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ध्यान : चेतना की यात्रा

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • May 7
  • 3 min read

May 7, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, “ध्यान” को आधुनिक जीवनशैली की कई परेशानियों का समाधान बताया जाता है। इसलिए हम में से ज्यादातर लोग “ध्यान” को लेकर दुविधा में रहते हैं और सोचते रहते हैं कि “ध्यान क्या है?” यकीन मानियेगा, सुनने में यह प्रश्न जितना सरल लगता है, असल में उसका उत्तर उतना ही गहरा और अनुभवजन्य होता है। ध्यान कोई रहस्यमयी प्रक्रिया नहीं है जिसे केवल योगी या तपस्वी ही समझ सकते हैं। वास्तव में तो यह इतना सरल है कि इसे याने ध्यान को हर व्यक्ति अपने जीवन का एक अनिवार्य अंग बना सकता है। बस उसे इसे आसान तरीक़े से समझना होगा।


चलिए, आज हम इस कठिन माने जाने वाले विषय को श्री रमण महर्षि से जुड़ी एक प्रसिद्ध प्रेरणादायक कथा से समझने का प्रयास करते हैं। एक बार एक छोटा बालक अपने माता-पिता के साथ रमण महर्षि के दर्शन के लिए गया। उस बालक के मन में एक जिज्ञासा थी – "ध्यान क्या है?" उसने इस प्रश्न को अपने माता-पिता से भी कई बार पूछा था लेकिन वे उसे कभी इसका सही उत्तर सरलता से समझा नहीं पा रहे थे।


आज जब उसने यही प्रश्न महर्षि से पूछा, तो उन्होंने उत्तर देने के लिए एक अनूठा तरीका चुना। रमण महर्षि ने अपने एक अनुयायी से रसोई से एक डोसा लाने के लिए कहा और उस बच्चे से कहा, “बेटा, जब में पहली बार ‘हम्म’ कहूँ, तब तुम डोसा खाना शुरू करना और अगली बार मेरे ‘हम्म’ कहते ही खाना बंद कर देना। बस इस बीच तुम्हें एक ही बात का ध्यान रखना है कि थाली में कुछ भी बचे नहीं।” उस बच्चे को मसाला डोसा बहुत पसंद था इसलिए उसने उत्साहपूर्वक हामी भर दी।


डोसा आने के पश्चात महर्षि के ‘हम्म’ कहते ही उस बालक ने तेज़ी से डोसा खाना शुरू किया। लेकिन इस दौरान उसका सारा ध्यान लगातार महर्षि के मुख की ओर था, ताकि वह दूसरा संकेत ना चूक जाए। कुछ देर पश्चात महर्षि ने जैसे ही ‘हम्म’ कहा उस बालक ने बचा हुआ सारा डोसा एक साथ मुँह में डाल लिया। जब उस बालक ने मुँह का डोसा पूरी तरह खा लिया तब महर्षि ने बालक से पूछा, “डोसा खाते वक्त तुम्हारा ध्यान कहाँ था?” बच्चा बोला, “आप पर और डोसे पर।” उत्तर सुनते ही महर्षि मुस्कुराए और बोले, “यही ध्यान है। जब मन पूरी तरह से वर्तमान क्षण में, अपने कार्य और ईश्वर के विचार में रमा हो, तो वही सच्चा ध्यान है।” इसके बाद उन्होंने बच्चे को आगे समझाते हुए कहा कि “जीवन की शुरुआत और अंत याने जन्म और मृत्यु, दो ‘हम्म' की तरह हैं। इस जीवन रूपी डोसे को हमें ईश्वर को स्मरण करते हुए, पूरी उपस्थिति और चेतना के साथ पूरा करना है। यही ध्यान का सार है।


यकीन मानियेगा दोस्तों, इस सरल परिभाषा ने ध्यान को लेकर मेरी पूरी धारणा ही बदल दी थी। ध्यान का अर्थ केवल आँखें बंद करके बैठ जाना नहीं है। यह एक जीवंत जागरूकता है, अर्थात् यह अपने विचारों, कार्यों और जीवन के हर पल में प्रभु की उपस्थिति का अनुभव करना है। यह वह अवस्था है जब मन भूत और भविष्य के भ्रम से मुक्त होकर, पूरी तरह से वर्तमान में टिक जाता है।


दोस्तों, अगर आप भी ध्यान का अभ्यास करना चाहते हैं तो आज से ही निम्न बातों को अपने दैनिक जीवन में अपना लें-

१) अपने हर काम में प्रभु का स्मरण रखें।

२) एकाग्रता के साथ कार्य करें।

३) स्वयं को बाहरी हलचलों से अलग कर, भीतर झांके।

४) हर पल को पवित्र मानें, जैसे वह प्रभु का दिया हुआ है।


अंत में दोस्तों, इतना ही कहना चाहूँगा कि ध्यान कोई जटिल तकनीक नहीं, बल्कि सरलता में छुपा एक गहरा अनुभव है। जब हम प्रेम, श्रद्धा और जागरूकता के साथ अपने कार्यों को करते हैं और जीवन को ईश्वर के समर्पण में जीते हैं, तब हम ध्यान की वास्तविकता को अनुभव करते हैं। जैसा कि रमण महर्षि ने उस बालक को डोसे के माध्यम से सिखाया था कि ध्यान का अभ्यास केवल साधना में नहीं, बल्कि रोज़मर्रा के कामों में भी किया जा सकता है। इसके साथ ही यह भी याद रखियेगा दोस्तों कि “ध्यान हमारे भीतर के प्रकाश को उजागर करता है — वह प्रकाश जो सदा से था, है और रहेगा।”


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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