Dec 17, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, मेरे गुरु हमेशा कहते थे कि सफलता प्रतिभा की अपेक्षा दृष्टिकोण पर अधिक निर्भर करती है। शुरू में तो मुझे यह थोड़ा अतिशयोक्तिपूर्ण लगता था, लेकिन जैसे-जैसे मैं इस विचार के साथ जीवन में आगे बढ़ा, मैंने महसूस किया कि नज़रिया सिर्फ़ किसी विशेष क्षेत्र में सफलता नहीं दिलाता वह तो पूरे जीवन को सही दिशा देता है, जिससे आप अपनी दशा सुधार सकें। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ-
बात कई साल पुरानी है, एक शिक्षक अपने दो छात्रों को आम के फलों का बगीचा दिखाने के लिए ले गए। वे अपने छात्रों के साथ प्रकृति की ख़ूबसूरती को निहार ही रहे थे कि कहीं से एक व्यक्ति आया और पेड़ के तने पर बार-बार डंडा मारकर उसके फल तोड़ने लगा। उस व्यक्ति के जाने के बाद शिक्षक दोनों छात्रों से बोले, ‘अभी तुमने पेड़ पर डंडा मार कर आम तोड़ते हुए एक व्यक्ति को देखा था। इस दृश्य के बारे में तुम्हारी क्या राय है?’ शिक्षक का प्रश्न पूरा होते ही एक छात्र बोला, ‘गुरुजी, इस दृश्य को देखकर मैं बड़ा व्यथित हूँ। उस व्यक्ति ने जब तक उस पेड़ को डंडा नहीं मारा, तब तक उस पेड़ ने फल नहीं दिया। मैं सोच रहा था कि जब एक पेड़ बिना डंडा खाये फल नहीं देता तो आप ही बताइये इंसानों से कैसे काम करवाया जाए? इस आधार पर कहा जाए तो यह दृश्य हमें समाज की स्थिति से रूबरू करा रहा है। यह दुनिया कभी भी सीधे-सीधे मानने वाली नहीं है, ऐसी स्थिति में हमें डरा-धमका कर ही काम निकालना पड़ेगा।’
गुरु ने छात्र की राय पर प्रतिक्रिया देने के स्थान पर दूसरे छात्र से पूछा, ‘तुमने भी डंडा मारकर फल तोड़ने वाला दृश्य देखा था। अब मैं उस विषय में तुम्हारी राय जानना चाहता हूँ।’ दूसरे बच्चे ने गुरुजी को प्रणाम करा और बोला, ‘गुरुजी, मेरा तो मानना है कि जिस तरह आम का पेड़ डंडे खाकर भी मीठा फल देता है ठीक उसी तरह मनुष्य को दुख के दौर में भी सुख देना चाहिये। दूसरे शब्दों में कहूँ तो अपमान के बदले एक अच्छा मनुष्य उपकार करता है। यही सज्जन व्यक्ति का धर्म है।’ दूसरे छात्र की बात सुन शिक्षक मुस्कुराए और बोले, ‘बच्चों, स्थिति समान होने के बाद भी उसे देखने की तुम्हारी दृष्टि भिन्न थी। इसलिए तुमने एक ही घटना को अलग-अलग तरीक़े से देखा। इस आधार पर कहा जा सकता है कि मनुष्य जिस दृष्टि से किसी घटना को देखता है, उसी दृष्टि से उसकी व्याख्या करता है और जिस तरह व्याख्या करता है उसी तरह वो कार्य करता है और उसी के मुताबिक़ फल भोगता है।’
बात तो दोस्तों, शिक्षक की बिलकुल सटीक थी। हमारा दृष्टि, हमारा नज़रिया ही हमारी प्रतिक्रिया तय करता है और हमारी प्रतिक्रिया हमारे जीवन की दिशा। उदाहरण के लिए अगर आप उपरोक्त कहानी पर गौर करेंगे तो पायेंगे कि पहले बच्चे का नज़रिया जहाँ सब कुछ अधिकार से या डरा-धमका कर हासिल करने का था, वहीं दूसरी ओर उसका मित्र याने दूसरा छात्र उसे प्रेम से पाने का प्रयास कर रहा था। इसलिए पहले छात्र के जीवन में जहाँ नकारात्मक भावों की अधिकता रहेगी, वहीं दूसरी ओर दूसरा छात्र शांत और सकारात्मक रहेगा।
सीधे-सीधे कहा जाये दोस्तों तो ख़ुशी या ग़म, सुख या दुख, अच्छा या बुरा आदि सब-कुछ परिस्थितियों का नहीं अपितु हमारे नज़रिए याने परिस्थितियों को देखने की हमारी दृष्टि का परिणाम है। इसीलिए दोस्तों, मैंने पूर्व में कहा था कि हमारा नजरिया ही हमारी ज़िन्दगी की दशा और दिशा तय कर सकता है। जो लोग जीवन के इस महत्वपूर्ण सूत्र को समझ जाते हैं वे आपको हमेशा सुखी, खुश, शांत और हर हाल में अच्छाई देखते हुए नज़र आते हैं। वहीं दूसरी ओर इस बात को ना स्वीकार पाने वाले उन्हीं परिस्थितियों में आपको बिखरे, दुखी और परेशान नज़र आते हैं और अंततः चिंता, तनाव में पड़कर अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं। इसलिए दोस्तों, विपरीत से विपरीत परिस्थिति को भी सकारात्मक नज़रिए से देखना शुरू करें, इससे आपकी प्रतिक्रिया, आपके कार्य करने का तरीक़ा भी अपने आप सकारात्मक हो जाएगा जो अंत में आपको मनचाहा सकारात्मक परिणाम देगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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