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नज़रिए से बदले नज़ारे…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Jul 6, 2023
  • 3 min read

July 6, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, यह दुनिया और यहाँ रहने वाले लोग बड़े विचित्र है। अगर आप गौर से देखेंगे तो पाएँगे कि जिन कारणों या स्थिति-परिस्थितियों की वजह से कुछ लोग परेशानी में जीवन जीते हैं; कुछ बड़ा या विशेष नहीं कर पाते हैं याने सफल नहीं हो पाते हैं, कुछ लोग उन्हीं कारणों या स्थिति-परिस्थितियों को अपनी सफलता की मुख्य वजह बना लेते हैं। इसकी मुख्य वजह दृष्टिकोण में अंतर होना है। जी हाँ, कुछ लोग हमेशा अपना पूरा ध्यान समस्याओं पर लगाए रहते हैं और परेशान रहते हैं। इसके विपरीत कुछ लोग अपना ध्यान परेशानी से हटा कर सम्भावनाओं पर लगाते हैं और सफल हो जाते हैं। इसीलिए शायद मेरे गुरु हमेशा कहते हैं, ‘सफलता प्रतिभा की अपेक्षा दृष्टिकोण पर अधिक निर्भर करती है।’


अपनी बात को मैं आपको एक सच्चे किस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ। लेकिन उससे पहले हम एक विकट समस्या को समझ लेते हैं। हम सभी पानी के महत्व को जानते है। हमें पता है कि इसके बिना जीवन की कल्पना करना भी सम्भव नहीं है। लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आज भी हमारे देश की आधे से अधिक जनसंख्या पानी के लिए परेशान है। आज सरकार के अथक प्रयास के बाद भी हम इस योजना के तहत मात्र 11करोड़ याने 56॰84% ग्रामीणों के यहाँ नल कनेक्शन पहुँचा पाए हैं। इंडिया टुडे के अनुसार आज पूरे भारत में मात्र 2% लोगों को पीने के लिए स्वच्छ और अच्छा पानी मिलता है।


दोस्तों, यह समस्या इतनी बड़ी है कि कई गरीब या आदिवासी परिवारों में महिलाओं का 25% समय सिर्फ़ पानी के इंतज़ाम में ही निकल जाता है। ऐसी ही कुछ स्थिति भारत की व्यवसायिक राजधानी मुंबई से 128 किलोमीटर दूर पालघर के समीप बसे केल्वे गाँव में रहने वाले रमेश साल्कर के परिवार की थी। उनकी पत्नी दर्शना को रोज़ अपने दिनभर के काम निपटाने के बाद शाम को गाँव के पानी के सार्वजनिक स्त्रोत तक ज़रूरत का पानी लेने जाना पड़ता था। यह एक बेहद थकाऊ और परेशानी वाला कार्य था।


दर्शना और रमेश के चार बच्चों में से सबसे छोटे बेटे प्रणव को माँ का इस तरह पानी लाने के लिए परेशान होना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था। एक दिन उसने माँ को इस समस्या से हमेशा के लिए आज़ादी दिलाने का निर्णय लिया और एक कुदाली, फावड़ा और एक छोटी सी सीढ़ी लेकर घर के आँगन में इमली और पीपल के पेड़ के बीच कुआँ खोदने लगा। कुएँ खोदने की उसकी लगन का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि प्रणव पूरे दिन में मात्र 15 मिनिट की छुट्टी खाना खाने के लिए लेता था। मात्र 5 दिन में प्रणव ने 14फ़ीट कुआँ खोद दिया था जिसमें पानी की भरपूर आंव आ गई थी। इतना ही नहीं दोस्तों गाँव में बिजली की परेशानी को देख प्रणव ने अपनी झोपड़ी को रोशन करने के लिए सौर पैनलों को मोटरसाइकिल की बैटरी से जोड़ा है। जिस उम्र में उसके हमउम्र बच्चे खेलना, टीवी देखना, मोबाइल, लैपटॉप या इंटरनेट चलाना या बाज़ार जाकर पिज़्ज़ा जैसी चीज़ें खाना पसंद करते हैं, वहीं प्रणव अपना ज़्यादातर समय नवोन्वेषी याने इन्नोवेशन के कामों में उन चीजों के साथ प्रयोग करने में लगाता है जिससे वह अपनी या परिवार की समस्याओं को दूर कर सके।


आदर्श विद्या मंदिर के नौवीं कक्षा के आदिवासी छात्र प्रणव ने दोस्तों यह सिद्ध कर दिया था कि कई लोग जिन बातों को अपनी राह का रोड़ा मानते हैं, कुछ लोग उन्हीं को आधार बना कर अपनी सफलता की कहानी लिखते हैं। इसीलिए मैंने पूर्व में कहा था, ‘किसी भी लक्ष्य को पाना बिना सही दृष्टिकोण के सम्भव नहीं है।’ तो आइए साथियों, आज से हम अपनी समस्याओं को नए नज़रिए से देखना शुरू करते हैं, जिससे हम अपने जीवन को बेहतर बना सकें।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर


 
 
 

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