Feb 17, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, जब आप पर्यावरण के बीच में याने बाग-बगीचे या जंगल आदि में कही होते हैं या आप वहाँ घूमने जाते हैं, तो वहाँ आपको पेड़, पौधे, फल, फूल, काँटें, घास, झाडियाँ या फिर कई बार गंदगी आदि सब कुछ एक साथ देखने को मिलता है। अर्थात् वहाँ आँखों को सुकून देने वाला, तो कई बार चुभने वाला नजारा एक साथ नज़र आता है। अगर मैं आपसे पूछूँ कि आप इन दोनों अर्थात् अच्छे और बुरे नज़ारे में से किसे निहारना पसंद करेंगे, तो आप निश्चित तौर पर कहेंगे, अच्छे नज़ारे को। अब अगर मैं आपसे इसकी वजह पूछूँगा तो मुझे लगता है; आपके पास एक ही जवाब होगा, ‘चूँकि यह नजारा सुकून देता है, इसलिए मैं इसे निहार रहा था।’
लेकिन अक्सर इसी बात को हम लोगों से मिलते वक्त भूल जाते हैं और उनमें छुपी हुई हज़ार अच्छाइयों को छोड़कर उनमें बुराइयाँ या कमियाँ खोजने लगते हैं और जब हमारा फ़ोकस कमियों और बुराइयों पर होता है, तब हमारे विचार प्रदूषित होकर नकारात्मक बनने लगते हैं और हम उन लोगों के विषय में नकारात्मक धारणायें बनाकर उनकी बुराई करना शुरू कर देते हैं। अगर लंबे समय तक इस पर ध्यान ना दिया जाए तो अक्सर यह एक आदत का रूप ले लेता है और फिर ऐसे लोगों को बुराई करने में ही आनंद की प्राप्ति होने लगती है। ऐसा करना अंत में ख़ुद को ही नुक़सान पहुँचाने वाला कदम साबित होता है। इसलिए इससे बचना ही इंसान के लिए लाभप्रद है।
ठीक इसी तरह बुराई सुनना भी नुक़सानदायक है। इसे भी बुराई करने के माफ़िक़ ही वैचारिक दुर्बलता की निशानी माना गया है। वैसे भी दोस्तों, दूसरे नज़रिए से भी देखा जाए तो भी बुराई सुनने से बचना ही ठीक है क्योंकि जो लोग आपके सामने दूसरों की बुराई करते हैं, वे निश्चित तौर पर दूसरों के सामने आपकी बुराई भी करते होंगे। इसीलिए बुरा करना ही नहीं अपितु बुरा सुनना भी गलत माना गया है। हम प्रतिदिन जैसा सुनते हैं, देखते हैं, वैसे ही बनने लगते हैं।
इसलिए दोस्तों, बुराई करने के साथ-साथ हमें उन लोगों से अवश्य ही सावधान रहने की ज़रूरत है, जिन्हें दूसरों की बुराई करने में रस की प्राप्ति होती है। याद रखियेगा, विचारों का प्रदूषण फैलने का कारण हमारी वो आदतें हैं, जिनके कारण हमें बुराई सुनने में रस आने लगता है। याद रखियेगा, बुराई को सुनना, बुराई को चुनने समान ही है क्योंकि जब हम बुराई सुनना पसंद करते हैं तो बुराई का प्रवेश हमारे विचारों के माध्यम से हमारे आचरण में स्वतः होने लगता है।
अगर आपका लक्ष्य विचारों के इस प्रदूषण से बचना है तो दोस्तों हमेशा याद रखिएगा, विचारों को विज्ञान से नहीं अपितु स्वयं के आत्मज्ञान से ही मिटाया जा सकता है। इसके लिए सबसे पहले आपको स्वीकारना होगा कि स्वस्थ एवं स्वच्छ विचार ही जीवन की प्रसन्नता का मूल है। अगर आपके विचार अच्छे होंगे तो ही आप जीवन में अच्छी चीजों को चुन पाएँगे और जब आप अच्छी चीजों को चुनेंगे तभी आप जीवन में सकारात्मक रूप से आगे बढ़ पाएँगे। वैसे भी दोस्तों, मेरा मानना है कि ‘जिधर ध्यान लगाया उधर तरक़्क़ी!’ अर्थात् जिस आदत, जिस कार्य, जिस व्यक्ति या जिस भावना पर आप ध्यान देने लगते हैं याने जिस विषय पर अपना सौ प्रतिशत फ़ोकस रखते हैं, आप उसी पर अपना सौ प्रतिशत देने लगते हैं और जब आप अपना सौ प्रतिशत देने लगते हैं तब आप निश्चित तौर पर उस क्षेत्र में प्रगति करने लगते हैं। दोस्तों अब आज से यह आपके ऊपर है कि आप किसे चुनते हैं, अच्छे को या बुरे को।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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