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ध्यान : ईश्वर के स्मरण के साथ वर्तमान में जीना

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Mar 26, 2024
  • 3 min read

Mar 26, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



आईए साथियों आज के लेख की शुरुआत एक क़िस्से से करते हैं। बात कई वर्ष पहले की है। एक युवा; महर्षि रमण के दर्शन करने के लिए उनके आश्रम गया। महर्षि रमण के वचन सुनने के पश्चात इस युवा के मन में एक प्रश्न आया। उसने तुरंत महर्षि से कहा, ‘गुरुवर, यह ध्यान क्या होता है?’ प्रश्न सुनते ही महर्षि रमण के चेहरे पर मुस्कुराहट फेल गई। वे मुस्कुराते-मुस्कुराते ही अपने एक सहयोगी शिष्य से बोले, ‘बेटा, इस युवा के लिए प्रसाद लाओ।’ अगले ही पल उस युवा के समक्ष एक सादे पत्ते पर एक डोसा परोसा गया। उसी पल महर्षि रमण बोले, ‘वत्स! मेरे ‘हम्म’ कहते ही तुम डोसा ख़ाना शुरू करना और दूसरी बार ‘हम्म’ कहने के पहले ही तुम उसे ख़त्म कर लेना। याद रखना, दूसरी बार हम कहते तक तुम्हारी थाली में डोसे का जरा सा भी टुकड़ा नहीं बचना चाहिए।’


महर्षि रमण की बात सुन युवा उत्साहित हो एकदम से राज़ी हो गया और वहाँ मौजूद बाक़ी सभी लोग उत्सुकता के साथ उसे और महर्षि को देखने लगे। युवा भी अब महर्षि रमण के मुख की ओर एकटक देखकर संकेत का बेसब्री से इंतजार करने लगा। लगभग ५ मिनिट पश्चात महर्षि ने एकदम से ‘हम्म’ की आवाज़ करते हुए युवा को संकेत दिया और संकेत मिलते ही उस युवा ने तेज़ी के साथ बड़े-बड़े कौर लेते हुए डोसा खाना शुरू कर दिया।


असल में वह युवा महर्षि के निर्देश अनुसार उनके दूसरे सिग्नल से पहले डोसा पूर्ण ख़त्म करना चाह रहा था। समय के साथ डोसे का आकार छोटा होता जा रहा था और युवा के चेहरे पर विजयी मुस्कान का भाव छाता जा रहा था। युवा का ध्यान अब पूरी तरह से महर्षि की ओर था, जिससे वह उनके दूसरे संकेत से पहले डोसा ख़त्म कर दे। कुछ पलों बाद पत्ते पर अब डोसे का अंतिम कौर बचा था, जिसे युवा ने हाथ में उठाया ही था कि महर्षि ने ‘हम्म’ का संकेत दिया। युवा ने उसी पल डोसे का अंतिम कौर अपने मुँह में डाल लिया और हाथ जोड़ कर महर्षि की ओर देखने लगा।


महर्षि रमण ने युवा से मुस्कुराते हुए पूछा, ‘चलो अब यह बताओ कि अब तक तुम्हारा ध्यान कहाँ था? डोसे पर; मुझ पर या कहीं और?’ युवा बोला, ‘मेरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ़ आप पर और डोसे पर ही था, बाकी कहीं नहीं।’ युवा का जवाब पूर्ण होते ही महर्षि बोले, ‘हाँ, मैं देख पा रहा था तुम डोसा ख़त्म करने में सक्रिय रूप से लगे हुए थे और साथ ही तुम मुझ पर भी ध्यान रख रहे थे, जिससे तुम मेरा दूसरा संकेत बराबर से देख पाओ। इतनी देर तक तुम्हारा ध्यान बिलकुल भी नहीं भटका।’ इतना कह कर महर्षि एक पल के लिये रुके, फिर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘जिस तरह तुमने डोसा खाने का कार्य पूर्ण करते वक़्त पूरे समय मुझे ध्यान में रखा था, ठीक इसी तरह जब हम ईश्वर को हर पल अपने मन में रखकर दैनिक कार्यों को पूर्ण करते हैं, तब हम ध्यान अवस्था में जीवन को जीते हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो इसे ही ध्यान के रूप में जाना जाता है।’


इसीलिए दोस्तों, मैं हमेशा कहता हूँ कि जब आप हर पल को अपनी मौजूदगी के साथ जीते हैं, तब आप ध्यान अवस्था में रहते हैं। इसी बात को ऊपरी क़िस्से के साथ जोड़ कर देखा जाए तो महर्षि के दोनों संकेत जन्म और मृत्यु को दर्शाते हैं। जब आप इन दोनों सच्चाई को स्वीकारते हुए, जन्म और मृत्यु के बीच के समय को हर पल में मौजूद रहते हुए जीवन जीना, वर्तमान को ध्यान अवस्था में जीना है। साथ ही दोस्तों यही एकमात्र तरीक़ा है, जिसमें आप जागरूक रहते हुए जीवन को पूर्णता के साथ जी सकते है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर


 
 
 

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