुजुर्ग गुरु से पूछते हुए कहा, ‘बाबा, इस पेड़ की सबसे ऊपरी शाखा पर चढ़ना सबसे कठिन था, पर आपने चढ़ते समय हमें संभलकर रहने के स्थान पर उतरते समय संभलकर रहने के लिए कहा। ऐसा क्यों? हम सबका मानना है कि पेड़ से उतरते समय जब जमीन तक की दूरी बहुत कम रह गई थी, तब संभलकर और सावधान रहकर उतारने का कहना ज़्यादा मायने नहीं रखता।’
बुजुर्ग गुरु हंसते हुए बोले, ‘पेड़ की ऊपरी शाख़ पर चढ़ना अत्यधिक कठिन है, यह मैं भी जानता हूँ और तुम भी। इसलिए मेरे बोले बिना भी तुम पहले से सतर्क रहते हुए ऊपरी शाख़ पर चढ़ोगे। किसी भी कठिन कार्य के प्रारंभ में हर कोई ऐसा ही करता है। अर्थात् शुरू में हर कोई सतर्कता के साथ आगे बढ़ता है। अक्सर मैंने देखा है, जब लोग मंजिल के एकदम करीब होते हैं, तब उनसे चूक होती है। इसकी मुख्य वजह इस बात का एहसास होना है कि मुश्किल दौर तो गुजर गया है और अब हम मंजिल पर पहुंचने ही वाले हैं। यह निश्चिंतता हमारा ध्यान भटकाती है और हम अंतिम समय में गलती कर बैठते हैं। तुम्हारे साथ ऐसा ना हो, इसलिए मैं तुम्हें अंतिम दौर में, जब तुम मंजिल के एकदम करीब थे, तब सचेत कर रहा था।’
बात तो दोस्तों, बुजुर्ग व्यक्ति की एकदम सटीक थी। अगर आप अपने जीवन में पलटकर देखेंगे तो पायेंगे कि स्कूल में परीक्षा के दौरान अंतिम समय में की गई भूल से लेकर आजतक इस गलती को हमने कई बार दोहराया है। अर्थात् जीवन में कई बार कार्य कौशल होने के बाद भी हम कार्य की पूर्णता के अंतिम चरण तक पहुंचकर भी असफल हुए हैं और इसकी मुख्य वजह अंतिम क्षणों में चूक या गड़बड़ हो जाना है। जी हाँ दोस्तों, अंतिम क्षणों की ज़रा सी असावधानी हमारा पूरा काम बिगाड़ देती है और हम पछताते रह जाते हैं। इसकी मुख्य वजह मंजिल के करीब पहुंचकर अपना धैर्य खो देना है। दोस्तों, अगर आप सफलता चाहते हैं तो आज से मंजिल तक पहुंचने तक धैर्य बना कर रखना शुरू कर दीजिए। कार्य के प्रारंभ में जितना धैर्य और सावधानी आवश्यक है, उतना ही कार्य समाप्ति तक भी आवश्यक है। इसलिए मंजिल करीब देखकर धैर्य ना खोयें और उतने ही सावधान रहें, जितने प्रारंभ में थे क्योंकि मंजिल के नज़दीक पहुँचने और मंजिल पर पहुँचने में बहुत फर्क है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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