Nirmal Bhatnagar
नम्र, शिष्ट और शालीन वाणी से जीतें लोगों के दिल…
Sep 15, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आइये दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। कई साल पहले बारिश ना होने के कारण तालाब सूखने पर वहाँ रहने वाले मेंढकों के समूह ने अपना स्थान बदलने का निर्णय लिया। अगले दिन सभी मेंढक सुबह जल्दी उस तालाब से निकल कर दूसरे तालाब की ओर जाने लगे। रास्ते में वे सभी मेंढक आपस में हंसी-मजाक, मस्ती करते हुए जा रहे थे कि तभी पैर फिसलने के कारण कुछ मेंढक एक गहरे गड्ढे में गिर गये। उसी पल सभी मेंढक उस गहरे गड्ढे के चारों ओर इकट्ठे हो गये और उन्हें बाहर निकालने की जुगत लगाने लगे। लेकिन गहराई ज़्यादा होने के कारण ज़्यादा कुछ कर नहीं पाये। उन सभी मेंढकों ने आपस में मंत्रणा कर निर्णय लिया कि उनके लिए मेंढकों की मदद करना असंभव है। इसलिए उन्होंने दोनों मेंढकों को बताने का निर्णय लिया कि वे अब उनकी सहायता करने में असमर्थ हैं और उन्हें भी अब अपने भाग्य को स्वीकार कर लेना चाहिये।
वहीं दूसरी ओर गड्ढे में गिरे दोनों मेंढक भी बाहर निकलने के लिए अपनी ओर से उछल-उछल कर प्रयास करने लगे। लेकिन गहराई ज्यादा होने के कारण उन्हें भी सफलता नहीं मिल रही थी। तभी मेंढकों के समूह ने गड्ढे के किनारे आकर चिल्लाते हुए अपने निर्णय को गड्ढे में गिरे मेंढकों को बताया, जिसे उन्होंने स्वीकारने से मना कर दिया और अपनी पूरी शक्ति के साथ एक बार फिर से उछलना शुरू कर दिया। उन्हें ऐसा करते देख बाहर किनारे पर खड़े मेंढकों ने चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘देखो अगर तुम इस तरह अपनी ऊर्जा बर्बाद करोगे तो जल्द ही और बढ़ी मुश्किल में फँस जाओगे। संभवतः इसके कारण तुम्हारी जान भी समय से पहले जा सकती है।’
मेंढकों की चेतावनी का असर एक मेंढक पर तो तत्काल पड़ा और उसने धीरे-धीरे उछलना कम कर दिया और वो उस गहरे गड्ढे के तल में निढाल हो कर पड़ गया। इसके विपरीत ऊपर खड़े मेंढकों के निराशा भरे शब्दों के शोर के बीच दूसरे मेंढक ने और ज़्यादा ताक़त लगाकर उछलना शुरू कर दिया। जितना अधिक ऊपर खड़े मेंढक हतोत्साहित करते उतना ही अधिक परिश्रम गड्ढे में गिरा मेंढक कर रहा था। इसका नतीजा यह रहा कि एक ऊँची छलाँग लगाकर वह मेंढक अंततः बाहर आ गया।
दोस्तों, स्थिति तो दोनों मेंढकों के लिए एक समान ही थी। दोनों ही गहरे गड्ढे में थे; दोनों ही बाहर निकलने का प्रयास कर रहे थे; दोनों को ही बाहरी लोगों द्वारा हतोत्साहित किया जा रहा था। लेकिन इसके बाद भी परिणाम एकदम अलग था, एक मेंढक जहाँ सफलतापूर्वक गड्ढे से बाहर आ गया था, वहीं दूसरा मेंढक हार मान, स्थितियों से समझौता कर निढाल पड़ गया था। मानो इस एक घटना ने उसका जीवन ही समाप्त कर दिया हो।
जानते हैं दोस्तों, गड्ढे में गिरे दोनों मेंढकों को मिले अंतिम परिणाम में इतना अंतर क्यों था? चलिए मैं ही बताता हूँ, असल में दूसरा मेंढक, जो गड्ढे से सफलतापूर्वक बाहर आया था, बहरा था। उसे दूसरे मेंढकों द्वारा कहे निराशा भरे शब्द सुनाई ही नहीं दिये थे। वह तो बस उनके इशारों को उसके द्वारा किए गये प्रयास पर ख़ुशी व्यक्त करना मान रहा था और बाहरी मेंढकों के हिलते हुए होंठ उसे प्रेरणादायी संवाद लग रहा था। इन दोनों से प्राप्त ऊर्जा ने उसे और बेहतर करने के लिए प्रेरित कर, सफल बनाया। इसके विपरीत दूसरा मेंढक, जिसके कान सही थे, उस पर बाहरी मेंढकों द्वारा कहे गये शब्दों का प्रभाव साफ़ नज़र आ रहा था। जिसके कारण उसने परिस्थितियों के समक्ष घुटने टेक हार मान ली थी।
याद रखियेगा दोस्तों, हमारे शब्द किसी को बर्बाद तो किसी को पूरी तरह आबाद कर सकते है। इसी तरह से आपके शब्द किसी को गहरे ज़ख़्म दे सकते हैं तो किसी के लिए मलहम का काम कर सकते हैं। इसलिए दोस्तों, अपनी वाणी में नम्रता, शिष्टाचार और शालीनता लाने का प्रयास करें। यह आपके हृदय को शुद्ध और श्रेष्ठ बनाने में मदद करेगा जो अंततः लोगों के अंतर्मन और दिल में आपके लिये प्रेम और आदर को जन्म देकर उन्हें आपके बताए रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करेगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com