top of page
Search

नई पीढ़ी को तैयार करना है हमारी ज़िम्मेदारी…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Jun 8, 2023
  • 2 min read

June 8, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, बदलते समय के साथ इस दुनिया में लगभग सभी कुछ बदल रहा है, शायद रिश्ते भी और उन्हें निभाने का तरीक़ा भी। हाल ही में मुझे इसका अनुभव तब हुआ, जब मुझे काउन्सलिंग के लिए एक परिवार द्वारा बुलाया गया। काउन्सलिंग के दौरान मैंने पाया कि बच्चे की परवरिश को लेकर माता-पिता दोनों के ही विचार बिलकुल भिन्न थे। एक ओर जहाँ माँ बच्चे को भविष्य की अनिश्चितताओं के लिए तैयार करना चाहती थी, वहीं पिता का मानना था कि उन्होंने जो कुछ भी किया है, वह सब इस इकलौते बच्चे के लिए ही तो किया है। जब मैंने बच्चे के पिता से विस्तार में बात करने का प्रयास किया तो वे बोले, ‘सर, मेरा सारा बचपन तो परेशानी में बीता था। जवानी कमाने में चली गई, आज इतना काम कर लिया है कि सात पुश्तें आराम से खा लेंगी। इसलिए मैं चाहता हूँ कि जब तक मैं इस दुनिया में हूँ कम से कम तब तक तो इसे किसी चीज़ की कमी महसूस ना हो।


उन सज्जन की बात पूरी होते ही मैंने उन्हें एक सूफ़ी कहानी सुनाई, जो इस प्रकार थी।

बात कई साल पुरानी है, एक दिन अमावस की अंधेरी रात में दो मित्र अपने घर की ओर जा रहे थे। इन दोनों मित्रों में से एक मित्र के हाथ में लालटेन थी और दूसरा ख़ाली हाथ था और मज़े की बात तो यह थी की उसको इस बात का ख़याल भी नहीं था। शायद वह सोच रहा होगा, ‘जब मित्र के हाथ में लालटेन है तो मुझे उसकी ज़रूरत ही क्या है? लालटेन जिसके हाथ में है उसे भी उतनी ही रोशनी दे रही है, जितनी वह मुझे दे रही है।’


ख़ैर, दोनों दोस्त आपस में मस्ती-मज़ाक़ करते हुए लालटेन की मद्धिम रोशनी में आराम से अंधेरे जंगल को पार करते हुए अपने घर की ओर चले जा रहे थे। ऐसे ही चलते-चलते मध्य रात्रि को वे एक ऐसे दोराहे पर पहुंचे जहाँ लालटेन हाथ में लिए मित्र बोला, ‘चलो मित्र अलविदा, यहाँ से तुम्हारा और मेरा रास्ता अलग-अलग होगा।’ इतना कहकर वह मित्र अपने रास्ते पर आगे बढ़ गया और दूसरे मित्र के साथ रह गया सिर्फ़ और सिर्फ़ घुप्प अंधेरा।


कहानी पूरी कर मैं कुछ पलों के लिए पूरी तरह शांत हो गया और फिर उस बच्चे के पिता की आँखों में आँखें डाल कर बोला, ‘सर, आज नहीं कल, कल नहीं परसों, एक ना एक दिन हमें भी लालटेन वाले मित्र की तरह यहाँ से विदा हो जाना है। अगर हमने अभी ध्यान नहीं दिया तो हमारे जाने के बाद, हमारे अपनों के जीवन में भी वही बचेगा ‘घुप्प अंधेरा!’ मेरी नज़र में एक अच्छे माता-पिता, पालक या गुरु वही होते हैं जो अपने बच्चों, अपने परिवार के अन्य सदस्यों को जाने के पहले अपनी लालटेन जलाने के लिए सचेत करे। आपने भले ही अपने परिवार और बेटे के लिए सब कुछ कर दिया है लेकिन इसके बाद भी आपको उसे इस बात के लिए तैयार करना होगा कि वह आपके जाने के बाद इसे सम्भाल सके। अपना और परिवार के अन्य सदस्यों का ध्यान रख सके।’


दोस्तों, आप सभी से भी यही निवेदन करना चाहूँगा, नई पीढ़ी को तैयार करते वक्त उपरोक्त बातों पर एक बार विचार ज़रूर कीजिएगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर


 
 
 

留言


bottom of page