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नकारात्मक भावों से बचने के तीन सूत्र…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Nov 6, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों ज़िंदगी जीने के लिए, तो रिश्ते निभाने के लिए होते हैं, लेकिन मैंने अक्सर देखा है कि लोग अपनी ग़लत प्राथमिकताओं एवं अहम, अहंकार, स्वार्थ आदि जैसी नकारात्मक बातों को अपने स्वभाव का हिस्सा बना लेते हैं और ख़ुद चुनौतीपूर्ण तनावग्रस्त जीवन जीते हैं। जी हाँ दोस्तों, मैं तो यहाँ तक कहूँगा कि ग़ुस्सा, ईर्ष्या, घृणा, तृष्णा, आसक्ति आदि सभी नकारात्मक भाव इसी का परिणाम है, जिनसे जीवन के प्रति सही नज़रिया बना कर बचा जा सकता था। अपनी बात को मैं आपको हाल ही में घटी एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ।


एक कपल पारिवारिक रिश्तों में कड़वाहट के चलते मेरे पास काउन्सलिंग के लिए आया। उन दोनों का मानना था कि एक-दूसरे को जीवन साथी के रूप में चुनना ही उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी। कपल से हुई शुरुआती सामान्य बातचीत के दौरान ही मैंने महसूस किया कि वे दोनों सामान्य सी बातों में हज़ार अच्छाइयों को नज़रंदाज़ कर, एक दूसरे की कमियाँ निकालकर झगड़ सकते हैं। जैसे डिनर में दाल, सब्ज़ी, सलाद, पापड़, डेजर्ट सब कुछ अच्छा और स्वादिष्ट होने के बाद भी वे जली हुई रोटी को मुद्दा बना कर झगड़ सकते हैं या फिर पति द्वारा पचास सामान समय पर लाने के बाद भी पत्नी का सारा प्लान छूटे गये एक सामान के कारण गड़बड़ हो सकता था। कहने का अर्थ है दोस्तों वे दोनों खुश रहने की हज़ार वजहों को छोड़ कर अच्छे से अच्छे काम में भी झगड़ने की वजह ढूँढ ही लेते थे।


रिश्तों और जीवन के प्रति ग़लत नज़रिया ही उनकी सारी समस्याओं की जड़ था। वैसे दोस्तों यह समस्या सिर्फ़ उस कपल की ही नहीं है। हम में से कई लोग रिश्तों में तनाव के चलते व्यवसायिक या वैयक्तिक स्तर पर ऐसी स्थितियों का सामना करते हैं। ऐसे लोगों से मैं सिर्फ़ एक प्रश्न पूछना चाहूँगा, क्या झगड़ने से आपकी समस्या का समाधान हो जाता है? नहीं ना… तो फिर झगडा कर अपना मूड, अपना दिन, अपना जीवन बिगाड़ने से क्या फ़ायदा। दोस्तों अगर आप भी इसके शिकार हैं या इससे निपटने का रास्ता खोज रहे हैं तो मेरी निम्न तीन छोटी सी बातों को तीन सूत्र के रूप में अपना कर अपने जीवन का हिस्सा बना लीजियेगा।

पहला सूत्र - स्वीकारोक्ति का भाव विकसित करें

सामान्यतः किसी भी नकारात्मक भाव की शुरुआत अपेक्षाओं के अंतर से होती है। जैसे उपरोक्त केस में पति, पत्नी की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पा रहा था और पत्नी, पति की। पति-पत्नी दोनों ही ख़ुद को बदलने के स्थान पर दूसरे को बदलने का प्रयास कर रहे थे और इसी प्रयास में मिली असफलता ग़ुस्से के रूप में प्रतिबिंबित हो रही थी। ऐसी स्थिति में सबसे पहले यह स्वीकार लें कि इस दुनिया में किसी को भी बदलना नामुमकिन है और जिसे बदला नहीं जा सकता है उसे जैसा है वैसा ही स्वीकारना, आपको प्राथमिक तौर पर शांत रहने का मौक़ा दे सकता है।

दूसरा सूत्र - एडजस्ट करें

जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकारना कुछ समय के लिए तो आपको शांत कर देगा लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि सामने वाला ग़लतियाँ नहीं करेगा। वह तो उसे एक बार नहीं बार-बार दोहरा सकता है। ऐसी स्थिति में थोड़ा एडजस्ट करते हुए समय बिताएँ और तीसरे सूत्र पर पूरे मनोयोग से काम करें।

तीसरा सूत्र - तारीफ़ करें

सामान्यतः अपेक्षा के विपरीत कार्य करना ग़ुस्से या अन्य नकारात्मक भावों को जन्म देता है। इससे बचने के लिए सामने वाले व्यक्ति की कमी से अपना ध्यान हटाकर उसकी अच्छाई पर लगाएँ और उसके अच्छे कार्य की प्रशंसा करें। सच्ची प्रशंसा सामने वाले व्यक्ति के मन में; और अच्छा करके और प्रशंसा पाने की भूख पैदा करेगी और यही भूख धीरे-धीरे आपसी झगड़े या ग़ुस्से की वजह को ख़त्म कर देगी।


जी हाँ दोस्तों, एक्सेप्ट, एडजस्ट और अप्रीशीएट याने तीन ए को अपने जीवन का हिस्सा बना कर हम नकारात्मक भावों से बच सकते हैं। एक बार सोच कर देखियेगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

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